शब्द वृत्ति

By: Jun 22nd, 2017 12:02 am

योग

(निर्मल अरोड़ा, दिल्ली )

चहुं दिशा से आई आवाज, योग करो,

आष्टांग अपनाओ, सुख पाओ,

नियमित हो, सुख भोग करो

खाओ,पीओ, मौज करो,

बस योग करो ।

मानव सुंदर  रचना, नहीं कंकाल,

इस तन में लगे हैं सूक्ष्म तार,

अस्थि तंत्र का जाल, इसकी करो संभाल

योग से ही होगा कमाल,

योग करो।

धन और तन के सुखों में लिप्त हुए,

हारी बाजी, पर समझे हम जीत गए

मदमस्ती में झूम रहे, थिरक रहे कदम,

गीतों में घुस आया है दंभ का दम,

दम मारो दम, गाते गाते ,बन गए दबंग

नशे में दफन हो गया दम,

इंद्रियों के सुख भ्रमजाल में ढूंढ रहे सुख साधन, चकाचौंध में गुम हो गया निज दर्शन

काली अंधेरी गलियों में सपने हुए बेहाल,

मदहोशी में भूले, हम अपनी चाल,

तन मन के अष्ट रोग

दूर करता अष्टांग योग,

धूल हो गया मन

कैसे लौटाएं यौवन का दम,

देश परिवार के मिट जाएं गम

शांति पाने, रोग मिटाने,

उजड़ा वैभव फिर से पाने

लौटा कर लाना होगा दम,

संयम, शम, दम है यम

अपरिहार्य भीतर का दम,

तन मन से आत्म योग करो

योग करो,स्वर्गिक सुखों का भोग करो,

योग करो, बस योग करो ।

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