गोवंश संरक्षण को आगे आएं मंदिर ट्रस्ट

By: Jul 7th, 2017 12:07 am

रणजीत सिंह राणा

लेखक, भोरंज, हमीरपुर से हैं

newsप्रदेश में लगभग 34,000 बेसहारा गउएं और बैल हैं और लगभग 130 गोशालाएं बनाई गई हैं। इनमें से 74 गोशालाएं निजी तौर पर संस्थाओं द्वारा चलाई जा रही हैं। अगर प्रदेश सरकार बड़े मंदिर ट्रस्टों की आमदन से 25 प्रतिशत हिस्सा लेकर इन गोशालाओं की आर्थिक सहायता करे, तो भी इन बेसहारा, अभागे पशुओं को कुछ राहत मिल सकती है…

‘वसुधैव कुटुंबकम’ का उच्च आदर्श पोषित करने वाले सनातन धर्म में सेवा का अद्भुत महत्त्व है। जीव मात्र की सेवा परम कल्याणकारी मानी गई है। हमारे धर्म ग्रंथोें, संत महात्माओं एवं साहित्यिक मनीषियों ने सेवा भाव की अपार महिमा गाई है। प्राणी मात्र की निष्काम सेवा ईश्वर की अराधना ही है, क्योंकि जीवधारी में प्रभु का ही निवास बताया गया है। दुनिया के अन्य धर्मों में भी जीव दया को आत्म कल्याण का श्रेष्ठ साधन माना गया है। जब प्राणी मात्र की सेवा को ही इतना बड़ा फल कहा गया है, तो गाय जैसे सात्विक जीव की सेवा का अद्भुत महात्म्य क्यों न हो? गोमाता की उत्पति समुद्र मंथन से हुई। चौदह रत्नों में से एक कामधेनु भी थी। सभी गउएं कामधेनु की संतानें हैं। भारतीय गाय का शरीर परम पवित्र चल मंदिर है। रोम-रोम और श्वास-श्वास में अनुपम सात्विकता एवं पवित्रता भरी हुई है। गाय का सान्निध्य, गाय के दूध, दही, घी आदि का सेवन हर तरह से लाभकारी माना गया है। पंचगव्य का प्रयोग शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्वास्थ्य के लिए अति लाभप्रद है। गोमूत्र परम रसायन है। इसके यथाविधि सेवन से शरीर, मन, बुद्धि, हृदय एवं आत्मा की शुद्धि होती है, सात्विकता का संचार होता है। गाय की सेवा से कइयों को स्वास्थ्य, भौतिक एवं आध्यात्मिक लाभ होते देखा गया है।

राजस्थान प्रांत के सीकर जिला के रेवासा गांव में प्रसिद्ध रामानंदी संत अग्रदास जी एवं नाभा दास जी की गद्दी है। वहीं जानकी नाथ जी का बड़ा मंदिर एवं बहुत बड़ी गोशाला का संचालन गोसेवा के आदर्श बाबा हरिराम जी कर रहे हैं। बाबा जी की गउओं के लिए एक अलग बाड़ा एवं लंबे-चौड़े गोदाम हैं। आसपास के गांवों से अनाज इकट्ठा करके बाबा जी गोदाम में भर लेते हैं। सुबह उठते ही गउओं को अनाज देते हैं। गउएं दिन को चरने चली जाती हैं, तो दिन भर बाड़े की सफाई एवं चारे पानी का प्रबंध करते हैं। शाम को फिर दाना-पानी देते हैं। इस अवस्था में उन्हें केवल रात को कुछेक घंटे आराम के लिए मिल पाते हैं। बीच-बीच में भक्तों की समस्याएं सुनने-निपटाने में लग जाना पड़ता है। बाबा जी ने 15 साल से अन्न का त्याग कर रखा है। गोमूत्र, दूध आदि ही उनका आहार है। गउओं के लिए कठोर श्रम ही उनकी पूजा और तपस्या है। उनके आशीर्वाद से अनेक का कल्याण हुआ है और हो रहा है।

शास्त्रों में कहा गया है-जो पुरुष गाय की सेवा करता है और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गउएं उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती हैं। गाय के साथ मन से भी कभी द्वेष न करें, उन्हें सदा सुख पहुंचाएं, उनका यथोचित सत्कार करें और नमस्कार आदि के द्वारा उनका पूजन करते रहें। जो मनुष्य जितेंद्रिय और प्रसन्नचित होकर नित्य गोमाता की सेवा करता है, वह समृद्धि का भागी होता है। दुखद यह कि इस सबके बावजूद प्रदेश में बेसहारा गउओं और बैलों की स्थिति ठीक नहीं है। प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 34,000 बेसहारा गउएं और बैल हैं और लगभग 130 गोशालाएं बनाई गई हैं। इनमें से 74 गोशालाएं  निजी तौर पर संस्थाओं द्वारा चलाई जा रही हैं। अगर प्रदेश सरकार बड़े मंदिर ट्रस्टों की आमदन से 25 प्रतिशत हिस्सा लेकर इन गोशालाओं की आर्थिक सहायता करे, तो भी इन बेसहारा, अभागे पशुओं को कुछ राहत मिल सकती है। साथ ही माननीय उच्च न्यायालय ने भी अपने एक ऐतिहासिक फैसले ने प्रदेश सरकार को इन बेसहारा गउओं और बैलों के संरक्षण के लिए आदेश पारित किए हैं, जो कि मानवता के नाते एक सराहनीय फैसला लिया गया है। उन आदेशों को दिए हुए भी लगभग दो साल से भी ज्यादा समय हो गया है, लेकिन बड़े दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि इस संबंध ने प्रदेश सरकार ने अभी तक न तो गउओं और बैलों के पशु कार्ड बनाए हैं और न ही इनका पंजीकरण किया गया है। बरसात का मौसम चल रहा है और ये अभागे पशु सड़कों तथा खड्डों-नालों के किनारे घास तथा पानी के लिए इधर-उधर धक्के खा रहे हैं। इसी के साथ किसानों की खेती को भी उजाड़ रहे हैं। प्रदेश में इसी कारण बहुत सारे किसान खेती करना छोड़ रहे हैं। प्रदेश सरकार ने गोवंश संवर्द्धन बोर्ड बनाकर एक अच्छा काम किया है, लेकिन बेसहारा गउओं और बैलों की हालत पहले की तरह ज्यों की त्यों बनी हुई है।

अभी कुछ समय पहले प्रदेश सरकार ने बेसहारा पशु रहित पंचायतों के लिए 15-15 लाख रुपए देने की घोषणा की थी। क्या अच्छा होता अगर पशुपालन व ग्रामीण विकास मंत्री अपने विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों को पशुपालकों द्वारा पाली हुई गउओं और बैलों के पशु कार्ड और रजिस्ट्रेशन के आदेश देते और युद्ध स्तर पर माननीय न्यायालय के आदेश मुताबिक गोशालाएं बनाई होतीं। पशु कार्ड बनवाने और बैल-गउओं का रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए पशुपालन विभाग द्वारा गांवों के पंचायत प्रधान, वार्ड पंचों की मदद ली जा सकती है। प्रदेश सरकार को बड़े मंदिर ट्रस्टों के सहयोग से हरेक गोशाला के संचालन के लिए चारे आदि के लिए सालाना कम से कम दस-दस लाख रुपए की मदद दी जानी चाहिए। माननीय न्यायालय व मीडिया के अलावा समाज तथा प्रदेश सरकार को भी इन बेसहारा पशुओं के संरक्षण के बारे में अपने फर्ज को निभाना चाहिए।

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