दकनोल में नाटी पर धमाल

By: Jul 17th, 2017 12:05 am

रामपुर बुशहर —  रामपुर की दुर्गम पंचायत दरकाली में दकनोल मेले का पहला दिन नाटियों के नाम रहा। वर्षों से इस मेले को ग्रामीण खासे उत्साह के साथ मनाते आ रहे हैं।  मेले में देवता साहिब लक्ष्मी नारायण शालणु जी विशेष तौर से शिरकत करते हैं। दो दिन तक चलने वाले इस मेले की अपनी खास महत्ता है। इस मेले का आयोजन वर्षों पहले से इस बात से शुरू हुआ कि इस दौरान गर्मियों में कंडे को गए भेड़पालक अपने-अपने घर लौटते हैं। मई महीने से निकले भेड़पालक जंगलों में ही भेड़-बकरियों के साथ डेरा डाले रहते हैं। दो महीने के लंबे अंतराल के बीच यदाकदा ही उन्हें घर आने का समय मिल पाता है, जिसके बाद 15 जुलाई को उनकी घर वापसी होती है। वर्षों पहले दुर्गम क्षेत्रों में अधिकतर भेड़ पालक ही होते थे। यही कारण है कि हर घर से एक भेड़पालक इस दौरान घर आता था। यह ग्रामीणों के लिए एक खुशी का समय रहता था, जिसे आज दिन तक मेले के तौर पर मनाया जा रहा है। 16 जुलाई को विशेष तौर से (फुहालों का मेला) भेड़पालकों का मेला मनाया जाता है। इस दौरान भेड़पालक दूरदराज बर्फ वाले कंडे से एक खुशबू वाले फूलों की माला बनाकर लाते हैं, जिसे वह मेले में आए अतिथियों को पहनाते हैं, जिसके बाद देर शाम तक नाटियों का दौर चलता है। फुहालों के साथ महिलाएं भी नाटियों में उनका साथ देती हैं। ढोल-नगाड़ों की थाप पर सभी ग्रामीण नाचते-गाते हैं। इस मेले में दूर-दूर से रिश्तेदार भी शरीक होते हैं। खासकर दूरदराज दी गई बेटियां मेले में आती हैं और अपने रिश्तेदारों से मिलती हैं। इसी बीच ग्रामीण अपने ईष्ट देव से आशीर्वाद लेते हैं। देवता भी भेड़पालकों के साथ नाचते दिखे।

शिमला राम मंदिर में छलका अमृत रस

शिमला – दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा शिमला के राम मंदिर में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें संस्थान के संस्थापक एवं संचालक आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी मयंका भारती ने प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि, जिस प्रकार नदिया पार करने के लिए एक नाव की आवश्यकता होती है उसी प्रकार इस जीवन की सांसारिक यात्रा के लिए भी एक सद्गुरू रूपी केवट द्वारा चलाए जाने वाली भक्ति रूपी नाव की आवश्यकता होती है। मन में मात्र भक्ति भाव के होने भर से ही सांसारिक नदिया पार नहीं हो सकती, अपितु इसे पार लगाने के लिए एक सद्गुरू रूपी केवट आवश्यक है, जो सफलतापूर्वक भक्ति को सही दिशा में निर्देशित कर भवसागर से पार कर ईश्वर प्राप्ति तक पहुंचा सकते हैं।

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