दूसरी आजादी का आगाज

By: Jul 3rd, 2017 12:02 am

एहसास वैसा ही था, जैसा 1947 में जनमानस ने महसूस किया होगा। वे राजनीतिक, सीमाई, कूटनीतिक और संवैधानिक आजादी के लम्हे थे। 30 जून, 2017 की आधी रात को संसद के सेंट्रल हाल में दूसरी आजादी का एहसास भोगा गया। बेशक वे भी ऐतिहासिक लम्हे थे। एहसास एक राष्ट्र के साथ-साथ एक ही बाजार और एक ही कर का था। आधी रात का घंटा बजते ही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मोदी ने बटन दबाकर इस ‘आर्थिक आजादी’ का आगाज किया। इसी के साथ देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू हो गया। पहले से प्रचलित 17 कर और 23 उपकर भी समाप्त हो गए। भारत दुनिया का 161वां देश बन गया, जहां जीएसटी कानून लागू है। बेशक देश के कई कोनों में विरोध है गफलत है, असमंजस और अनिश्चताएं हैं, तो कुछ  कोनों में ढोल के स्वर सुनाई दिए। आतिशबाजी छोड़ी गई। खुशियों के साथ-साथ गुस्सा और नाराजगी भी महसूस हुई, लेकिन ऐसा होना स्वाभाविक है। करों की व्यवस्था बदलती है, तो प्रतिक्रियाएं भी होती हैं, लेकिन कर चोरी रोकनी है या करदाताओं का दायरा बढ़ाना है अथवा काले धन पर लगाम लगानी है, तो कर सुधार बहुत जरूरी है। जीएसटी इन कसौटियों पर खरा उतरेगा, अभी से विश्लेषण नहीं कर सकते, लेकिन प्रभावी और पारदर्शी तरीके से इसे लागू किया गया, तो हमारे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 1.5 से 2 फीसदी तक बढ़ोतरी संभव है। ऐसा अर्थशास्त्रियों का आकलन है। करीब 14 साल के लंबे विचार-विमर्श के बाद जीएसटी की सरकारी विरासत हमारे सामने है। कमोबेश उसका व्यावहारिक रूप तो देखें। सुखद संयोग है कि जो जीएसटी का जन्म दिवस है, वही देश में चार्टर्ड अकाउंटेंट के राष्ट्रीय संस्थान का भी स्थापना दिवस है। दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में सीए की एक असीमित भीड़ को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आह्वान किया कि सीए के हस्ताक्षर में ही ताकत है। वे फर्जी कंपनियों और कर चोरों को बेनकाब करें और ईमानदारी की मुख्यधारा में आने के प्रयास करें। नोटबंदी के बाद के दौर का खुलासा करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि तीन लाख से ज्यादा कंपनियों के लेन-देन सवालों के घेरे में हैं। उनमें से एक लाख से ज्यादा कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर उन पर ताला जड़ दिया गया है। ऐसे फैसले राष्ट्रहित में सोचने वाले ही ले सकते हैं। ऐसी चोर लुटेरी कंपनियां किसी न किसी आर्थिक डाक्टर के पास गई होंगी। बही खातों को सत्यापित करने के पवित्र अधिकार वाले सीए खुद ही आत्ममंथन करें कि नए भारत, नई आर्थिक आजादी के इस दौर में इनकी क्या भूमिका है? श्री मोदी ने एक और कड़वी सच्चाई का खुलासा किया कि क्या देश में 37 लाख नागरिक ही ऐसे हैं, जिनकी आय 10 लाख रुपए या उससे अधिक है? पीएम का संकेत था कि करों की चोरी की जाती रही है, लिहाजा 131 करोड़ के देश में ऐसे विरोधाभासी यथार्थ हैं। बहरहाल जीएसटी कितना कारगर साबित होगा। 1947 में राजनीतिक एकीकरण के बाद 2017 में जीएसटी देश के आर्थिक एकीकरण का प्रतीक बनेगा या नहीं यह भविष्य के आकलन का विषय है, लेकिन इस व्यापक कर सुधार का स्वागत करना चाहिए। देश के चौतरफा विकास के लिए अर्थ जगत का सुधरना भी अनिवार्य है। करों की पूंजी से ही देश के विकास कार्यक्रम संभव हैं। इसी सोच के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष सभी राज्य इस मुद्दे पर सहमत हुए हैं। फिलहाल शराब, पेट्रोलियम पदार्थ और रियल एस्टेट को जीएसटी के बाहर रखा गया है। बाद में इन पर भी निर्णय बदल सकते हैं। जीएसटी के कारण कौन सी चीजें सस्ती होंगी और किन क्षेत्रों में महंगाई बढ़ेगी, इसका व्यावहारिक अनुभव भी करीब दो महीने में मिल जाना चाहिए, लेकिन वाजपेयी सरकार से यूपीए सरकार और अब मोदी सरकार जिस मुद्दे पर बुनियादी तौर से सहमत है, सियासत के कारण उसका विरोध एक बेवकूफी है। लिहाजा विपक्षी दलों की एक मंडली को भी पुनर्विचार करना चाहिए और जीएसटी को एक ‘राष्ट्रीय क्रांति’ के तौर पर मनाया जाना चाहिए।


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