मां तारा चंडी मंदिर

By: Jul 1st, 2017 12:08 am

asthaसासाराम शहर से दक्षिण में कैमूर पहाडि़यों की मनोरम वादियों में मां तारा चंडी का वास है। यह भारत के 52 शक्तिपीठों से एक है। मां तारा चंडी पीठ भारत के 52 पीठों में सबसे पुरानी मानी जाती है। दक्ष के द्वारा शिव के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किए जाने पर देवी सती हवन कुंड में कूद गई थीं। भगवान शिवजी माता सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे। इस वजह से संसार प्रलय की ओर अग्रसर हो गया, तब शिवजी के कोप से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को विखंडित कर दिया। वो सभी खंड भारत के विभिन्न प्रांतों में गिरे और शक्तिपीठ कहलाए। मां तारा पीठ पर सती की दाहिनी आंख गिरी थी। यहां एक अति प्राचीन मंदिर है। यहां गुप्त महादेव मंदिर , पार्वती मंदिर, पुरानी गुफाएं और दो जलप्रपात हैं। तारा चंडी का मंदिर सासाराम से 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां हिंदू भक्तों का समागम होता है। धुआं कुंड प्रपात भी यहां का एका बहुत बड़ा आकर्षण है। कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इसे तारा नाम दिया था। दरअसल, यहीं पर परशुराम ने सहस्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी। मां तारा इस शक्तिपीठ में बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं। यही स्थान बाद में सासाराम के नाम से जाना जाने लगा। मां की सुंदर मूर्ति एक गुफा के अंदर विशाल काले पत्थर से लगी हुई है। मुख्य मूर्ति के बगल में बाल गणेश की एक प्रतिमा भी है। चैत्र और शरद नवरात्र के समय तारा चंडी में विशाल मेला लगता है। कहा जाता है गौतम बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां रुके थे।


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