लैंटाना घास की जकड़न में जंगल

By: Jul 24th, 2017 12:02 am

डीआर सकलानी

लेखक, सरकाघाट, मंडी से हैं

लैंटाना घास तेजी से भूमि को बंजर बनाती है। धीरे-धीरे भूमि का उपजाऊपन खत्म होने के साथ इससे स्किन एलर्जी भी होती है। तेजी से फैलने वाली यह घास चारे के काम भी नहीं आती। यदि कोई पशु गलती से इसे खा ले, तो इससे उसे नुकसान पहुंचता है। इसका एक नुकसान यह भी होता है कि यह घास सूखने के बाद जल्द आग पकड़ती है…

हिमालय की गोद में स्थित देवभूमि का बड़ा भाग वनों एवं अन्य प्राकृतिक संपदाओं से घिरा हुआ है। हालांकि जरूरतों को पूरा करने के लिए वनों से पेड़ों को काटा भी जाता रहा है। एक ऐसा समय था, जब हिमाचल के वन खूबसूरत व घने थे। इनमें दुर्लभ पशु-पक्षी व जानवर अठखेलियां किया करते थे। खूबसूरत वातावरण से किसी का भी मन बहल जाता था, लेकिन बदलते परिवेश में वनों का दायरा तेजी से सिमटता जा रहा है। जनसंख्या में लगातार इजाफा और अवैज्ञानिक ढंग से विकास की सोच ने वन संपदा को नष्ट करने में बड़ी भूमिका निभाई है। अवैध खनन, तीव्रता से हो रहे औद्योगिकीकरण, वनों में आगजनी की घटनाओं व अवैध कटान से प्रदेश का पर्यावरण कई तरह के संकटों से घिर चुका है। जंगलों की कटाई या वन संपदा को लेकर बदइंतजामी से भू-संरक्षण, जल क्षेत्रों की रक्षा, खाद्य शृंखला आदि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। संरक्षण के अभाव में प्रदेश के वनों का क्षेत्रफल घटना हम सबके लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। इसके अलावा लैंटाना और कांग्रेस घास भी जंगलों को बुरी तरह से प्रभावित कर रही हैं। प्रदेश के किसान उपजाऊ भूमि पर लैंटाना घास के उगने के कारण परेशान हैं। विधानसभा के बजट सत्र में विपक्ष ने भी इस मामले को बड़ी शिद्दत के साथ उठाया था। उस दौरान वन मंत्री ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि हिमाचल में 2,35,492 हैक्टयेर वन भूमि लैंटाना और कांग्रेस घास से प्रभावित है। साथ में उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने चार साल के अंतराल में जमीन से लैंटाना घास को हटाने के लिए 82.52 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। हैरानी यह कि वे आंकड़े सिर्फ सरकारी भूमि से जुड़े हैं। सरकार के पास उस वक्त निजी भूमि पर लैंटाना घास से संबंधित आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। दूसरी ओर जहां सरकार व वन विभाग ने अरसा पहले हरियाली बढ़ाने के उद्देश्य से जंगलों में चीड़ के पेड़ भी उगाए, जिसका खामियाजा हमें अब तक भुगतना पड़ रहा है।

लैंटाना झाडि़यां जंगलों के विनाश का कारण बनती जा रही हैं। सरकार व वन विभाग इस बीमारी से निपटने के लिए अपने स्तर पर भले की प्रयासरत हों, लेकिन निकट भविष्य में प्रदेश को इस लैंटाना घास से मुक्ति नहीं मिलने वाली। लैंटाना घास वन भूमि, कृषकों की उपजाऊ भूमि व घासनियों में इतनी तेजी से फैल रही है कि यदि समय रहते इस पर रोक नहीं लगी, तो वनों के अस्तित्व को भी खतरा पैदा हो जाएगा। संबंधित विभाग के विशेषज्ञ अधिकारियों का कहना है कि लैंटाना घास तेजी से भूमि को बंजर बनाती है। धीरे-धीरे भूमि का उपजाऊपन खत्म होने के साथ इससे स्किन एलर्जी भी होती है। तेजी से फैलने वाली यह घास चारे के काम भी नहीं आती। यदि कोई पशु गलती से इसे खा ले, तो इससे उसे नुकसान पहुंचता है। बताया जाता है कि ईस्ट इंडिया राज के दौरान दक्षिण अमरीका की एक महिला लैंटाना को गार्डन प्लांट के रूप भारत लाई थी। उसके बाद से यह विषबेल तेजी से फैली है। इसका एक नुकसान यह भी होता है कि यह घास सूखने के बाद जल्द आग पकड़ती है। इस प्रकार जब कभी जंगलों में आग लगती है, तो ये झाडि़यां आग में घी डालने का कार्य करती हैं। लैंटाना घास पक्षियों और पशुओं की बीट तथा गोबर से फैलता है। इसका बीज जहां गिरता है, वहां पर लैंटाना फैल जाती है। लैंटाना 4,500 फुट से नीचे फैलती है। लैंटाना की ये झाडि़यां हिमाचल प्रदेश की वन भूमि पर ही नहीं, बल्कि भारत में इतनी तेजी से फैलती जा रही हैं। इस अवांछित घास में कई बहुमूल्य बूटियां, घास आदि भी ओझल हो गई हैं।

कहना न होगा कि वन्य प्राणियों के जीवन को भी इसने काफी हद तक प्रभावित किया है। लैंटाना की कंटीली झाडि़यां इतनी घनी होती हैं कि इसमें दूसरा पौधा या वनस्पति उगने का सवाल ही पैदा नहीं होता। लैंटाना की इन कंटीली झाडि़यों में से निकलना तक मुश्किल हो जाता है। सरकारी महकमे ने इससे निजात पाने के लिए जो मिशन छेड़ रखा है, उसके तहत कई जगह तो टहनियों को ही काटा जा रहा है। इसके कारण ये झाडि़यां कुछ समय के लिए तो खत्म हो जाती हैं, लेकिन उसके बाद ये और भी तेजी से फैलती हैं। इस लिहाज से लैंटाना की झाडि़यों को जड़ से उखाड़ने की मुहिम जरूरी है। इस जटिल समस्या को लेकर हिमाचल सरकार भी अपने स्तर पर प्रयासरत है, लेकिन इस दिशा में फिलहाल कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है। हिमाचल प्रदेश में लैंटाना की झाडि़यों को जड़ से उखाड़ने व नष्ट करने के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनानी होगी। वन विभाग ने इस कार्य के लिए बेशक कुछ दिहाड़ीदार मजदूरों के अलावा पंचायतों के मनरेगा मजदूरों को इस मुहिम में शामिल किया है, लेकिन इसके समूल नाश के लिए यह पर्याप्त नहीं है। इसके लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधनों की व्यवस्था करते हुए एक रणनीति के तहत इससे निपटना होगा। नष्ट की जा रही लैंटाना झाडि़यों की जगह फलदार एवं औषधीय पौधे रोपे जाएं। प्रदेशवासियों, कृषकों, बागबानों और समाजसेवी संस्थाओं को चाहिए कि लैंटाना झाडि़यों को जड़ से समाप्त करने के लिए प्रदेश व्यापी अभियान चलाएं। वन विभाग व सरकार स्थानीय जनता को साथ लेकर इस समस्या के समाधान के लिए कठोर कदम उठाएं, ताकि वनों का अस्तित्व बरकरार रह सके।

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