शिरगुल महादेव की बड़ी बहन हैं मां भंगयाणी देवी
हिमालयी पर्वत शृंखलाओं की शिवालिक पहाडि़यों के आंचल में स्थित सिरमौर जनपद के गिरिपार क्षेत्र और वहां के हाटी समुदाय के लोग दुर्गम परिस्थितियों तथा कठिन जीवनशैली के कारण आज भी कबायलियों जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं। भले ही सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाएं क्षेत्र में विकास की रेखाओं को खींच रही हैं, परंतु अभी तक भी गिरिपार का यह क्षेत्र विकास की बाट को जोहता हुआ दिखाई देता है। सोलन एवं शिमला जनपद के बीच अवस्थित सिरमौर जिला अनेक अलौकिक विशेषताओं को समेटे हुए है, जिनमें यहां के प्राकृतिक दृश्य एवं देवी-देवताओं से संबंधित विभिन्न मान्यताएं प्रमुख कही जा सकती हैं। इसी प्रकार की धार्मिक मान्यता से संबंधित हरिपुर धार की लगभग आठ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित मां भंगयाणी देवी का मंदिर है, जो कि पूरे उत्तर भारत में लाखों श्रद्धालुओं की असीम आस्था एवं श्रद्धा का केंद्र है। मां भंगयाणी देवी का पौराणिक इतिहास चूड़धार स्थित शिरगुल महादेव से जुड़ा हुआ है। शिरगुल महादेव की वीर गाथाएं जगत प्रसिद्ध हैं और कहा जाता है कि एक बार शिरगुल महादेव सैकड़ों हाटियों के साथ दिल्ली नगर गए, तो उनकी दिव्य लीला से हैरान हो कर यवन शासकों ने उन्हें गऊ के चर्म की बेडि़यों से बांध कर कारावास में डाल दिया। ऐसे बंधनों से उनकी दिव्य शक्तियां क्षीण हो गई और वह अपने को पाश मुक्त नहीं कर पाए। ऐसी अवस्था में भंगिनी के रूप में कार्य करती हुई मां भंगयाणी देवी ने कारावास के बाहर झाड़ू लगाते हुए बागड़ देश के गुग्गापीर महाराज को रास्ता भी बताया और शिरगुल महादेव की मुक्ति का मार्ग निर्देश भी दिया।
रमेशचंद्र मस्ताना, नेरटी
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