हिंदू ही हिंदुत्व को क्षति न पहुंचाएं

By: Jul 7th, 2017 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

newsमुझे आज भी वह बात अच्छे से याद है, जब मैं मांट्रियाल शहर में स्थित मैकगिल विश्वविद्यालय में एक लेक्चर देने के बाद दोपहर के भोजन के लिए कुछ भारतीयों से मिला। वे भोजन में गोमांस ले रहे थे। वह देखकर जब मैंने उनसे इसके बारे में सवाल किया, तो वे हंसते हुए बोले कि यह भारतीय नहीं, कनाडाई गाय का मांस है। तब उन्हें बताया कि मैंने गाय का मांस अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण नहीं त्यागा, बल्कि मैंने गाय का दूध पिया है और मैं गोमांस का सेवन करके उन पवित्र भावनाओं का भक्षण नहीं होने देना चाहता…

हिंदूवादी समूहों द्वारा गाय, गोमांस या सर्वाधिकारवादी आदतों के अभाव को लेकर काफी हो-हल्ला मचाया जा रहा है। वेलेनटाइन डे सरीखे उत्सवों का विरोध करना ही क्या वास्तविक हिंदुत्व है? पिछले कुछ दिनों से इंटरनेट और टीवी चैनलों पर हिंदुत्व के पक्ष में नारेबाजी की बाढ़ जैसी आ गई है। ऑनलाइन मंच पर वे ताकतें, जो केवल मुस्लिमों का ही नहीं, बल्कि हिंदुओं का भी प्रतिनिधित्व करतीं हैं, वैचारिक प्रदूषण फैला रही हैं। हिंदुत्व में उदारवाद और आजादी सरीखे कई सदाचारी पहलुओं का समावेश है और यह समूचे विश्व को एक परिवार मानता है। हैरानी यह कि इन कुछेक लोगों ने खुद ही इन संस्कारों को नहीं अपनाया। ऐसे में तथाकथित उदारवादियों या खुद को अल्पसंख्यकों का पैरोकार बताने वालों द्वारा यह घृणा आंदोलन क्यों छेड़ा गया है?

भारत में विभाजन की नींव तो तभी पड़ गई थी, जब हमने मोहम्मद अली जिन्ना के सांप्रदायिक एजेंडे को स्वीकार किया था। उस समय बहुसंख्यक हिंदुओं ने पंथनिरपेक्षता की भावना को अंगीकार किया था। हालांकि इसके लिए हिंदुओं पर अल्पसंख्यकों या बुद्धिजीवियों द्वारा किसी तरह का दबाव नहीं बनाया गया था। इसके लिए हिंदुओं को उस व्यापक सोच ने पे्ररित किया, जिसने विभाजन के बावजूद मुस्लिम आबादी को अपने साथ रहने का मौका दिया। समय के साथ-साथ अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण सत्ता हड़पने का एक शाही मार्ग बन गया, क्योंकि हिंदू समाज तो पूरी तरह से जाति, नस्ल और रंग को लेकर होने वाले भेदभाव के आधार पर विभाजित हो गया। तब छुआछूत एक ऐसी कमजोर कड़ी साबित हुई, जो समूचे हिंदू समाज के विभाजन का कारण बनी। इसका परिणाम यह हुआ कि हिंदू समाज बहुसंख्यक होने के बावजूद चुनावी राजनीति में कभी वोट बैंक नहीं रहा।

इसे लोकतंत्र का मजाक ही माना जाएगा कि सत्ता के निर्धारण में बहुसंख्यकों की कोई भूमिका नहीं रहती, जबकि अल्पसंख्यक निर्णायक भूमिका में आ जाते हैं। मोदी के आने के बाद से हालात बदले हैं। नरेंद्र मोदी ने समझदारी बरतते हुए देश के बहुसंख्यक तबके को संबोधित करने का एक सफल प्रयोग किया है। सत्ता में आने के बाद उन्होंने अल्पसंख्यकों के साथ भी न्याय सुनिश्चित किया है। नरेंद्र मोदी ने किसी वर्ग विशेष के तुष्टिकरण के बजाय उस समानता के प्रयास किए गए हैं, जिसकी कल्पना संविधान में की गई है। हालांकि शुरू में मोदी की यह रणनीति अल्पसंख्यकों के लिए किसी सदमे की तरह थी। इसके साथ वे तथाकथित उदारवादी भी मोदी के इस प्रयोग से सकते में थे, जो अपनी सहूलियत के लिए बनाए गए एक तयशुदा तंत्र में हर तरह के लाभ ले रहे थे। उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले सियासी बढ़त के उद्देश्य से जब हिंदुओं और मुसलमानों के आपसी भेदभाव का सवाल उछाला गया, तब यही रणनीति योगी आदित्यनाथ ने एक मजबूत संस्करण के तहत अपनाई। वहां हिंदुओं पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाकर सांप्रदायिक राजनीति का कार्ड बखूबी खेला गया।

मोदी के उभार के बाद से प्रतीकवाद की अवधारणा मजबूत हुई है। बहुत से लोगों का विचार है कि अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों पर जोर देकर वे समानता स्थापित कर सकते हैं। चुनाव जीतने के बाद यह एक गलत संकेत दिया गया है। बेशक मुस्लिमों को आश्वस्त किया गया है, लेकिन कहीं न कहीं हिंदू पत्रकार, लेखक और अर्थशास्त्री खुद ही हिंदुत्व पर हमला बोल रहे हैं।

हिंदुत्व (कोई संकीर्ण पंथ नहीं) एकमात्र ऐसा विश्वास है, जिसने किसी अन्य पंथ या समुदाय को मिटाने का कभी विचार तक नहीं किया। कोई भी पंथ अपने अनुयायियों को इतनी आजादी नहीं देता, जितनी कि हिंदू धर्म में है। हिंदुत्व को जीवन की पद्धति करार देना इसके अवमूल्यन सरीखा है। धार्मिक निष्ठा के तौर पर हिंदुत्व का अपना एक परिष्कृत एवं प्रगतिशाल दर्शन रहा है। इसके ज्ञान-पद्धति शास्त्र का दुनिया में कोई सानी नहीं है और कमोबेश तत्त्व मिमांसा के विषय में भी यही बात लागू होती है। हो सकता है कि इस संदर्भ में मेरी जानकारी या ज्ञान कम हो, लेकिन दुनिया का दूसरा शायद ही कोई ऐसा पंथ या धार्मिक मान्यता होगी, जो पूरी दुनिया को एक परिवार मानती हो और सबके सुख की कामना करती हो। सर्वे भवंतु सुखिना कोई जीवन पद्धति नहीं है। यह महान हिंदुत्व दर्शन की सोच का मूल तत्त्व है। दुर्भाग्यवश हिंदुओं और मुस्लिमों ने इस नेक भावना को भी निरर्थक बना डाला है। खाना, पीना या पहनना यहां अब बेहद भड़काऊ मुद्दे बन चुके हैं, जबकि इनके निर्धारण के लिए देश में कोई सख्त कानून नहीं है और यह सब हमारी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर निर्भर करता है। गाय की रक्षा का विषय हमारे संविधान में सम्मिलित है। इसके लिए कई कानून भी बने हुए हैं और इनके क्रियान्वयन से किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है। लेकिन कोई किसी पशु को खरीदता या बेचता है, तो वहां पर बवाल खड़ा करके अपने गऊ प्रेम को जाहिर करने की भी जरूरत नहीं है। जिससे हिंदुत्व को क्षति पहुंचे, हिंदुओं को ऐसी प्रथाओं का दिखावा करने की जरूरत नहीं, बल्कि हमें इसके मूल्यों व दर्शन के साथ जुड़ना होगा। हिंदुत्व की वास्तविक नींव वेद हैं, जो हिंदू दर्शन व लौकिक ताकत को उद्घाटित करते हैं। इन्होंने ही प्रकृति के विभिन्न घटकों-हवा, जल, अग्नि, सूय चंद्रमा आदि की पूजा की बुनियाद रखी थी। यह सच है कि यहां दैवीय और आसुरी दोनों ही तरह की शक्तियां पाई जाती हैं, लेकिन अंततः अच्छाई की बुराई पर जीत होती है। हिंदुत्व किसी तरह की कट्टरता के बजाय संवाद व चर्चा का मार्ग प्रशस्त करता है। वाराणसी बौद्धिक उपदेशों की भूमि रही है, लेकिन यहां

जैन, बौद्ध या सिख पंथ के फलने-फूलने में भी कभी कोई बाधा उत्पन्न नहीं हुई। हिंदू कट्टरपंथियों को यह बात ध्यान में रखनी होगी कि हिंदुत्व को पोषित करने की मानसिकता से ग्रस्त होकर वह अपनी धार्मिक निष्ठाओं को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। मुझे आज भी वह बात अच्छे से याद है, जब मैं मांट्रियाल शहर में स्थित मैकगिल विश्वविद्यालय में एक लेक्चर देने के बाद दोपहर के भोजन के लिए कुछ भारतीयों से मिला। वे भोजन में गोमांस ले रहे थे। वह देखकर जब मैंने उनसे इसके बारे में सवाल किया, तो वे हंसते हुए बोले कि यह भारतीय नहीं, कनाडाई गाय का मांस है। तब उन्हें बताया कि मैंने गाय का मांस अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण नहीं त्यागा, बल्कि मैंने गाय का दूध पिया है और मैं गोमांस का सेवन करके उन पवित्र भावनाओं का भक्षण नहीं होने देना चाहता। लेकिन हमने इस विषय पर चर्चा ही की थी, न कि लड़ाई। अब यह जरूरी हो गया है कि हम देश भर में व्याप्त हिंदुत्व की भावना को स्वीकार तो करें, लेकिन ज्ञान प्राप्ति और शांति को बढ़ावा देने के सार्थक उद्देश्य से।

बस स्टैंड

पहला यात्रीः शिमला में अब कांग्रेस पानी की समस्या को लेकर भाजपा से भिड़ रही है।

दूसरा यात्री : ये तू-तू, मैं-मैं तो होनी ही थी।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com

भारत मैट्रीमोनी पर अपना सही संगी चुनें – निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App