हिमाचली सियासत का दलदल

By: Jul 14th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

प्रो. एनके सिंहहिमाचल की राजनीति कीचड़ युक्त हो गई है और इस नाटक में कांग्रेस सबसे खराब प्रदर्शक लग रही है। अब यह धारणा बनती जा रही है कि प्रदेश में कांग्रेस के राज में रचनात्मक कार्यों की अपेक्षा राजनीति अधिक हो रही है। यही कारण है कि अभी तक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना तक नहीं हो पाई है। उद्योगपति भी कहने लगे हैं कि राजनीति अधिक हो रही है तथा उनकी कार्यशैली में दखलअंदाजी ज्यादा बढ़ गई है। कई लोगों का विश्वास है कि हिमाचल की अपेक्षा उत्तराखंड में राजनीति कम होती है…

हिमाचल के आगामी विधानसभा चुनाव के परिणाम क्या होंगे, यह भविष्यवाणी करना अभी कठिन है क्योंकि सही-सही अनुमान लगाने का समय अभी नहीं आया है। पिछले दो चुनावों में हमने सही भविष्यवाणी करने का काम सफलतापूर्वक किया, लेकिन इस बार स्थिति पेचीदा है क्योंकि नेतृत्व की गतिशीलता में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। यह मौजूदा हालात को ऊपर-ऊपर से देखने जैसा होगा, जबकि रणभूमि में सेनाएं एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं। हम जानेंगे कि दोनों ओर से योद्धा कौन हैं और दोनों पक्षों से कौन से नेता आगे बढ़ेंगे? पार्टियों को अभी तय करना है तथा दिल्ली के गलियारों से आने वाली खबरें अगर सही हैं, तो हमें कुछ हैरानी होगी। ऐसा चुनाव से पहले हो सकता है। इस समय दोनों दल तैयारी कर रहे हैं तथा भाजपा प्रचार अभियान चलाने और निरंतर बैठकें करने में कांग्रेस से काफी आगे है। जैसा कि अपेक्षा की जा रही है, कांग्रेस केवल प्रतिक्रियात्मक राजनीति कर रही है और मानो कह रही है कि आपके पास अगर रथ यात्रा है तो मेरे पास पद यात्रा है। ऐसे में प्रतीत होता है कि इसके पास विचारों और एजेंडे की कमी है।

      इस सियासी उठापटक के बीच दोनों प्रमुख दल परिवर्तन के नजदीक हो सकते हैं, कांग्रेस एक संकट झेल रही है जो कि उसके द्वारा स्वयं पैदा किया गया है। अकसर विवादों में रहने वाले कांग्रेसी नेता मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने चुनाव पूर्व हलचल पैदा कर दी है और इससे पार्टी का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। इस समय कांग्रेस में जो खुसर-फुसर हो रही है, उसके अनुसार मनकोटिया के पक्ष में कई नेता आ सकते हैं। परिवहन मंत्री जीएस बाली का मनकोटिया के साथ शिमला में चाय सत्र चल रहा है और इसका व्यापक प्रचार भी हो रहा है। मेजर मनकोटिया को हटाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, जबकि दो मंत्रियों ठाकुर सिंह भरमौरी तथा सुधीर शर्मा  स्पष्ट रूप से वीरभद्र सिंह के पक्ष में उतर आए हैं। यहां तक कि पार्टी अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू, जिनकी इस विषय पर नजर होनी चाहिए थी, ने मीडिया को बताया कि वह इस संबंध में जागरूक नहीं हैं या मीडिया को धैर्य रखना चाहिए। वरिष्ठ मंत्री एक-दूसरे से केवल दबी जुबान में फोन पर बात कर रहे हैं और जनता के बीच चुप हैं।

कांग्रेस हतप्रभ है, क्योंकि तीन दिन बाद भी अंबिका सोनी ने शिमला में इस विषय पर पूछे सवाल पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हटाने के बाद मेजर मनकोटिया ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अभद्रता दर्शाते हुए शर्म और सड़ा हुआ सेब जैसे शब्दों का प्रयोग किया था। इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए था, उनके खिलाफ कार्रवाई का कोई संकेत अभी तक नहीं मिला है। मेजर मनकोटिया सभी स्थितियों का उत्तम लाभ उठाने में माहिर हैं। कुर्सी पर रहते हुए उन्होंने अपनी स्थिति का पूरा लाभ उठाते हुए सभी सुविधाओं व भत्तों का उपभोग किया, परंतु अंत में वह राजा की आलोचना पर उतर आए। इसी तरह उन्होंने वर्ष 1998 में बसपा के जहाज की सवारी की। पूरे प्रदेश में उसके लिए प्रचार किया, पर वह खुद भी चुनाव हारे और पार्टी के लिए भी कोई सीट नहीं दिला सके। मायावती के पास पर्याप्त धन था और इसने कई अफवाहों को जन्म दिया। एक अफवाह यह भी थी कि बसपा का यान चल निकलेगा। तब कइयों ने सोचा कि ऐसा होगा, लेकिन हिमाचल की सयानी जनता ने बसपा को घास तक नहीं डाली। कुछ समय के लिए मनकोटिया चुपचाप रहे और उसके बाद फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने चुनाव भी लड़ा, लेकिन भाजपा के हाथों उन्हें हार मिली। यह सब होने के बावजूद वीरभद्र सिंह ने उन्हें पर्यटन विकास बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाया और उन्हें उपभोग के लिए सभी सुविधाएं व विशेषाधिकार दिए। शायद यह दोनों के बीच चुनाव पूर्व समझौता था, लेकिन लोगों को वह दिन भी याद है जब उन्होंने सीडी जारी करके वीरभद्र सिंह और अन्यों में लेन-देन की बात कही थी।

वीरभद्र सिंह द्वारा उनको पर्यटन विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष पद से हटाने के बाद उनके अपने क्षेत्र तक में खुशी मनाई गई। स्पष्ट रूप से यह वीरभद्र सिंह के समर्थकों ने किया। मेजर मनकोटिया ने वीरभद्र सिंह को भले ही सड़ा हुआ सेब कहा हो, लेकिन हाई कमान के साथ समझौते की संभावनाएं उन्होंने क्षीण नहीं की हैं। यही कारण है कि वह अपने को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बता रहे हैं तथा उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग की भी घोषणा की है। काफी हद तक उन्होंने ऐसे इंतजाम कर लिए हैं कि हाई कमान उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न कर सके। हिमाचल की राजनीति कीचड़ युक्त हो गई है और इस नाटक में कांग्रेस सबसे खराब प्रदर्शक लग रही है। अब यह धारणा बनती जा रही है कि प्रदेश में कांग्रेस के राज में रचनात्मक कार्यों की अपेक्षा राजनीति अधिक हो रही है। यही कारण है कि अभी तक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना तक नहीं हो पाई है।

अब तो उद्योगपति भी कहने लगे हैं कि हिमाचल प्रदेश में राजनीति अधिक हो रही है तथा उनकी कार्यशैली में दखलअंदाजी ज्यादा बढ़ गई है। कई लोगों का विश्वास है कि हिमाचल की अपेक्षा उत्तराखंड में राजनीति कम होती है। इस दावे के समर्थन में वे एक चपरासी के तबादले की मिसाल दे रहे हैं, जिसके लिए पंचायत प्रधान, विधायक तथा यहां तक कि मंत्री ने भी सिफारिश की। इस तरह की राजनीति ने कारोबार के लिए उपयुक्त माहौल को नुकसान पहुंचाया है। इस कीचड़ युक्त राजनीतिक वातावरण के बावजूद आशा की जा रही है कि सियासी नेता उद्योग और आम लोगों के हित में काम करेंगे और इस वातावरण को खतरनाक होने से रोकेंगे। हिमाचल की जनता न केवल सियासी नेताओं, बल्कि सुशासन का इंतजार कर रहे हजारों बेरोजगार युवाओं के लिए भी अच्छे दिनों की कामना कर रही है।

बस स्टैंड

पहला यात्री : हिमाचल कांग्रेस में क्या हो रहा है?

दूसरा यात्री : सेना की तरह वह भी एक्सरसाइज कर रही है!

(साभार : राम लुभाया, कांग्रेस नेता)

ई-मेलः singhnk7@gmail.com

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