नकद हस्तांतरण से बढ़ाइए किसान की आय

By: Aug 29th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

डा. भरत झुनझुनवालादेश के हर किसान को एक निर्धारित रकम हर वर्ष नकद देनी चाहिए जैसे एलपीजी सबसिडी को उसके खाते में डाला जा रहा है। जितनी रकम सरकार द्वारा पानी के मूल्य एवं नकदी फसलों पर जीएसटी से वसूल की जाए, उससे ज्यादा रकम किसानों को सीधे सबसिडी के रूप में दी जाए। तब किसान पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। एक तरफ उससे रकम वसूल की जाएगी तो दूसरी तरफ ज्यादा रकम सबसिडी के रूप में मिल जाएगी। इस व्यवस्था के कई लाभ होंगे…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आने वाले पांच वर्षों में किसानों की आय को दो गुना करने का आश्वासन दिया है, जिसके लिए उन्हें साधुवाद। इस चुनौती का सफल समाधान संभव है, यदि सरकार सही नीति अपनाए। अब तक सरकार का प्रयास रहा है कि कृषि उत्पादन बढ़ाकर किसान की आय में वृद्धि हासिल की जाए जैसे सरकार चाहती है कि हर खेत को पानी मिले, जिससे किसान द्वारा अधिक उत्पादन किया जा सके। अथवा बीते समय में सरकार ने ‘सॉयल हैल्थ कार्ड’ योजना को आरंभ किया था। सोच थी कि किसान की भूमि की मुफ्त जांच कराई जाएगी और उसे बताया जाएगा कि उसके खेत को किस फर्टिलाइजर की जरूरत है। जैसे किसी खेत को जरूरत पोटाश की है, परंतु किसान यूरिया डाल रहा हो तो लागत बढ़ेगी, परंतु उत्पादन नहीं बढ़ेगा। किसान सही फर्टिलाइजर का उपयोग करेगा तो उत्पादन बढ़ेगा और उसका लाभ भी। यही नीति सरकार द्वारा पिछले 70 वर्षों से लागू की जा रही है। इस नीति का लाभ भी हुआ है। साठ के दशक में हम अपना पेट नहीं भर पा रहे थे और हमने अमरीका से गेहूं भिक्षा में प्राप्त किया था। आज हम कभी-कभी उत्पादन अधिक होने से निर्यात कर रहे हैं।

इस तरह उत्पादन में भारी वृद्धि से किसान की आय में कम ही वृद्धि हुई है। किसान के बेटे-बेटियों का शहर को पलायन निरंतर जारी है। किसानों द्वारा आत्महत्याओं का सिलसिला भी रुक नहीं रहा है। इसीलिए प्रधानमंत्री को यह कहने की जरूरत पड़ी है कि अगले पांच वर्षों में किसानों की आय को दो गुना किया जाएगा। पुरानी चाल को देखें तो यह कार्य कठिन दिखता है। कारण यह कि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ बाजार में कृषि उत्पादों के दाम गिर जाते हैं और बढ़ा हुआ उत्पादन किसान के लिए अभिशाप बन जाता है। जैसे पिछले साल देश में आलू की बंपर फसल हुई। मंडियों में आलू दो-तीन रुपए प्रति किलो बिक रहा था। किसान के लिए आलू खोद कर मंडी तक पहुंचाने का खर्च भी वसूल करना कठिन हो गया था। किसानों ने आलू को सड़कों के किनारे फेंक दिया था। इस दुरुह परिस्थिति के दो कारण हैं। पहला कारण है कि विश्व बाजार में कृषि उत्पादों के दाम गिर रहे हैं। सामान्य वस्तुओं जैसे कार अथवा कपड़े के दाम की तुलना में कृषि उत्पादों के दाम में वृद्धि कम हुई है। सामान्य वस्तुओं की तुलना में कृषि उत्पादों के दाम गिर रहे हैं। जैसे एक मीटर साधारण कपड़े के बदले पूर्व में आधा किलो गेहूं मिलता था, तो आज उसी कपड़े के बदले एक किलो गेहूं मिल रहा है। कृषि उत्पादों के दाम में यह गिरावट वैश्विक है। संपूर्ण विश्व में कृषि तकनीकों में भारी सुधार हुआ है जैसे उन्नत किस्मों का आविष्कार हुआ है, फसलों को माइक्रोन्यूट्रिएंट देने एवं सघन पौधारोपण की जानकारी मिली है तथा सिंचाई का विस्तार हुआ है। परंतु विश्व की जनसंख्या में वृद्धि कम ही हुई है। इसलिए खाद्यान्न की खपत में वृद्धि कम हुई है। उत्पादन में ज्यादा एवं खपत में कम वृद्धि होने से विश्व बाजार में आपूर्ति की तुलना में मांग कम बढ़ी है और दाम गिर रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत हम विश्व बाजार से जुड़ चुके हैं, इसलिए हमारे किसानों को भी कृषि उत्पादों के दाम कम मिल रहे हैं। इसलिए उत्पादन में वृद्धि और आय में गिरावट साथ-साथ चल रहे हैं।

किसानों की दुरुह परिस्थिति का दूसरा कारण सरकार की आयात-निर्यात नीति है। सरकार की दृष्टि शहरी उपभोक्ताओं के वोटों पर ज्यादा रहती है। देश के वोटरों में इनका हिस्सा 60 से 70 प्रतिशत है। इसलिए जब देश में कृषि उत्पादन कम होता है और घरेलू बाजार में दाम बढ़ने को होते हैं, तो सरकार आयात करती है, दाम को बढ़ने नहीं देती है और किसान को घरेलू दाम में वृद्धि से लाभ कमाने के अवसर से वंचित कर देती है। दूसरी तरफ जब देश में कृषि उत्पादन अधिक होता है और घरेलू दाम न्यून होते हैं, तो निर्यातों पर प्रतिबंध लगाकर किसान को विश्व बाजार में ऊंचे मूल्यों का लाभ कमाने से वंचित कर देती है। इस प्रकार सरकार सुनिश्चित कर रही है कि किसान की आय न्यून बनी रहे। मेरी समझ से उत्पादन बढ़ा कर किसान की आय को दो गुना करने की सरकार की रणनीति विफल होगी, चूंकि विश्व बाजार में कृषि उत्पादों के दाम में गिरावट के कारण बढ़ा हुआ उत्पादन किसान के लिए अभिशाप बन जाएगा। सरकार को नीति परिवर्तन करना चाहिए। आज हमारे किसान नकदी फसलों के उत्पादन में पानी का अधिकाधिक उपयोग कर रहे हैं। दक्षिण में मलबरी, विंध्य के पठार में कपास तथा केला, राजस्थान में लाल मिर्च और उत्तर में गन्ना और मेंथा के उत्पादन में पानी का भारी उपयोग हो रहा है। इन्हीं फसलों के उत्पादन को किसानों द्वारा ऋण लिए जा रहे हैं और रिपेमेंट न कर पाने की स्थिति में आत्महत्याएं की जा रही हैं। सरकार को चाहिए कि सिंचाई के पानी की मात्रा के अनुसार किसान से पानी का मूल्य वसूल करे।

इन फसलों पर गुड्स एंड सर्विस टैक्स भी लगाया जा सकता है। ऐसा करने से किसान इन फसलों का उत्पादन कम करेगा और सरकार को राजस्व मिलेगा। ध्यान दें कि नकदी फसलों पर टैक्स लगाने से हमारी खाद्य सुरक्षा पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा, चूंकि गेहूं, धान और आलू की खेती में पानी तुलना में कम लगता है और इन फसलों पर जीएसटी भी नहीं लगेगा। साथ-साथ देश के हर किसान को एक निर्धारित रकम हर वर्ष नकद देनी चाहिए जैसे एलपीजी सबसिडी को उसके खाते में डाला जा रहा है। जितनी रकम सरकार द्वारा पानी के मूल्य एवं नकदी फसलों पर जीएसटी से वूसल की जाए, उससे ज्यादा रकम किसानों को सीधे सबसिडी के रूप में दी जाए। तब किसान पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। एक तरफ उससे रकम वसूल की जाएगी तो दूसरी तरफ ज्यादा रकम सबसिडी के रूप मे मिल जाएगी। इस व्यवस्था के कई लाभ होंगे। पहला लाभ यह कि किसान को एक निर्धारित रकम उसके खाते में मिल जाएगी, जिससे वह अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा कर सकेगा और आत्महत्या करने को मजबूर नहीं होगा। व्यवस्था बनाई जा सकती है कि इस रकम पर बैंकों अथवा साहूकारों द्वारा कब्जा नहीं किया जा सकेगा।

दूसरा लाभ होगा कि विश्व बाजार में कृषि उत्पादों के दामों में गिरावट की स्थिति में भी किसान सुरक्षित रहेगा। यदि दाम ज्यादा गिरते हैं, तो किसान भूमि को परती छोड़ देगा, चूंकि उसे नकद सबसिडी तो मिल ही रही होगी। तीसरा लाभ होगा कि हमारी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी। नकदी फसलों का उत्पादन कम होगा और भूमिगत पानी की उपलब्धता बढ़ेगी। हमारे किसान इस पानी का उपयोग आलू एवं गेहूं के उत्पादन के लिए कर सकेंगे और हमारी खाद्य सुरक्षा स्थापित होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह है कि उत्पादन बढ़ाने की वर्तमान नीति से किसान की आय निश्चित रूप से दो गुना नहीं होगी। किसान की आय बढ़ाने का हल उत्पादन घटा कर एवं क्षेत्रवार नकद देकर निकलेगा।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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