प्रशिक्षकों के बिन कैसे आगे बढ़ेंगे खेल

By: Aug 18th, 2017 12:02 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

भूपिंदर सिंहजहां खेल छात्रावास व अंतरराष्ट्रीय प्ले फील्ड है, वहां पर भी उस खेल के माकूल प्रशिक्षक चाहिए। इस तरह एक खेल के लिए 20 प्रशिक्षक भी रखें और चुनिंदा 10 खेल भी हों तो दो सौ प्रशिक्षक इस राज्य को चाहिए ही। मगर प्रदेश में प्रशिक्षकों की नफरी तो इसका तीसरा हिस्सा भी नहीं है…

हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग का गठन तीन दशक पूर्व जब हुआ था, तब एशियाई खेल नई दिल्ली के सफल आयोजन का जादू भारत को खेल क्षेत्र में आगे ले जाने के लिए सिर चढ़कर बोल रहा था। शिक्षा विभाग में कार्यरत प्रशिक्षकों को खेल विभाग में समायोजित कर राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग का गठन हुआ था। उसके बाद कुछ प्रशिक्षकों तथा कनिष्ठ प्रशिक्षकों की नियुक्ति भी हुई थी, मगर इनसे अधिक जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी व निदेशक थे। राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान के प्रशिक्षकों के कारण हिमाचल प्रदेश के खेल आगे सरक रहे थे। बाद में जब भारतीय खेल प्राधिकरण में राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान का विलय हो गया, तो फिर प्रशिक्षक साई के हो गए। राज्य में शिलारू, बिलासपुर व धर्मशाला में साई ने अपने खेल छात्रावास चलाए। बाद में शिलारू के विशेष क्षेत्र खेल योजना का खेल छात्रावास के मध्य लंबी दूरी की दौड़ों के लिए चलाया जा रहा था, बंद कर दिया और फिर बिलासपुर में पुरुष तथा धर्मशाला में महिलाओं के लिए खेल सुविधा के अनुसार खेल छात्रावास साई ने चलाए, जो अब भी चल रहे हैं। राज्य खेल विभाग के भी ऊना तथा बिलासपुर में खेल छात्रावास चलते हैं, मगर उनमें खेल प्रशिक्षकों की कमी साफ दिखाई देती है। प्रेम कुमार धूमल ने अपने मुख्यमंत्री के पहले कार्यकाल में हिमाचल प्रदेश खेल परिषद के माध्यम से चालीस विभिन्न खेलों के प्रशिक्षकों की नियुक्ति करवाई थी, क्योंकि उस समय पूरे देश में प्रशिक्षक का डाईंग कैडर कर दिया था। हिमाचल की इस नियुक्ति के बाद फिर अन्य राज्यों ने अपने यहां प्रशिक्षक दोबारा नियुक्त करना शुरू किए थे। बाद में कांग्रेस सरकार के समय परिषद के प्रशिक्षकों को युवा सेवाएं एवं खेल विभाग में नियुक्त कर दिया। वर्तमान सरकार में प्रशिक्षकों के 50 पद विज्ञापित हुए, मगर उनमें से नियुक्ति केवल 30 के करीब ही हुई, क्योंकि एससी, एसटी कैटेगरी में प्रशिक्षक ही नहीं मिले।

इस समय राज्य में विभिन्न खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई प्ले फील्ड बिछाई जा चुकी हैं। कई इंडोर हाल तथा तरणताल राज्य में बिना प्रशिक्षकों के खाली पड़े हैं। हमीरपुर व धर्मशाला में सिंथेटिक ट्रैक बिछे हैं और बिलासपुर में भी टेंडर हो चुका है। मगर इन टै्रकों पर कई वर्ष बाद केवल एक-एक प्रशिक्षक ही नियुक्त हुआ है, जबकि कूद, प्रक्षेपण, तेज गति की दौड़, मध्यम व लंबी दूरी की दौड़ तथा बाधा दौड़ के लिए अलग-अलग प्रशिक्षक चाहिएं। यानी एक ट्रैक पर कम से कम पांच एथलेटिक प्रशिक्षक तो चाहिए ही होते हैं। साथ ही खेल छात्रावासों में भी एक से अधिक प्रशिक्षक नियुक्त होने चाहिएं, ताकि प्रतिभावान खिलाडि़यों को प्रशिक्षण ठीक से मिल सके। इंडोर खेलों को लगभग हर जिला स्तर पर आज प्रशिक्षण सुविधा है, मगर प्रशिक्षकों की कमी यहां भी साफ नजर आती है। यही वजह है कि प्रदेश में खेलों का अब तक अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। प्रदेश में कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी अपने दम पर विभिन्न खेलों की तैयारी कर रहे हैं। इन्हें यदि समय रहते प्रशिक्षकों का मार्गदर्शन मिल जाए, तो निकट भविष्य में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। ऊना तथा मंडी में दो तरणताल हैं, मगर विभाग के पास एक भी तैराकी का प्रशिक्षक नियुक्त नहीं है। राज्य खेल विभाग को चाहिए कि वह राज्य में और लगभग 50 प्रशिक्षकों की भर्ती की कार्रवाई को आगे बढ़ाए। साथ ही साथ विभिन्न विभागों के पास जो प्रशिक्षक नियुक्त हैं, उन्हें डेपुटेशन पर बुलाकर जिन विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में खेल सुविधा है, वहां पर उन्हें नियुक्त कर निचले स्तर से किशोर व युवाओं में खेलों को लोकप्रिय कर भविष्य के अच्छे विजेता खिलाड़ी निकाले। पंजाब ने इस तरह का कार्य शुरू कर दिया है। हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के पास हर जिले के लिए विभिन्न ओलंपिक व लोकप्रिय खेलों का कम से कम एक प्रशिक्षक तो चाहिए ही। इस तरह भी 12 प्रशिक्षक तो यही हो जाते हैं। इस सबके बावजूद जहां खेल छात्रावास व अंतरराष्ट्रीय प्ले फील्ड है, वहां पर भी उस खेल के माकूल प्रशिक्षक चाहिए। इस तरह एक खेल के लिए 20 प्रशिक्षक भी रखें और चुनिंदा 10 खेल भी हों तो दो सौ प्रशिक्षक इस राज्य को चाहिए ही। मगर प्रदेश में प्रशिक्षकों की नफरी तो इसका तीसरा हिस्सा भी नहीं है। इसलिए वर्तमान व आगामी सरकार से अपेक्षा रहेगी कि राज्य में किशोर व युवा शक्ति को सही दिशा देने के लिए प्रदेश में कम से कम प्रशिक्षकों की गिनती दो सौ तक तो पहुंचनी ही चाहिए।

ई-मेल : penaltycorner007@rediffmail.com

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