फसलें बर्बाद, पर वक्त नहीं सरकार की कमेटी के पास

By: Aug 6th, 2017 12:10 am

NEWSशिमला— हिमाचल में हाई पावर कमेटियों का हश्र होता है, इसकी मिसाल लोक समस्याओं से जुड़ी उस कमेटी से लिया जा सकता है, जिसे जंगली जानवरों व वानरों से दिक्कतों के समाधान के लिए गठित किया गया था। बाकायदा इस बारे में सरकार ने अधिसूचना 24 नवंबर, 2015 को जारी की थी। हालांकि कमेटी की एक बैठक तो हुई, मगर दूसरी बैठक के लिए किसे भी वक्त ही नहीं मिला। हिमाचल में जंगली जानवरों व वानरों के कारण हर साल फसलों को करोड़ों का नुकसान होता है। अब जो सर्वेक्षण हुए हैं, उनके मुताबिक 300 करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान वानर पूरे प्रदेश में कृषि व सब्जियों को पहुंचा रहे हैं। हर साल 300 से भी ज्यादा लोगों को काट खाने की घटनाएं अलग से पेश आती हैं। यही नहीं, प्रदेश के निचले हिस्सों में जंगली सूअर, नील गाय, शैल (साही) व अन्य वन्य जीव न केवल फसलों को नुक्सान पहुंचाते हैं, बल्कि मुख्य मार्गों पर दुर्घटनाओं का भी कारण बनते हैं। मुख्यमंत्री के निर्देशों पर इस कमेटी का  गठन इसी मकसद से किया गया था कि इसमें शामिल विशेषज्ञ, उच्चाधिकारी व विधायक अपने-अपने क्षेत्रों की समस्याओं को उठाकर कोई ऐसा ठोस समाधान तलाशेंगे, जिससे प्रदेश इस समस्या से मजबूती से निपट सके, मगर हैरानी की बात है कि पिछले दो वर्षों में इस कमेटी की एक ही बैठक हो पाई है। इस कमेटी के चेयरमैन मुख्यमंत्री है, जबकि वाइस चेयरमैन वन मंत्री हैं। विशेषज्ञों में वाइल्ड लाइफ इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया देहरादून-उत्तराखंड, डायरेक्टर जनरल ऑफ फोरेस्ट वन मंत्रालय केंद्र सरकार एके मुखर्जी, पूर्व डायरेक्टर जनरल केंद्र सरकार, वैटरिनरी डाक्टरों के अलावा रामपुर के विधायक व सीपीएस नंदलाल, डलहौजी की विधायक आशा कुमारी, सिराज के विधायक जयराम ठाकुर, शिमला के विधायक सुरेश भारद्वाज और ज्वालामुखी के विधायक को बतौर सदस्य शामिल किया गया था। इस कमेटी का सदस्य सचिव वाइल्ड लाइफ विंग के प्रिंसीपल चीफ को बनाया गया था। तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव वन दीपक शानन ने यह अधिसूचना जारी की थी। हैरानी की बात है कि पूरा प्रदेश पिछले कई वर्षों से जंगली जानवरों के साथ-साथ वानरों के उत्पात से तंग आ चुका है। मगर एहतियाती कदम किस गति से उठाए जा रहे हैं, यह ताजा मिसाल हो सकती है।

सदन में कई बार हुई चर्चा

प्रदेश विधानसभा में जंगली जानवरों व वानरों की समस्याओं को लेकर सत्तापक्ष व विपक्ष के विधायक कई बार चर्चाएं कर चुके हैं। यहां तक कि राज्य के दबाव में केंद्र ने वानरों को वर्मिन भी घोषित किया, मगर हुआ कुछ नहीं। उम्मीद यही थी कि ऐसी कमेटियों में शामिल सदस्य जो राय देंगे, उनके आधार पर कोई ठोस योजनाएं चलेंगी, जिससे लोगों को राहत मिलेगी, मगर यहां तो बैठकें ही नहीं हो पा रहीं।

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