दिल्ली की सियासी फिजाएं
लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं
मोदी अभी भी देश के ऐसे नेता बने हुए हैं, जिन्हें कोई भी चुनौती नहीं दे पा रहा है। डेरा सच्चा सौदा तथा बलात्कार कांड पर चर्चा खत्म हो रही है, लेकिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का घटनाक्रम अब चर्चा का केंद्र बिंदु बन गया है। ऐसे घटनाक्रमों को प्रचारित करने तथा भय का वातावरण बनाने की एक प्रवृत्ति सी चल निकली है। मोदी, जिनका अभी कोई प्रतिस्पर्द्धी नजर नहीं आता, की देश में बदलाव लाने की योग्यता की आगामी दिनों में परख होने वाली है…
मैं पिछले कुछ दिनों से दिल्ली के भौतिक व राजनीतिक वातावरण को करीब से अनुभव कर रहा हूं। ऊपरी तौर पर तो दिल्ली आज भी वैसी ही है, जैसी मैंने यह पहले देखी थी, लेकिन इसका वातावरण धुंधला हो गया है और भारी भीड़ के कारण यहां कभी खत्म न होने वाले ट्रैफिक जाम इसकी पहचान बनते जा रहे हैं। हाल ही में जब मैं वहां पहुंचा, तो आर्द्रता व गर्मी के हालात में जीना मुश्किल हो गया था। तब उच्च न्यायालय की वह गंभीर टिप्पणी एकाएक मेरे जहन में आ गई, जिसमें उसने दिल्ली को एक ‘गैस चैंबर’ करार दिया था। वातानुकूलित चैंबर्स से बाहर की ओर लोगों पर एक तरह से भीतर की गर्म हवा की बौछार हो रही थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि रेलवे स्टेशन पर सौंदर्यीकरण, जिसकी मैं वर्षों से मांग कर रहा था, का काम चल रहा था। निर्माण कार्य से चारों ओर धूल उड़ रही थी तथा मलबा पसरा पड़ा था। सौंदर्यीकरण की इस योजना के अनुसार यहां मापदंडों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय स्तर का रेलवे स्टेशन बनाया जाएगा। मुझे यह देख कर अजीब लगा कि प्राचीन भवन, जो बाहर से मनोहारी व अंदर से दुर्गंधयुक्त लगता है, को ठीक करने की किसी ने नहीं सोची। दिल्ली की हालत को सुधारने के लिए किसी ने भी इसमें पिछले 70 वर्षों से कोई बदलाव नहीं किया। यहां सुविधाओं की दृष्टि से यात्रियों को प्रतिकूल स्थितियों का सामना करना पड़ता है। हर दिन सफर में निकलने वाले यात्रियों को गर्मियों के मौसम में तेज गर्मी तथा सर्दियों में कड़ाके की ठंड में भी खाली फर्श पर सोना पड़ता है। इस रेलवे स्टेशन के सौंदर्यीकरण का काम जब पूरा हो जाएगा, तो अब तक सुविधाओं से महरूम रहे यात्रियों के लिए यह एक अद्भुत तोहफा होगा।
हालांकि इसका श्रेय सुरेश प्रभु को नहीं मिल पाएगा, जो अब रेलवे मंत्रालय से बदल दिए गए हैं। रेलवे स्टेशन के बाहर तिपहिया, रिक्शा व अन्य वाहनों का निरंतर शोर होता रहता है, जो एक अजीब किस्म की चिढ़ पैदा करता है। यहां उनकी ड्राइविंग को नियंत्रित करने के लिए किसी तरह के ठोस नियमों का प्रावधान नहीं है, जिससे यहां आने वाले नए व्यक्ति को मायूसी होती है। ऐसी स्थिति राष्ट्रीय राजधानी में देखकर दुख होना स्वाभाविक ही है। जिन लोगों को भी इन हालात से गुजरना पड़ता है, वे इनमें सुधार की अपेक्षा रखता है। हालांकि ये उम्मीदें कब पूरी होंगी, इसके बारे में मौजूदा हालात को देखकर साफ तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। मैं इस तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों का कालेज समय से ही सामना करता रहा हूं। दिल्ली के मध्य भाग, जिसे लुटियन कैपिटल भी कहते हैं, में रहने का अपना एक अलग अनुभव है। यहां पर वामपंथी तथा दक्षिणपंथी लोगों को विचारणीय विषयों पर निरंतर व कभी खत्म न होने वाली बहस करते अकसर देखा जा सकता है। मुझे हिमाचल प्रदेश के जंगलों में लिखी अपनी एक रचना (हायकू) ‘जंगल बैबलर्स/न्वाइजी फाइटिंग/ओवर ए स्ट्रॉ’ की याद आती है। अगर आप प्रतीक्षालय में बैठते हैं, तो वहां पहले ही समूहों में बैठे लोगों की भीड़ होती है। किसी बार में भी हर कोई यह जानता है कि दूसरा व्यक्ति क्या बोलने जा रहा है। ऐसे लोगों में कई या तो खुद लेखक होते हैं या मीडिया में छप रहे लोग होते हैं। उनके लगाव व विचारधारा की पहले से ही चर्चा हो चुकी होती है। इन समूहों द्वारा प्रकट किए गए मत अथवा विचारों को मीडिया में स्थान मिल जाता है, क्योंकि समाचार-पत्रों से जुड़े लोग अथवा संपादक भी बहस में भाग लेते हैं। यह दुखद विषय है कि इन बहसों से कई बार गलत निष्कर्ष बाहर निकल कर आते हैं। ऐसी ही एक बहस में एक बार सामान्य विचार अथवा निष्कर्ष यह निकला कि उत्तर प्रदेश चुनावों में समाजवादी पार्टी को बढ़त मिलेगी। यह गलत दिशा में जाने वाला एक गलत अनुमान था।
हरियाणा के संदर्भ में भी गलत अनुमान लगाए गए। बहस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा व ओमप्रकाश चौटाला का ही उल्लेख होता रहा। अब अधिकतर लोग वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्थिति को मजबूत बताकर उनकी चर्चा कर रहे हैं। राहुल गांधी के अमरीका तथा गुजरात दौरों की भी चर्चा हो रही है। किसी ने भी वर्ष 2014 में मोदी की इतनी बड़ी जीत का अनुमान नहीं लगाया था। बाद में कुछ लोग सामंजस्य बनाते देखे गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी निरंतर परिवर्तन की बात कर रहे हैं। इसके बावजूद वे मानते है कि उनका कोई विकल्प नहीं है। वे इसे टीएनए फैक्टर कहते हैं। नरेंद्र मोदी को चुनावी चुनौती देने वाला आज कोई नेता नहीं है। इस बार तापमान के पैमाने ने एक बदलाव की ओर इशारा किया। दिल्ली में बारिश धड़ाधड़ होती रही तथा मुख्य मार्ग जाम हो गए। मेरे कई दोस्त, जो एक बैठक में भाग लेने के लिए अपने घरों से चले, आधे रास्ते का सफर करने के बाद वापस चले गए। ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि डे्रनेज सिस्टम ओवरफ्लो हो रहा था, वह बंद हो चुका था और परिमाणस्वरूप सड़कों पर बाढ़ आ गई थी। सफाई व्यवस्था में कमी के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई। मैंने अपने ऐसे दोस्तों से कहा कि एक प्रतिष्ठित पत्रकार ठीक ही कह रहा था कि जब कोई पत्रकार किसी को मित्र कहता है तो इसका यह मतलब नहीं होता कि व्यक्ति मित्र होता है। मैं इस बात से हैरान हूं कि फिर से यह कहा जाने लगा है तथा विचार प्रकट किया जा रहा है तथा संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि खराब हो रही है। इसके पीछे जो कारण गिनवाए जा रहे हैं, उनमें शामिल हैं अर्थव्यवस्था का धीमा विकास, रोजगार के अवसर न बढ़ना, निवेश न बढ़ना, मूल्यों में निरंतर वृद्धि तथा पेचीदगी के कारण जीएसटी का फेल हो जाना। जितनी भी बहसें चली, उनके समापन के बाद कोई भी यह नहीं बता सका कि आखिरकार मोदी का वारिस कौन होगा। मोदी अभी भी देश के ऐसे नेता बने हुए हैं जिन्हें कोई भी चुनौती नहीं दे पा रहा है। डेरा सच्चा सौदा तथा बलात्कार कांड पर चर्चा खत्म हो रही है, लेकिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का घटनाक्रम अब चर्चा का केंद्र बिंदु बन गया है। ऐसे घटनाक्रमों को प्रचारित करने तथा भय का वातावरण बनाने की एक प्रवृत्ति सी चल निकली है। मोदी, जिनका अभी कोई प्रतिस्पर्द्धी नजर नहीं आता, की देश में बदलाव लाने की योग्यता की आगामी दिनों में परख होने वाली है।
बस स्टैंड
पहला यात्री : हमें बस अड्डे पर आने की इजाजत क्यों नहीं दी जाती?
दूसरा यात्री : लगभग हर दिन कोई न कोई विधायक इसका उद्घाटन कर रहा होता है, बेशक यह पहले भी क्यों न हो चुका हो।
ई-मेलः singhnk7@gmail.com
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