दोषी कौन

By: Sep 12th, 2017 12:02 am

(किशन सिंह गतवाल, सतौर, सिरमौर )

भारत के लोग अत्यंत धार्मिक और धर्मभीरु हैं। यही कारण है कि बड़ी सहजता से लोग बाबाओं के जाल में फंसकर ठगी का शिकार बनते रहे हैं। वास्तव में भोले-भाले लोगों की आस्था और धर्मपरायणता से सरेआम छलावा होता है। बड़ी विचित्र सी बात है कि श्रद्धालुओं, विशेषकर महिलाओं को बार-बार धोखा दिया जाता है। दर्शन के मोल-तोल, प्रसाद के आकार-प्रकार भिन्न-भिन्न पाए जाते हैं। अतः जो कोई बेकार, पर थोड़ा शातिर हो, वह बाबा बन जाता है और अपने ढोंग और पाखंड के बल पर अतिशीघ्र करोड़पति बन जाता है। श्रद्धालु बड़ी आसानी से इनके जाल में फंस जाते हैं। लोग बाबाओं के चरणों में अतिशीघ्र नतमस्तक हो जाते हैं। दुख तब होता है, जब बड़े-बड़े राजनेता, अधिकारी और शिक्षित लोग इनके चरणों में दंडवत प्रणाम करते हैं और अकूत संपदा चढ़ावे के रूप में पेश करते हैं। इस खेल में साम-दाम-दंड का भी खूब उपयोग होता है। कलियुगी बाबाओं का कारवां आगे तेजी से चल पड़ता है। कुछ शातिर श्रद्धालु नए लोगों के भरमाने और बरगलाने में लगकर इस कार्य को आगे बढ़ाते हैं। राजनेता तो इस यज्ञ में आहुतियां सदा से देते आए हैं। इस कार्य में अपवाद कोई नहीं। चुनाव आते ही तांत्रिकों और इन धर्मनिरपेक्ष बाबाओं के वारे न्यारे हो जाते हैं। इनके द्वार सभी के लिए खुले होते हैं। वैसे डेरे तो नितांत अस्थायी आवास होने चाहिएं, पर वे अतिशीघ्र अभेद्य किले बन जाते हैं। सरकारें, गुप्तचर सेवक जब तक नींद से जागते हैं, तब पानी सिर से ऊपर जा चुका होता है। देश के भीतर ऐसी शक्तिशाली सल्तनतों का नेटवर्क खड़ा होना उचित नहीं। समय रहते जाग जाना श्रेयस्क होता है।


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