मन्नत नहीं, अभिशाप समझ छोड़ी

By: Sep 8th, 2017 12:05 am

गगरेट  —  वो अभी बोल तो नहीं सकती, लेकिन विचारमग्न जरूर लग रही है। मानो मां चिंतपूर्णी से सीधा सवाल कर रही है कि तेरे दर तो लोग गोद भरने की मन्नत मांगने आते हैं तो फिर तेरे ही चरणों में मेरी तिलांजलि क्यों? क्या वास्तव में यह वही समाज है, जिसमें बेटे व बेटी में फर्क न करने की परिकल्पना की जा रही है। अगर मुझे क्यों ही छोड़ना था तो फिर पेट में ही मेरी कब्र खोद दी होती। मुझे मां इसलिए दुनिया में लेकर आई कि उसके आंचल का प्यार पाने की बजाय अपनी पहचान के लिए भटकती रहूं। शिशु लिंग अनुपात में शर्मनाक स्थिति का दाग ढो रहे जिला ऊना में वास्तव में बेटी का यूं तिरस्कार स्तब्ध करने वाला तो है ही बल्कि समाज को आईना दिखाने वाला भी कि सिर्फ नारों से मानसिकता नहीं बदली जा सकती। मां चिंतपूर्णी के चरणों में मिली इस नन्हीं कली कि क्या पहचान है, इसका अभी तक किसी को कुछ नहीं पता। आखिर वह क्या कारण रहे कि ममता इतनी निष्ठुर हो गई कि जिसे नौ माह तक अपने पेट में पाला उसी को चुपचाप तरीके से तिलांजलि दे दी गई। अब मां के चरणों में मिली है तो उसकी पहचान दुर्गा ही मान लेते हैं। दुर्गा कहां से आई, उसे यहां कौन छोड़ गया, क्यों छोड़ गया, ऐसे कई सवाल हैं जो अभी तक अनसुलझे हैं। सवाल यह भी है कि आखिर छह माह बाद ही उसे यहां छोड़ने की जरूरत क्यों महसूस हुई। दुर्गा अभी अबोध है, उसे नहीं पता कि उससे साथ कैसा जघन्य अपराध किया गया है। जो वास्तव में कानून की अदालत के साथ-साथ भगवान की अदालत में भी अक्षय है। जिला में शिशु लिंग अनुपात के आंकड़े इसकी गवाही पहले ही भर रहे हैं कि जिला में बेटियों को मां-बाप का कितना प्यार मिल पाता है। अब साक्षात इसका उदाहरण भी देखने को मिल गया। कुछ लोग औलाद के लिए तरस रहे हैं, हर मंदिर मठ में नाक रगड़ रहे हैं और जिनके पास ये खजाना है वे ऐसे फेंक रहे हैं जैसे रबड़ की गुडि़या टूट जाने पर फेंक दी जाती है। यही वजह है कि उसके मां-बाप की तलाश करने के साथ यह भी तय होने लगा है कि मां-बाप के न मिलने की स्थिति में उसे पालना घर भेजा जाए या फिर संबंधित विभाग के माध्यम से उसे किसी दंपति को गोद दिया जाए। बताते चलें कि कोई अज्ञात व्यक्ति गगरेट-होशिटारपुर सड़क मार्ग पर स्थित फोरेस्ट बैरियर के साथ बने रेन शेल्टर में करीब छह माह की बच्ची को लावारिस छोड़ गया।

एसएचओ के दुलार से मुस्काराई मासूम

दुर्गा आसपास के बदले माहौल से कुछ समझ नहीं पा रही है, लेकिन फिर भी एसएचओ ठाकुर चैन सिंह ने जब दुलार के साथ उसे भरोसा दिलाया कि उसके मम्मी-पापा को ढूंढ लेंगे तो उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान यह बता रही थी कि उसने भी अभी मां की गोद में जाने की आस नहीं छोड़ी है। इतना जरूर है कि पुलिस भी उसके लिए ठिकाना ढूंढने के लिए चिंतित है।

पंजाब के पुलिस थानों को दी सूचना

बच्ची जब रोने लगी तो पुलिस कर्मियों ने तत्काल दूध मंगा कर बच्ची को पिलाया। इसके बाद उसे सिविल अस्पताल गगरेट लाया गया। यहां से डाक्टरों ने उसे क्षेत्रीय अस्पताल ऊना रैफर कर दिया। वहां पर डाक्टरों ने बच्ची के पूर्णतया स्वस्थ होने की पुष्टि की है। पुलिस ने पंजाब के विभिन्न पुलिस थानों में भी इस बावत सूचित कर दिया है।

यह कैसी ममता…कचरे में फेंका जिगर का टुकड़ा

गगरेट  —  इसे विकृत मानसिकता कहें या फिर सनकीपन कि जो बच्चे असल दुलार के हकदार हैं, वे ही अपराध का शिकार हो रहे हैं। कभी समाज में बदनामी के डर से तो कभी अन्य कारण बच्चों को मां की ममता से महरूम कर रहे हैं। जिला ऊना में बच्चों के साथ अपराध कोई नई बात नहीं है, बल्कि इससे पहले भी कई बच्चे क्रूरता के साथ मौत के घाट उतर गए तो कई जन्म लेने के साथ मां-बाप के प्यार से मरहूम हो गए। हकीकत यही है कि विकृत मानसिकता बदल ही नहीं पा रही और बच्चे घर से बाहर ऐसे फेंके जा रहे हैं, जैसे कचरा फेंका जाता है। गगरेट के फोरेस्ट बैरियर में मिली छह माह की दुर्गा के मां-बाप मिलेंगे या नहीं इस पर रहस्य बरकरार है, लेकिन जिला ऊना में इससे पहले भी बदस्तूर बच्चे अपराध का शिकार होते आए। ऊना के हमीरपुर रोड पर कुछ अरसा पहले एक बच्चा झाडि़यों में फेंक दिया गया था, जिसकी मौत हो गई थी। इससे पहले अंब के नंदपुर के समीप एक नवजात शिशु झाडि़यों में फेंक दिया गया। उसकी किस्मत अच्छी थी कि सर्द रातों में भी उसके रोने की आवाज साथ के एक घर के लोगों ने सुन ली और उसे समय पर अस्पताल पहुंचा दिया गया और वह बच गया। उस मामले में पुलिस तफ्तीश भी काबिले तारीफ रही और पुलिस ने उस मां को ढूंढ निकाला, जिसने इसे जन्म दिया। दरअसल उस मां ने बदनामी के डर से अपने कलेजे के टुकड़े को फेंक दिया था। यही नहीं, बल्कि कुछ समय पहले दौलतपुर चौक के अस्पताल के शौचालय में किसी ने भ्रूण फेंक दिया था। अभी कुछ दिन पहले ऊना में ही एक शिशु की हत्या का मामला पुलिस ने दर्ज किया था और अब गगरेट के फोरेस्ट बैरियर के पास छह माह की अबोध बच्ची का लावारिस मिलना स्तब्ध कर देने वाली घटनाएं हैं। जाहिर है कि इस विकृत मानसिकता से पार पाना पुलिस के बस की बात भी नहीं है। ऐसे में यह तय कौन करे कि ऐसी आपराधिक घटनाओं की कम से कम पुनरावृत्ति न हो। उधर, वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र शर्मा का कहना है कि ऐसी घटनाएं अपराध की श्रेणी में आती हैं और भारतीय दंड संहिता में ऐसी घटनाओं के लिए सजा का प्रावधान भी है, लेकिन अब लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी। अपनी छटपटाहट के लिए बच्चों पर क्रूरता वास्तव में दिल दहला देने वाली घटनाएं हैं।


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