मुसीबतें झेलता डिजिटलाइजेशन

By: Sep 22nd, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

प्रो. एनके सिंहइस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि डिजिटलाइजेशन का आरंभिक प्रस्तुतीकरण बड़े पैमाने पर नागरिकों के लिए असुविधा पैदा कर रहा है। सबसे पहले ब्रॉडबैंड इंटरनेट की उपलब्धता अभी तक पर्याप्त नहीं है। जहां यह उपलब्ध भी है, वहां रखरखाव में समस्या आ रही है। जिस देश में करीब 95 फीसदी लेन-देन नकद रूप में हो रहे हों, वहां भुगतान के डिजिटल रूप को अपनाना एक दुःस्वप्न बन गया है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इंटरनेट सेवा अभी सभी क्षेत्रों में नहीं है…

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि डिजिटलाइजेशन देश की आर्थिकी में और अधिक पारदर्शिता लाएगा। इसके साथ इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इसका आरंभिक प्रस्तुतीकरण बड़े पैमाने पर नागरिकों के लिए असुविधा पैदा कर रहा है। सबसे पहले ब्रॉडबैंड इंटरनेट की उपलब्धता अभी तक पर्याप्त नहीं है। जहां यह उपलब्ध भी है, वहां रखरखाव में समस्या आ रही है। जिस देश में करीब 95 फीसदी लेन-देन नकद रूप में हो रहे हों, वहां भुगतान के डिजिटल रूप को अपनाना एक दुःस्वप्न बन गया है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इंटरनेट सेवा अभी सभी क्षेत्रों में नहीं है, क्योंकि अधिकतर दूरस्थ क्षेत्र अभी भी इसकी पहुंच से बाहर हैं। भारत में 33 मिलियन इंटरनेट यूजर्स हैं और करीब 118 करोड़ आधार कवरेज है। बैंकिंग लेन-देन में 691 मिलियन डेबिट कार्ड हैं और 25 मिलियन क्रेडिट कार्ड हैं। लेकिन रखरखाव व कनेक्टिविटी की समस्याओं के कारण कार्य करने की क्षमता 67 फीसदी कम है। इससे जुड़ा यह पक्ष जरूर कुछ तसल्ली देता है कि ग्रामीण स्कूलों में भी कम्प्यूटर हैं, लेकिन यह कार्य करने की स्थिति में नहीं हैं। इन्हें केवल दिखावे के लिए रखा गया है तथा बच्चों को पढ़ाने के लिए इनका प्रयोग नहीं हो रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि डिजिटलाइजेशन ने अर्थव्यवस्था को साफ करने का काम किया है और विकास में भी इसकी भूमिका है। अब तक बैंकों के लिए जो नकदी प्रयुक्त नहीं हो पा रही थी, उसे सर्कुलेशन में लाकर देश का विकास किया जा रहा है। पारदर्शिता के इस युग में हम 37000 फर्जी कंपनियों की पहचान करने में सक्षम हुए हैं। ये कंपनियां कालेधन के लिए इंजन के रूप में काम कर रही थीं। नोटबंदी के बाद भी ऐसी कंपनियां उन लोगों की मददगार बनीं, जिन्हें बरसों से जोड़े कालेधन को खपाने में दुविधा हो रही थी। यह दीगर है कि ऐसी फर्जी या पेपर कंपनियों के मार्फत धनकुबेरों ने अपने कालेधन की बड़ी राशि को खपाया था।

डिजिटल तकनीक को ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचाने में जहां दिक्कतें आ रही हैं, वहीं कई अन्य मामलों में भी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। आर्थिक संसाधनों की कमी, तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव, साक्षरता की कमी आदि ऐसी कुछ समस्याएं हैं, जो इस पूरी प्रक्रिया को जटिल बनाती हैं। डिजिटलाइजेशन में जो आरंभिक समस्याएं आ रही हैं, उनके समाधान के लिए किसी कारगर प्रणाली की स्थापना भी नहीं की गई है। सलाहकारों के रूप में मदद के लिए विस्तृत नेटवर्क होना चाहिए था अथवा बैंकों को ही इस प्रकार की सेवाएं उपलब्ध करवानी चाहिएं। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। आयकर रिटर्न का एक उदाहरण लेते हैं। इससे पता चल जाता है कि जनता को किस प्रकार इधर से उधर भागदौड़ करनी पड़ती है। इस मामले में आयकर विभाग ने गलती से एक व्यक्ति को दो पैन कार्ड जारी कर दिए। इस व्यक्ति ने यह मामला विभाग के ध्यान में लाया, लेकिन यह गलती ठीक नहीं की गई। उसका पहला पैन कार्ड आयकर विभाग ने 10 वर्षों के लिए स्वीकार किया। अचानक आयकर रिटर्न के लिए डिजिटल लिंक अनुपलब्ध हो जाता है। ऐसा करते हुए विभाग, जिसने गलती ठीक नहीं की, दूसरे गलत पैन कार्ड को वैध कर देता है तथा प्रयुक्त किए जा रहे पहले पैन कार्ड को निष्क्रिय कर देता है। इस व्यक्ति ने जिस शहर में यह पैन कार्ड बनवाया था, उस शहर को अब वह छोड़ चुका है। उसको अब कई अधिकारियों व अनेक शहरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। इस निर्दोष व्यक्ति, जिसकी कोई गलती नहीं है, से आयकर सलाहकार व वकील अब पैसा ऐेंठ रहे हैं। इस तरह इस मामले में खामियाजा उस व्यक्ति को भुगतना पड़ रहा है, जिसने कोई गलती ही नहीं की।

इसी तरह मैं एक अन्य व्यक्ति से मिला जिसका नाम पिछले सभी दिनों में लेन-देन में थोड़े से अंतर के साथ स्वीकार किया जा रहा था, लेकिन अब डिजिटल सिस्टम इसे स्वीकृत नहीं करता तथा उसे इसे ठीक करवाने के लिए कई विभागों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। कई बार नाम तथा अन्य जानकारियों में मामूली अंतर के कारण अवैध गतिविधियां चलने लगती हैं। डिजिटलाइजेशन में आरंभिक कठिनाइयां आ रही हैं। प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण में जो बाधाएं आ रही हैं, उन्हें दूर करने की जरूरत है। एक व्यक्ति के पिता का नाम बैंक खाते में ओंकार चंद है। लेकिन आधार कार्ड पर उसका नाम ओंकार सिंह है। अब वह मुसीबत में है। अब तक उसका नाम स्वीकृत हो रहा था। आधार कार्ड के मामले में आसानी रहती है, क्योंकि वहां गलतियां ठीक करने के लिए प्रणाली बनाई गई है और यह सिस्टम ठीक से काम कर रहा है। मैंने एक किताब ‘ईस्टर्न एंड क्रॉस कल्चरल मैनेजमेंट (स्प्रिंगर)’ लिखी है। इसमें मैंने भारत में लचर प्रबंधन के उपचार को सुझाव दिए हैं। यहां अभी ‘चलता है’ वाली कार्य-संस्कृति है। मैंने भारत के प्रबंधन को यह नया नाम दिया है, नया शब्द गढ़ा गया है, जो मापदंडों के साथ समझौते की स्थिति को पूरी तरह परिभाषित करता है तथा उसकी व्याख्या करता है। यह नई व्याख्या काफी लोकप्रिय हुई है। भारत में स्तरहीन गुणवत्ता को निचले स्तर की गुणवत्ता मानकर उसे स्वीकृत कर लिया जाता है, बजाय उसे निरस्त करने के। लेकिन डिजिटल अर्थव्यवस्था को यह मंजूर नहीं होता, वहां संपूर्ण शुद्धता चाहिए। कम्प्यूटर का प्रयोग शुरू करने वालों के लिए यह आम तौर पर होने वाला अनुभव है कि अगर आपने मूल प्रति की तुलना में थोड़े से अंतर के साथ कोई संदेश भेजा, तो सिस्टम काम नहीं करेगा। मैंने प्रयोग के तौर पर कम्प्यूटर पर अंगे्रजी के छोटे अक्षरों में सिंह एनके लिखा। मूल प्रति में सिंह का एस कैपिटल लैटर्स में लिखा गया है। इसलिए कम्प्यूटर ने काम नहीं किया। इसने तभी काम किया, जब सिंह का एस कैपिटल लैटर्स में लिखा गया। हम आरंभ में कई समस्याएं झेल रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में डिजीटल अर्थ-व्यवस्था उच्च उत्पादकता तथा पारदर्शिता हासिल करेगी, ऐसी आशा है।

बस स्टैंड

पहला यात्री : आजकल नेतागण वीडियो कान्फे्रंसिंग के जरिए क्यों उद्घाटन कर रहे हैं? वे उद्घाटन स्थल पर स्वयं जाकर उद्घाटन क्यों नहीं कर रहे?

दूसरा यात्री : नेता आजकल जनता का सामना करने से डर रहे हैं।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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