राधाष्टमी के बाद छतराड़ी जातर ने छटा बिखेरी
भरमौर — यहां रियासत काल से राक्षसों के मुखौटे पहनकर कर बुरी आत्माओं को गांव से भगाया जाता है। इसे मान्यता कहें या फिर विश्वास सदियों से चली आ रही इस परंपरा को 21वीं सदी में निभाया जा रहा है। राक्षसों के मुखौटे पहन कर एक विशेष जाति वर्ग के लोगों द्वारा यहां नृत्य किया जाता है और इस दौरान वहीं लोग मुखौटे रूपी राक्षसों और बुरी आत्माओं को जंगल की ओर भगा देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के पीछे की एक बड़ी वजह यह मानी जाती है कि ऐसा करने से गांव शुद्ध हो जाता है। जिला मुख्यालय चंबा से 56 किलोमीटर की दूरी पर बसा छतराड़ी गांव में आयोजित होने वाले जातर मेले के दौरान इस परंपरा का निर्वाहन किया जाता है। बुधवार को यहां आरंभ हुए छतराड़ी जातर मेले के शुभारंभ के मौके पर मुखौटा नृत्य की रस्म को निभाया गया और सैकड़ों लोग इस पूरे घटनाक्रम के गवाह बने। छतराड़ी का जातर मेला मां शिव शक्ति को समर्पित है। कहा जाता है कि किसी समय जिस स्थान पर छतराड़ी गांव बसा है, वहां पर जंगल हुआ करता था और गांवों के लिए इकलौता रास्ता होने के कारण यहां से आने-जाने वाले ग्रामीणों को राक्षस अपना शिकार बनाते थे। लिहाजा मां शिव शक्ति ने यहां पर राक्षसों का नाश किया था। अलबत्ता मौजूदा समय में भी छतराड़ी के शिव शक्ति मंदिर में राक्षसों के मुखौटे रखे हुए है। मणिमहेश यात्रा के तहत राधाअष्टमी के शाही न्हौण के समापन के साथ ही प्रसिद्ध जिला स्तरीय जातर मेले का आगाज बुधवार को हुआ। शुभारंभ मौके पर ग्राम पंचायत प्रधान छतराड़ी पुष्पा शर्मा ने बतौर मुख्यातिथि उपस्थिति दर्ज करवाई, वहीं प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन डा. जनक राज विशेष अतिथि के रूप में यहां मौजूद रहे। चार दिनों तक चलने वाले इस मेले के दौरान विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा, साथ ही प्रतिदिन एक सांस्कृतिक संध्या भी होगी। छतराड़ी गांव के शिव शक्ति मंदिर का निर्माण लकड़ी से हुआ है। मंदिर का शायद ही कोई भाग ऐसा हो जहां पर पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। लिहाजा मंदिर की लकड़ी पर की गई नक्काशी अद्भुत कारीगरी का एक बेहतरीन नमूना पेश करती है।
पश्चिम की ओर है मंदिर का द्वार
छतराड़ी गांव में स्थित शिव शक्ति मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस द्वार पश्चिम दिशा है। इसके पीछे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। कहा जाता है कि मां के आदेश पर जब गोगा कारीगर ने मंदिर का निर्माण पूरा कर लिया, तो इसके द्वार को लेकर वह असमंजस की स्थिति में था। अलबत्ता शिव शक्ति मां ने गोगा को आदेश दिया था कि मंदिर को घुमाओ और जहां यह रूक जाता है उस तरफ इसका द्वार बनाया जाए।
डंडारस नृत्य होता है मेले का आकर्षण
मणिमहेश यात्रा के राधाअष्टमी पर होने वाले बडे़ न्हौण के बाद छतराड़ी गांव में जातर मेले का आयोजन किया जाता है। पवित्र डल झील से गंगाजल लाकर मां शिव शक्ति की मूर्ति को स्नान करवाया जाता है। अलबत्ता विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करने के बाद अगले दिन यहां पर जातर मेला शुरू हो जाता है। बुधवार को यहां पर जातर मेले का शुभारंभ हुआ है। खास बात यह है कि मेले मे गद्दी समुदाय के पुरुष पारंपरिक पहनावे चोला और डोरा लगाकर नृत्य करते हैं।
एक स्तंभ पर बना है छतराड़ी मंदिर
हिमाचल को देवभूमि कहा जाता है और यहां पर मौजूद मंदिर खुद के भीतर ऐतिहासिक घटनाएं समेटे हुए हैं। मंदिरों के निर्माण को लेकर जुड़ी दंत कथाएं हो या फिर इनके निर्माण में इस्तेमाल की गई बेहतरीन कारीगरी हर किसी शख्स को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, वहीं 21वीं सदी में देवी-देवताओं की मौजूदगी को लेकर अकसर प्रश्न खडे़ करने वाले भी देवभूमि में लोगों की देवताओं के प्रति गूढ़ आस्था के चलते पल भर सोचने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं, जिला की उपतहसील धरवाला के छतराड़ी गांव में भी एक ऐसा उदाहरण है, जिसके निर्माण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है कि 780 ई पूर्व छतराड़ी गांव में शिव शक्ति मंदिर की स्थापना हुई थी और इसका निर्माण करने वाले कारीगर का एक ही हाथ था। रोचक बात यह है इस मंदिर का निर्माण एक स्तंभ पर हुआ है तथा वर्षों पूर्व यह मंदिर स्तंभ पर घूमता रहता था। इस मंदिर का निर्माण गोगा नाम के कारीगर ने किया था।
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