एच1बी वीजा पर साहस दिखाइए

By: Oct 24th, 2017 12:08 am

  डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

भारत सरकार के सामने दो रास्ते खुले हैं। एक रास्ता है कि अमरीका से याचना करें कि एच1बी पर सख्ती न की जाए, भारतीय इंजीनियरों का पलायन होता रहे, अमरीकी कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बनी रहें और हम पीछे पड़े रहें। दूसरा उपाय है कि ट्रंप की पालिसी को सकारात्मक ढंग से लें और अपनी न्याय, पुलिस तथा बुनियादी संरचना को चुस्त करें, अपने इंजीनियरों के लिए भारत में धंधा करना आसान बनाएं, भारतीय कंपनियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ा करें और अमरीका को पछाड़ें…

भारतीय इंजीनियरों द्वारा अमरीका को पलायन करने के लिए अमरीकी सरकार द्वारा जारी एच1बी वीजा का उपयोग किया जाता है। इस वीजा के अंतर्गत विदेशी इंजीनियरों को छह वर्षों तक अमरीका में काम करने की छूट होती है। इस वीजा को जारी करवाने के लिए अमरीकी कंपनियों को अमरीकी सरकार को अर्जी देनी होती है। इन्हें प्रमाणित करना होता है कि वांछित क्षमता के इंजीनियर अमरीका में उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए इन्हें विदेशी इंजीनियरों को रखने की अनुमति दी जाए। इस वीजा का उपयोग करके हर वर्ष एक लाख से अधिक भारतीय इंजीनियर अमरीका को पलायन करते हैं।

इस पलायन के अमरीका पर दो विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। सुप्रभाव यह पड़ता है कि अमरीकी कंपनियों को श्रेष्ठ गुणवत्ता के इंजीनियर उपलब्ध हो जाते हैं। ये इंजीनियर अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद बनाते हैं, जैसे नई दवाओं का आविष्कार करते हैं अथवा अच्छे सॉफ्टवेयर लिखते हैं। इनके इस योगदान से अमरीकी कंपनियां विश्व में आगे निकल जाती हैं। दूसरी तरफ अमरीकी इंजीनियरों पर इस पलायन का दुष्प्रभाव पड़ता है। अमरीकी कंपनियों की लगातार आलोचना होती रही है कि ये एच1बी वीजा का दुरुपयोग करके सस्ते भारतीय इंजीनियरों को नौकरी देते हैं और तुलना में महंगे अमरीकी इंजीनियरों बेरोजगार रह जाते हैं। तर्क है कि अमरीका में उच्च कोटि के इंजीनियर उपलब्ध हैं। केवल सस्तेपन के कारक से प्रभावित होकर एच1बी के अंतर्गत भारतीय इंजीनियरों का आयात किया जाता है।

राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इस पूरे मसले के दुष्प्रभाव को ज्यादा महत्त्व दिया है और अपने एच1बी वीजा जारी करने के नियमों को सख्त बनाना चालू कर दिया है। इस दिशा में टं्रप ने तीन परिवर्तन किए हैं। पहला यह कि वीजा धारक को उसी कंपनी के लिए कार्य करना होगा, जिसके द्वारा एच1बी वीजा की अर्जी पर वीजा जारी हुआ है। अकसर अमरीकी कंपनियां बड़ी संख्या में एच1बी वीजा जारी करा लेती हैं। उसके बाद भारत से आए इंजीनियरों को मनचाही अमरीकी कंपनी को स्थानांतरित कर देती हैं। दूसरे, पूर्व में एच1बी वीजा धारक के पति अथवा पत्नी को आसानी से अमरीका में कार्य करने की इजाजत मिल जाती थी। तीसरा, अमरीका में रह रहे भारतीय मूल के अमरीकी नागरिकों के परिजनों को अमरीका में प्रवेश देने पर ट्रंप प्रतिबंध लगा रहे हैं। ट्रंप द्वारा लिए गए इन कदमों से भारतीय इंजीनियरों के लिए अमरीका में प्रवेश करना कठिन हो जाएगा। मेरे आकलन में ट्रंप द्वारा उठाया गया यह कदम अमरीकी कंपनियों के लिए हानिप्रद होगा। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर श्रेष्ठतम इंजीनियरों की मांग है। जैसे किसी कंपनी द्वारा सॉफ्टवेयर बनाने की टीम में तीन भारतीय, दो अमरीकी, एक मेक्सिकन, दो इजराइयली एवं एक पाकिस्तानी नागरिक है। कंपनी वैश्विक स्तर पर प्रतिभा खोजती है। अब यदि केवल अमरीकी इंजीनियरों से काम लेना हो, तो भारतीय या दूसरे विदेशियों की उत्कृष्ट क्षमता से कंपनी वंचित हो जाएगी और कंपनी की अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में खड़े रहने की ताकत का हृस होगा। तत्काल अमरीकी इंजीनियरों को मिलने वाले रोजगार अवश्य बढ़ेंगे, परंतु दो-चार वर्षों में ही अमरीकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक ताकत कम हो जाएगी और वे विश्व बाजार में पिछड़ेंगी। बहरहाल यह अमरीका की बात है। हमें देखना है कि हम डोनल्ड ट्रंप की नई नीति का सामना किस प्रकार करें।

एच1बी पर प्रतिबंध लगाने से भारतीय इंजीनियरों का अमरीका को पलायन कम होगा। इसका भारत पर सीधा दुष्प्रभाव पड़ेगा। जैसे गांव का युवा शहर को पलायन न कर पाए, तो शहर से भेजी जाने वाली रकम से गांव वंचित हो जाएगा। लेकिन वही युवा यदि गांव में रहकर दुकान अथवा कुटीर उद्योग लगाए, तो गांव पर तमाम तरह के सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। गांव की आय बढ़ेगी। दुकान में दो-तीन युवाओं को रोजगार मिलेगा। यानी गांव पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि गांव की सुविधाएं कैसी हैं। मेरे पास हाल ही में एक 30 वर्षीय व्यक्ति रोजगार मांगने के लिए आया। वह 10,000 रुपए प्रतिमाह पर किसी कंपनी में कार्यरत है। उसने गांव से पलायन किया और रोजगार पाया, लेकिन उसके छोटे भाई ने गांव में ही कंस्ट्रक्शन मैटीरियल की दुकान लगा ली। उसने पलायन नहीं किया। आज उसने कमाई से निजी मकान बना लिया है, जबकि पलायनकर्ता किराए के मकान में रह रहा है। इसी तरह भारतीय इंजीनियरों पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत में सुविधाओं की क्या स्थिति है। सुविधाएं पुष्ट होंगी, तो पलायन के अभाव में सक्षम भारतीय इंजीनियर भारत में नई कंपनियां लगाएंगे और भारत को उसी तरह बढ़ाएंगे जैसे कंस्ट्रक्शन मैटीरियल की दुकान लगाकर युवा ने किया है। इसके विपरीत एच1बी वीजा पर वही प्रतिबंध भारत के लिए हानिकारक हो जाएगा, यदि सुविधाएं कमजोर होंगी। भारत सरकार की ट्रंप के प्रतिबंधों पर प्रतिक्रिया को उपरोक्त पृष्ठभूमि में देखना होगा।

यदि हमारी संस्थाएं लचर हैं, तो एच1बी पर सख्ती हमारे लिए हानिप्रद होगी। तब हमारे इंजीनियर अमरीका में रोजगार करके भारत को रेमिटेंस नहीं भेज सकेंगे, चूंकि ट्रंप ने एच1बी पर सख्ती की है। वह भारत में कंपनी बनाकर जीवनयापन कर सकेंगे चूंकि न्याय, पुलिस तथा बुनियादी संरचना लचर है। लेकिन यदि हमारी न्याय, पुलिस तथा बुनियादी संरचना उत्कृष्ट है, तो हमारे इंजीनियर भारत में रोजगार करेंगे। ध्यान रहे कि हमारे इंजीनियरों के योगदान से अमरीकी कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ी हैं। अतः हमारे इंजीनियरों को घर पर ही सही वातावरण मिल जाए, तो वे भारत में भी उत्कृष्ट कंपनियां बनाएंगे, जो कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सफल होंगी। साथ-साथ अमरीका को भारतीय इंजीनियर न मिलने से उनकी प्रतिस्पर्धा घटेगी। जिस प्रकार कबड्डी के एक खिलाड़ी के टीम बदलने से प्रतिद्वंद्वि टीमों का भविष्य बदल जाता है, उसी प्रकार हमारे उत्कृष्ट इंजीनियरों के घर रहने से हम आगे निकल सकते हैं।

ट्रंप ने अपनी पालिसी का सार्वजनिक ऐलान कर दिया है और वह इसे लागू कर रहे हैं। भारत सरकार के सामने दो रास्ते खुले हैं। एक रास्ता है कि अमरीका से याचना करें कि एच1बी पर सख्ती न की जाए, भारतीय इंजीनियरों का पलायन होता रहे, अमरीकी कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बनी रहें और हम पीछे पड़े रहें। दूसरा उपाय है कि ट्रंप की पालिसी को सकारात्मक ढंग से लें और अपनी न्याय, पुलिस तथा बुनियादी संरचना को चुस्त करें, अपने इंजीनियरों के लिए भारत में धंधा करना आसान बनाएं, भारतीय कंपनियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ा करें और अमरीका को पछाड़ें। तब आश्चर्य है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अमरीकी वाणिज्य सचिव से अनुनय विनय की है कि एच1बी पर सख्ती न करें। प्रतीत होता है कि भारत सरकार में साहस नहीं है कि अपनी संस्थाओं को ठीक करके भारत को आगे ले जाए। भारत सरकार अपने युवाओं का एक्सपोर्ट करके उनके द्वारा भेजी गई रेमिटेंस पर जीना पसंद कर रही है।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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