कठिन समर्पण की करवा चौथ

By: Oct 7th, 2017 12:08 am

संबंधों की ताकत व्यक्ति को अनायास ही नहीं प्राप्त होती। संबंध को पोषण त्याग और समर्पण से मिलता है। करवा चौथ का व्रत हमें संबंधों की ताकत और उसके लिए आवश्यक समर्पण, दोनों की अनुभूति कराता है…

कठिन समर्पण की करवा चौथस्वस्थ संबंध सुख के प्रमुख स्रोत हैं। संबंधों को सहेजकर रखने वाला व्यक्ति जीवन में आने वाले तमाम उतार-चढ़ावों को अपेक्षाकृत सरलता से झेल लेता है, संबंध ही उसकी ताकत बन जाते हैं। संबंधों की ताकत व्यक्ति को अनायास ही नहीं प्राप्त होती। संबंध को पोषण त्याग और समर्पण से मिलता है। करवा चौथ का व्रत हमें संबंधों की ताकत और उसके लिए आवश्यक समर्पण, दोनों की अनुभूति कराता है। करवा चौथ पति की लंबी उम्र के लिए रखे जाने वाले व्रत का दिन होता है। करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास अथवा सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए। महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर जाने के बाद पांडव कई प्रकार के संकटों से घिर जाते हैं। संकटों से उबरने के लिए द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। यदि  दांपत्य जीवन में किसी भी तरह की परेशानी चल रही है तो करवा चौथ का व्रत इनसे मुक्ति प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर है। शास्त्रोक्त फल करने के लिए यह आवश्यक है कि किसी भी व्रत को विधिविधान पूर्वक संपन्न किया जाए। करवा चौथ का व्रत निम्म तरीके से करना उत्तम रहता है।

पूजन सामग्री और दिनचर्या ः शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिंदूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूं, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, कुमकुम, दक्षिणा के लिए पैसे। संपूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था, इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्त्व है।

करवा चौथ पूजन विधिः

प्रातः काल में नित्यकर्म से निवृत्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें। व्रत के दिन निर्जला रहें यानि जलपान न करें। व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प लेकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें। घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावलों को पीसें। फिर इस घोल से करवा चित्रित करें। इस रीति को करवा धरना कहा जाता है। शाम के समय मां पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसन पर बिठाएं। मां पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से शृंगार करें। भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें। सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें। सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें। पति, सास-ससुर सबका आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें। करवा चौथ का व्रत साम्रगी और शृंगार से अधिक समर्पण और आपसी समझदारी का पर्व है। एक ऐसी भावना जो अनुकूल या प्रतिकूल सभी परिस्थितियों में गृहस्थ जीवन को संबंधों के सहेजने के लिए कोई भी त्याग करने के लिए तैयार रहती है। करवा चौथ की भावना यदि गृहस्थ जीवन का स्थायी भाव बन जाए तो गृहस्थी तमाम झंझावातों को सुगमता से पार कर जाती है और सुख का साधन बन जाती है।


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