कब्र में चरित्र

By: Oct 14th, 2017 12:02 am

गटर में तालीम का बटुआ गुम है और इधर हम देश की बुनियाद को खोज रहे हैं। नाहन में बच्चे न तो पक्के घड़े की तरह थे कि गुरुजन अपना मनोरंजन करते हुए बेखबर हो जाते और न ही रोबोट थे कि एक बार शुरू होते तो काम कर जाते। हिमाचल में प्राथमिक शिक्षा के साथ जुड़ी खेल की क्यारी का माली अगर शिक्षक है, तो इस चरित्र का उच्चारण माटी को सोना बनाने सरीखा है। दुर्भाग्यवश गुरुओं के कुनबे से छिटक कर कुछ चेहरे सारी बिरादरी को कलंकित करने के जोश से भरे रहते हैं। नाहन में भी यही हुआ कि मासूम छात्रों को मैदान की तपती दोपहरी में छोड़कर कुछ शिक्षक अपने हलक में मादक द्रव्य गटकते रहे। शीत पेय के नाम पर मादक द्रव्यों का कॉकटेल अपने शबाब में यूं बहा कि सारी नैतिकता डूब गई। ज्ञान की नाव डूबी भी तो उस गटर में जहां पहले से शिक्षा की अर्थी फंसी थी। शराबियों की टोलियों में शिक्षा को मयखाने की तरह देखने वालों की कमी नहीं और यह भी कि नशे में डूबे लोग पूरे समाज को अपमानित करते हैं, फिर भी परिदृश्य की बेडि़यों में जकड़ा एक हिमाचल नाहन की खेल प्रतियोगिता को अभिशप्त कर गया। खेल स्पर्धा की ड्यूटी निभा रहे कुछ शिक्षक, गंदगी की मक्खी की तरह अगर मयखाने की हाजिरी भर रहे थे, तो शिक्षा के पहरेदार का गटर में छिपना कैसे कबूल होगा। हम यह नहीं कहते कि सारा शिक्षक समाज ऐसा है, लेकिन आधा दर्जन भी अगर नियंत्रण में नहीं, तो माहौल बिगड़ने की कब्र नजदीक ही है। हैरानी यह कि छोटे बच्चों की शारीरिक क्षमता के उत्थान में हो रही खेल प्रतियोगिता का मकसद वैयक्तिक अनुशासन की बागडोर को थामने सरीखा था, फिर भी काली करतूतों ने सारी उम्मीदें छीन लीं। ऐसे अध्यापकों के सुपुर्द चल रहे स्कूलों का चरित्र कैसा होगा, अनुमान लगाया जा सकता है। खेल आयोजनों से बचपन संवारने की इच्छाशक्ति पैदा होती है और नन्हे कदम जब लक्ष्य और लय को समझने लगते हैं, तो पीढि़यों के फासले कम हो जाते हैं। खेलों के मार्फत नशे के खिलाफ खड़ा देश अगर नाहन मैदान की प्रतिभा देखे तो खुश हो जाएगा, लेकिन चंद शिक्षकों ने ऐसे सम्मान को भी दाग लगा दिया। जहां बारह सौ बच्चे खेलों से रू-ब-रू अपनी बुलंदी की जमीन तलाश कर रहे हों, वह शिक्षक समुदाय एक रक्षक, पालक और प्रेरणा का स्रोत है और इस जिम्मेदारी के सदके आयोजन की सतर्कता दिखाई देती है। इस शिविर में एक साझी विरासत और राष्ट्रीय सीढ़ी दिखाई देती है और जहां अध्यापक अपने मिशन की रोशनी के लिए दीपक की तरह जलता है। विडंबना यह कि मुट्ठी भर शिक्षकों ने सारे माहौल की आहुति देकर नीच कर्म किया और पकड़े गए। हमें नहीं मालूम कि विभागीय जांच के मायने खरे साबित होंगे या मयखाने के मदारी पकड़े जाएंगे, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस वर्ग की छवि देश के भविष्य के खिलाफ होती जा रही है। राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की प्रथम पाठशाला जिस अध्यापक के सान्निध्य में लगती हो, उसका व्यवहार इतना गैर जिम्मेदार नहीं हो सकता। सिरमौर के शिक्षा उपनिदेशक ने मामले के प्रति जो सतर्कता दिखाई है, उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए विभागाध्यक्ष को सख्त कार्रवाई करनी होगी।


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