कीर्तिमुख : एक दानव, जो देवताओं से भी ऊपर है

By: Oct 14th, 2017 12:11 am

कीर्तिमुख से जुड़ी एक शानदार कहानी है। एक बार एक योगी थे। उनको साधना से कुछ शक्तियां मिल गईं जिनसे वह बहुत सी चीजें कर सकते थे। वह किसी चीज को जला कर भस्म कर सकते थे, अगर चाहें तो पानी के ऊपर चल सकते थे, वह ऐसी चीजें कर सकते थे जो दूसरे लोग नहीं कर सकते थे। उनके अंदर इस बात का अहंकार आ गया और वह खुद को सर्व शक्तिशाली महसूस करने लगे। फिर वह पूरे गर्व से जंगल में विचरण कर रहे थे, जहां शिव अपने पूरे उन्माद में थे।  योगी ने उन्हें देखा तो उनका मजाक उड़ाने लगे और उन्हें अपमानित किया। फिर पूरी तरह जड़ अवस्था में मौजूद शिव अचानक से आग की तरह पूरी तरह सजग और सहज अवस्था में सामने आ गए क्योंकि उन्हें किसी चीज का नशा नहीं था, वह अपनी मर्जी से नशे में थे। जब भी उनका मन करता है, तो वह अपनी मर्जी से नशे में होते हैं और डगमगाते हैं। लेकिन एक बार उस स्थिति से बाहर आने के बाद, वह प्रचंड रूप में आ गए। योगी के लिए यह एक अचंभे की बात थी। शिव क्रोध में थे ः ‘तुमने मेरा अपमान किया?’ उसी समय शिव ने एक नया दानव पैदा किया और उससे कहा, ‘इस योगी को खा जाओ।’ दानव का आकार और प्रचंडता देखकर वह योगी शिव के पैरों पर गिर पड़े और दया की भीख मांगने लगे। शिव नशे में थे, तो क्रोधित हो गए, लेकिन जैसे ही योगी उनके पैरों पर गिरे, वह करुणा से भर उठे और दानव से कहा, ‘ठीक है, उसे मत खाओ, तुम चले जाओ।’ दानव बोला, ‘आपने मुझे बनाया ही इस योगी को खाने के लिए था। अब आप उसे खाने से मना कर रहे हैं। तो मैं क्या करूं? मुझे बनाया ही इस मकसद से गया था।’ लेकिन शिव फिर से अपनी उन्मत्त अवस्था में पहुंच गए थे, उसी मनोदशा में उन्होंने कह दिया, ‘अपने आप को खा जाओ।’ जब वह पीछे मुड़े, उस समय तक दानव ने खुद को खा लिया था, उसने अपने शरीर का सारा हिस्सा खा लिया था। केवल चेहरा बचा हुआ था और दो हाथ उसके मुंह में जा रहे थे, सिर्फ दो हाथ ही खाने के लिए बचे हुए थे। शिव ने यह देखा और कहा, ‘अरे रुको, तुम तो एक यशस्वी मुख हो।’ बाकी सब कुछ समाप्त हो चुका था, सिर्फ चेहरा बचा हुआ था, इसलिए उन्होंने कहा, ‘तुम इस धरती, इस पूरे अस्तित्व के सबसे यशस्वी मुख हो।’ क्योंकि शिव द्वारा उन्मत्त अवस्था में कहे जाने पर कि ‘अपने आप को खा लो’, उसने तत्काल आज्ञा पालन किया था। इसलिए शिव ने कहा, ‘तुम सभी देवताओं से ऊपर हो।’ यही वजह है कि आज अगर आप किसी भी भारतीय मंदिर में जाएं, तो आप देवताओं के ऊपर इस मुख को देखेंगे, जिसमें दो हाथ मुंह के अंदर जा रहे होते हैं। उसे कीर्तिमुख के रूप में जाना जाता है। कीर्तिमुख का मतलब है एक यशस्वी चेहरा। इसलिए वह एक बहुत ही यशस्वी मुख है, जो अपने आप को खाने के लिए उत्सुक है। माना जाता है कि वह समय, आकाश और सभी कुछ से ऊपर है। देवताओं से ऊपर होने का मतलब है कि वह इन सभी आयामों से ऊपर उठ चुका है क्योंकि देवता भी कुछ हकीकतों के अधीन होते हैं। वह इन सबके ऊपर है।

-सद्गुरु जग्गी वासुदेव


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