सौर-चंद्र कैलेंडर को अपनाइए

By: Oct 10th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

अर्थव्यवस्था की दृष्टि से सौर-चंद्र कैलेंडर उत्तम बैठता है। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कुछ कठिनाई हो, तो भी ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा मुस्लिम देशों के निवेशकों के लिए सौर-चंद्र कैलेंडर उपयुक्त रहता है। सौर-चंद्र कैलेंडर देश की जनता को अपने कार्य चंद्रानुकूल करने का अवसर देकर स्पष्ट रूप से हितकारी है। संस्कृति की दृष्टि से भी यह कैलेंडर भारत की अस्मिता के अनुकूल है। अतः हमें संशोधित सौर कैलेंडर के स्थान पर सौर-चंद्र कैलेंडर को अपनाना चाहिए…

हिंदू संस्कृति में नया वित्तीय वर्ष दीपावली से शुरू होता है, लेकिन सरकारी कामकाज में वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च गिना जाता है। सरकार ने मन बनाया है कि वित्तीय वर्ष की गणना अप्रैल से मार्च के स्थान पर जनवरी से दिसंबर की जाए, जिससे हमारा वित्तीय वर्ष अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल हो जाए। अप्रैल से मार्च के वित्तीय वर्ष को हमने ब्रिटिश शासन से विरासत के रूप में प्राप्त किया है। आज भी इंगलैंड में वित्तीय वर्ष इन्हीं माह से गिना जाता है। इसके विपरीत अमरीका एवं कुछ दूसरे विकसित देशों में वित्तीय वर्ष की गणना जनवरी से दिसंबर की जाती है। सोच है कि अपने वित्तीय वर्ष को जनवरी से दिसंबर कर देने से हम ब्रिटिश उपनिवेशवाद की विरासत से मुक्त हो जाएंगे तथा अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत में निवेश करने का एक और प्रलोभन दे सकेंगे। अमरीका से विदेशी निवेश ज्यादा आने से जनहित हासिल होगा। अप्रैल से मार्च तथा जनवरी से दिसंबर दोनों ही कैलेंडर में मासिक गणना सूर्य से निर्धारित होती है। इस कैलेंडर में 365 दिन के वर्ष को 12 माह में विभाजित किया जाता है। 30 दिन का माह गिना जाए, तो 12 माह में 360 दिन पूरे हो जाते हैं, परंतु पांच दिन का अंतर रह जाता है। इन पांच दिन को समाहित करने को फरवरी में दो दिन कम तथा सात माह में एक दिन अधिक यानी 31 दिन गिने जाते हैं। इस प्रकार वर्ष 365 दिन का हो जाता है। इस कैलेंडर का लाभ है कि माह और मौसम का सामंजस्य बना रहता है। जैसे हर व्यक्ति आश्वस्त रहता है कि वर्ष दर-वर्ष-जुलाई के माह में वर्षा होगी। 365 दिन बाद पुनः वर्षा होगी और पुनः जुलाई का माह आ जाएगा। यह चक्र निरंतर चलता रहता है। हर वर्ष नवंबर के माह में दुकानदार गर्म कपड़ों की खरीद करते हैं। इससे सरकार को अर्थव्यवस्था की प्लानिंग में सहूलियत होती है। जैसे हर वर्ष जून के माह में किसानों को धान के बीज उपलब्ध कराए जा सकते हैं। दूसरा कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित होता है।

चंद्रमा पृथ्वी के चारों तरफ एक चक्कर 30 दिन में लगाता है। इस कैलेंडर में माह की गणना चंद्रमा की गति के अनुसार 30 दिन में की जाती है तथा वर्ष 360 दिन का होता है। इस कैलेंडर में हर वर्ष में मौसम तथा कैलेंडर में पांच दिन का अंतर पड़ जाता है। इस वर्ष यदि वर्षा जुलाई में हुई है, तो छह वर्ष बाद वर्षा जून में होगी, चूंकि हर वर्ष में पांच दिन की कमी रह जाएगी और वर्ष की गणना पांच दिन पीछे खिसक जाएगी। चांद्र कैलेंडर में आर्थिक नियोजन करना कठिन हो जाता है। जैसे दुकानदार को इस वर्ष नवंबर में गर्म कपड़े मंगवाने होंगे, लेकिन 12 वर्षों के बाद सितंबर माह में मंगवाने होंगे। लेकिन चंद्र कैलेंडर के दूसरे लाभ हैं। चंद्रमा का जीवों के दिमाग पर भारी प्रभाव पड़ता है। अध्ययन बताते हैं कि फसल को चढ़ते चंद्रमा में बोया जाए, तो उत्पादन अधिक होता है। अथवा पूर्णिमा के दिन सड़क दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चढ़ते चंद्रमा के समय नए कार्यों को प्रारंभ करना चाहिए, जबकि उतरते चंद्रमा में किए गए कार्यों को स्थिर करना चाहिए। चढ़ता चंद्रमा बाह्यमुखी कार्यों को सिद्ध करता है, जबकि उतरता चंद्रमा अंतर्मुखी कार्यों को। इन लाभ को हासिल करने को इस्लाम में चंद्र कैलेंडर को अपनाया गया है। इस प्रकार सौर कैलेंडर को अपनाने में लाभ है कि वर्ष और मौसम का भेद समाप्त हो जाता है तथा आर्थिक नियोजन में सुविधा होती है, जबकि चंद्र कैलेंडर में लाभ है कि मनुष्य अपने कार्यों को चंद्रानुकूल संपादित करके सफलता हासिल कर सकता है।सौर और चांद्र कैलेंडर, दोनों के लाभ को हासिल करने के लिए सौर-चंद्र के मिश्रित कैलेंडर का आविष्कार किया गया। इस कैलेंडर में माह की गणित 30 दिन में की जाती है और वर्ष 360 दिन का ही होता है, लेकिन जैसा ऊपर बताया जाया है मौसम के अनुसार कैलेंडर बनाने में 365 दिन का वर्ष होना चाहिए।

पांच दिन के इस अंतर को समाहित करने के लिए सौर-चंद्र कैलेंडर में हर कुछ वर्षों के बाद अधिक मास जोड़ दिया जाता है। ऐसा कैलेंडर हिंदुओं एवं यहूदियों द्वारा लागू किया जाता है। इस कैलेंडर में सौर और चंद्र कैलेंडर, दोनों के लाभ हासिल हो जाते हैं। अधिक मास जोड़ने से मूल रूप से माह और मौसम का सामंजस्य बना रहता है जैसे अधिक मास जोड़ने के पहले जुलाई के प्रारंभ में वर्षा आएगी, जबकि अधिक मास जोड़ने के बाद जुलाई के अंत में वर्षा आएगी। कुछ दिनों के इस अंतर के अतिरिक्त मौसम तथा माह समांतर चलते हैं। साथ-साथ माह की गणना चंद्रमा के अनुसार करने से मनुष्य अपने कार्यों को चंद्रानुकूल संपादित करके सफलता हासिल कर सकते हैं। इस कैलेंडर के अनुसार ही भारत में वित्तीय वर्ष को दीपावली से दीपावली तक गणना की जाती थी। ज्योतिष के अनुसार इस प्रकार से गणना किया गया वर्ष लाभप्रद रहता है। अप्रैल से मार्च के वर्तमान सौर कैलेंडर को त्यागने के सरकार के मंतव्य का स्वागत है। इस व्यवस्था में कैलेंडर एवं वित्तीय वर्ष का अनावश्यक भेद बना रहता है। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भी यह प्रतिकूल है। इस कैलेंडर के तीन विकल्प उपस्थित हैं। पहला विकल्प जनवरी से दिसंबर के सौर कैलेंडर का है। इसमें उपरोक्त समस्याएं समाप्त हो जाती हैं, परंतु मनुष्य को अपने कार्यों को चंद्रानुकूल संपादित करने की समस्या बनी रहती है। दूसरा विकल्प चंद्र कैलेंडर का है। इसमें मौसम तथा वर्ष का भेद बदलता जाता है, इसलिए यह उपयुक्त नहीं दिखता है। तीसरा विकल्प सौर-चंद्र कैलेंडर का है। इसमें मौसम तथा वर्ष का मूल सामंजस्य बना रहता है और मनुष्य को अपने कार्यों को चंद्रानुकूल संपादित करने में भी सहूलियत होती है। इस प्रकार हमारे सामने दो विकल्प रह जाते हैं।

एक संशोधित जनवरी से दिसंबर सौर कैलेंडर का तथा दूसरा सौर-चंद्र कैलेंडर का। दोनों में ही वर्ष तथा मौसम का सामंजस्य बना रहता है। अंतर है कि संशोधित सौर कैलेंडर अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए लाभप्रद है, जबकि सौर-चंद्र कैलेंडर देश की जनता के लिए लाभप्रद है। अथवा विषय अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां बनाम देश की जनता का बनता है। अर्थव्यवस्था की दृष्टि से सौर-चंद्र कैलेंडर उत्तम बैठता है। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कुछ कठिनाई हो, तो भी ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा मुस्लिम देशों के निवेशकों के लिए सौर-चंद्र कैलेंडर उपयुक्त रहता है। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में बड़े पैमाने पर प्रवेश करें, तो भी जनता पर उनके आगमन का प्रभाव संदिग्ध रहता है, चूंकि इनके द्वारा तमाम भारतीय लोगों की जीविका को ध्वस्त किया जाता है। सौर-चंद्र कैलेंडर देश की जनता को अपने कार्य चंद्रानुकूल करने का अवसर देकर स्पष्ट रूप से हितकारी है। संस्कृति की दृष्टि से भी यह कैलेंडर भारत की अस्मिता के अनुकूल है। इसके अलावा इस कैलेंडर की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें काल की गणना बेहद सटीक ढंग से की जा सकती है। अतः हमें संशोधित सौर कैलेंडर के स्थान पर सौर-चंद्र कैलेंडर को अपनाना चाहिए। निश्चय ही यह देश-समाज के लिए उचित होगा। सरकार को अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मोहाने करने के स्थान पर देश के नागरिकों को मोहित करना चाहिए।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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