हिंदू राष्ट्र की चुनौती

By: Oct 31st, 2017 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

हिंदू राष्ट्र के सृजन में सफलता तभी मिलेगी, जब हम आज की वैश्विक चुनौतियों का स्पष्ट एवं सीधे सामना करेंगे। सर्वप्रथम बढ़ती आर्थिक असमानता पर रोक लगानी होगी। अमीर द्वारा खपत में भारी कटौती के साथ-साथ आम आदमी की खपत में सामान्य वृद्धि करनी होगी अन्यथा देश का आम आदमी हिंदू धर्म का त्याग करेगा। योग को खपत की निःसारता से जोड़ना होगा, न कि खपत की आग में घी डालने से। पर्यावरण की सीमा में ही खपत करनी होगी। बिगड़ते पर्यावरण की नींव पर हिंदू राष्ट्र स्थापित नहीं होगा…

हिंदू धर्म को पिछले हजार वर्षों में हुए हृस का सामना करने के साथ-साथ इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों का सामना करना है, तभी हिंदू राष्ट्र बनेगा। हिंदू धर्म का हृस इसलिए हुआ, क्योंकि देश के गरीबों ने अपने आततायी राजाओं के विद्रोह में विदेशी आक्रमणकर्ताओं का साथ दिया। इसलिए पहली चुनौती बढ़ती असमानता की है। देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है, जबकि आम आदमी की आय ठहरी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लागू की गई आर्थिक नीतियों ने आम आदमी का जीवन दूभर बना दिया है। जन-धन योजना के अंतर्गत गरीब की 30,000 करोड़ की रकम को बड़े उद्यमियों को स्थानांतरित कर दिया गया है। नोटबंदी ने नकद में काम करने वाले छोटे कारोबारियों की कमर तोड़ दी है। जीएसटी ने बड़े उद्यमियों के लिए पूरे देश में अपने माल की सप्लाई करना आसान बना दिया है। सूरत का कपड़ा अब उत्तर प्रदेश में आसानी से आएगा और फैजाबाद के बुनकरों का जीवन दूभर बनाएगा। आम आदमी में इस असंतोष के बढ़ने का प्रमाण है कि कुछ दिन पूर्व गुजरात में 2000 दलितों ने हिंदू धर्म छोड़ दिया है। हाल में मायावती ने कहा है कि यदि दलितों पर दबाव कम नहीं हुआ, तो वे अपने अनुयायियों समेत बौद्ध धर्म को अपना लेंगी। मायावती के ये उद्गार राजनीतिक विफलताओं से प्रेरित हो सकते हैं, परंतु इन्हें जमीन तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों ने ही उपलब्ध कराई है।

हिंदू धर्म के सामने दूसरी चुनौती भोगवाद की है। आज विकसित देशों में लोग खपत के सम्मोहन में हैं। नई तकनीकों ने मनुष्य को मनचाही वस्तुएं उपलब्ध करा दी हैं। लोग उत्तरोत्तर अधिक कमाने और खपत करने में खुश हैं। फ्लैट स्क्रीन टेलीविजन, एसयूवी तथा पांच सितारा होटल में रहना-यही जीवन का लक्ष्य बन गया है। अतिरिक्त कुछ सोचने का समय ही नहीं है। इनके लिए ‘धर्म’ अप्रासंगिक हो गया है, लेकिन इनके जीवन में सूनापन है। अमरीका में रह रहे एक भारतीय अप्रवासी ने कहा कि अमरीका में मर्सिडीज कार, सराउंड साउंड टेलीविजन और आटोमेटिक आइस डिस्पेंसर उपलब्ध है, फिर भी जीवन खाली दिखता है। इस दिशा में बाइबल के प्रोफेसर टिमथी जॉनसन कहते हैं कि खपत से आत्मसंतोष नहीं मिलता है ः ‘लोगों की इच्छा दैनिक जीवन की उपलब्धियों के आगे की होती है।’ लेकिन हमारे तमाम लोगों को भौतिक सुख पहली बार उपलब्ध हुआ है, जैसे अपना मकान तथा कार पीढि़यों के बाद आज मिली है। एशियाई संस्कृतियों में भोगवाद की ओर कदम हाल में ही उठाए जा रहे हैं। अतः हिंदू राष्ट्र के सामने चुनौती खपत को बढ़ाने की है, जैसा कि मोदी सरकार के ‘विकास’ के मंत्र में निहित है। साथ-साथ खपत की निःसारता को भी जनता को समझाना है, जैसा कि ईसाई धर्म के संबंध में टिमथी जॉनसन कह रहे हैं अथवा हमारी वैदांतिक सोच में कहा गया है। ये दोनों उद्देश्य योग से बड़ी सुंदरता से हासिल किए जा सकते हैं।

योग से मनुष्य का चेतन अचेतन से जुड़ जाता है, लेकिन अचेतन में विभिन्न प्रकार के विचार होते हैं। अचेतन द्वारा खपत को उत्तरोत्तर बढ़ावा दिया जा सकता है, जैसे आग में घी डालने से आग भड़कती जाती है। अथवा अचेतन द्वारा खपत की निःसारता को बढ़ावा दिया जा सकता है, जैसे योग से तले भोजन के स्थान पर उबली लौकी का सेवन करने को हम बढ़ते हैं। योग की सकारात्मक भूमिका तभी होगी, जब खपत बढाने के साथ-साथ खपत की निःसारता का पाठ भी पढ़ाया जाए। कोरा हठयोग विपरीत पड़ेगा यदि इसने खपत की ज्वाला में घी का काम किया। तीसरी चुनौती पर्यावरण की है। इस चुनौती का भी प्रोफेसर टिमथी जॉनसन ने सुंदर चित्रण किया है। आपने कहा कि बाइबल में कहा गया है कि ईश्वर ने मनुष्य को आशीर्वाद दिया ः ‘खूब वंश वृद्धि करो, खूब फलदायक बनो, पृथ्वी को भर दो और उस पर शासन करो, समुद्र की मछली, वायु की चिडि़या और पृथ्वी पर चलने वाले हर जीव पर शासन करो’ (जेनेसिस 1ः28)। साथ-साथ बाइबल में हिदायत दी गई ः ‘ईश्वर ने मनुष्य को बागीचे में रखा और आदेश दिया कि इसे जोतो और इसकी संभाल करो’ (जैसिस 2ः15ः17)। एक तरफ मनुष्य को सभी जीवों पर आधिपत्य दिया गया, तो दूसरी तरफ उसे पर्यावरण को संभालने की हिदायत दी गई। हिंदू राष्ट्र की चुनौती है कि खपत बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा की जाए।

मोदी सरकार का विकास का मंत्र पृथ्वी पर मनुष्य के शासन को स्थापित करने की दिशा में है। लेकिन इस मंत्र में पृथ्वी की संभाल करने का पुट नदारद है। एक उदाहरण से बात स्पष्ट हो जाएगी। हाल में मोदी सरकार के पर्यावरण मंत्री अनिल दवे का देहांत हो गया। पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दवे जेनेटिक मोडिफाइट फूड तथा गंगा पर हाइड्रोपावर परियोजनाओं को स्वीकृति नहीं देना चाहते थे। लेकिन उन पर पीएमओ का भयंकर दबाव था। अपनी मृत्यु के पहले की रात उन्होंने आरएसएस तथा अन्य नजदीकियों से इस दबाव का उल्लेख किया, लेकिन उन्हें कोरा जवाब मिला। पर्यावरण के विरोध में पड़ रहे इस दबाव को वह झेल नहीं सके और सुबह उनकी मृत्यु हो गई। प्रधानमंत्री ने सत्ता संभालते समय कहा था, ‘अब हमें गंगा से कुछ भी लेना नहीं है, बस देना ही है।’ परंतु बीते तीन वर्षों में गंगा से लिया ही लिया जा रहा है। बड़े जहाज चला कर उसे रौंदा जा रहा है। उसमें पलने वाले कछुओं की रक्षा को बनाई गई वाराणसी टर्टल अभयारण्य को हटाने की प्रक्रिया चल रही है। पूर्व में बनी जलविद्युत परियोजनाओं को गंगा की रक्षा के लिए न्यूनतम पानी छोड़ने के आदेश भी नहीं दिए गए हैं। विष्णु प्रयाग जैसी जल विद्युत परियोजनाओं के नीचे आज भी गंगा पूरी तरह सूख जाती है। नई परियोजनाओं को स्वीकृति देने की तैयारी है। स्पष्ट है कि मोदी सरकार का एकतरफा झुकाव पृथ्वी पर चलने वाले हर जीव पर शासन करने की तरफ है। ईश्वर द्वारा दिए गए बागीचे की संभाल करने का विचार नदारद है।

हिंदू राष्ट्र के सृजन में सफलता तब ही मिलेगी, जब हम आज की वैश्विक चुनौतियों का स्पष्ट एवं सीधे सामना करेंगे। सर्वप्रथम बढ़ती आर्थिक असमानता पर रोक लगानी होगी। अमीर द्वारा खपत में भारी कटौती के साथ-साथ आम आदमी की खपत में सामान्य वृद्धि करनी होगी अन्यथा देश का आम आदमी हिंदू धर्म का त्याग करेगा। योग को खपत की निःसारता से जोड़ना होगा, न कि खपत की आग में घी डालने से। पर्यावरण की सीमा में ही खपत करनी होगी। बिगड़ते पर्यावरण की नींव पर हिंदू राष्ट्र स्थापित नहीं होगा।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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