घाटी के भटके हुए सियासतदां

By: Nov 17th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

फारूक अब्दुल्ला ने दुखद बयान देते हुए भारत के पक्ष में बनी स्थिति को अस्त-व्यस्त कर दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह रुख अपना लिया कि पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान को दे देना चाहिए। यह भी कि भारत इस समस्या का समाधान पाकिस्तान को साथ लिए बगैर नहीं कर सकता है। फारूक अब्दुल्ला ने सत्ता में रहते हुए कभी ऐसी मांग नहीं रखी, लेकिन अब वह और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला सत्ता से बाहर रहते हुए झल्ला गए लगते हैं और ऐसी बचकानी मांग उठा रहे हैं…

जम्मू-कश्मीर के भविष्य को तय करने के लिए सभी प्रकार के बदलावों व संयोजनों के दृष्टिगत इस प्रदेश के साथ इसके राजनेता खिलौने जैसा व्यवहार करते रहे हैं। हाल में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने दुखद बयान देते हुए भारत के पक्ष में बनी स्थिति को अस्त-व्यस्त कर दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह रुख अपना लिया कि पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान को दे देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भारत इस समस्या का समाधान पाकिस्तान को साथ लिए बगैर नहीं कर सकता है। उन्होंने राज्य को स्वायत्तता देने तथा विशिष्ट अधिकार देने वाले अनुच्छेद-370 को बनाए रखने की भी जोरदार वकालत की। फारूक अब्दुल्ला ने सत्ता में रहते हुए कभी ऐसी मांग नहीं रखी, लेकिन अब वह और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला सत्ता से बाहर रहते हुए झल्ला गए लगते हैं और ऐसी बचकानी मांग उठा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में वर्ष 1948 से ही राजनीतिक तूफान आते रहे हैं। यहां सांप्रदायिक विस्फोट भी होते रहे हैं। इनमें कभी राज्य में ही स्थित तत्त्वों की भूमिका रही, तो कभी पड़ोसी देश पाकिस्तान ने आग में घी डालने का काम किया। आज कश्मीर की स्थिति क्या है? विकास के लक्ष्य को अगर ध्यान में रखकर देखा जाए, तो आज यह राज्य कहां खड़ा है? क्या कश्मीर आतंकवादियों की शरणस्थली बनना चाहता है अथवा सैलानियों की जन्नत? मेरा मानना है कि हिंसा के प्रति कमतर अभिरुचि के बावजूद यह ऐसा क्षेत्र है, जो सौंदर्य व शांतिपूर्ण वातावरण में विश्वास रखता है। इस भू-भाग पर शांति, सौंदर्य व अध्यात्म के प्रति लगाव का मेरे आकलन का आधार शंकाराचार्य की मेडिटेशन का मेरा ज्ञान है।

सूफी लोगों की सीख और शिकारों से भरी पड़ी इसकी झीलें भी मेरे इस विचार को पुष्ट करती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि कश्मीर वह है, जिसकी व्याख्या फिरदौसी ने फिरदौस के रूप में की। लेकिन घाटी में इस्लाम के आगमन तथा औरंगजेब के उभार के बाद राज्य में लोगों के बीच नफरत के बीज बोए गए। इससे हिंदुओं, शियाओं, सुन्नियों तथा अन्य समुदायों में लड़ाई-झगड़े शुरू हो गए। एक सूफी संत सरमद, जो कि कश्मीर में रहते थे, का सभी धर्मों के लोगों में सम्मान था। वह शाहजहां के पुत्र दारा शिकोह के शिक्षक भी थे। उन्होंने सूफीवाद के साथ-साथ उपनिषदों का भी अध्ययन किया। बाद में औरंगजेब ने उन्हें पकड़ लिया, उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया तथा जामा मस्जिद के गेट के सामने उनका सिर कलम कर दिया गया। उनका कत्ल यह आरोप लगाकर कर दिया गया कि वह पूरा कलमा नहीं पढ़ पाए। वास्तव में वह ‘या अल्लाह’ पर रुक गए, जिसका सीधा सा मतलब केवल एक सर्वोच्च शक्ति से होता है। पैगंबर मोहम्मद का नाम लेने में उनकी विफलता रही और उन पर आरोप लगा कि वह एक ही शक्ति में विश्वास रखते थे। वास्तव में वह वेदांत के अद्वैतवाद का अनुकरण कर रहे थे। आजादी के बाद महाराजा हरि सिंह भारत में विलय को राजी हो गए। उन्होंने जिस विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, उसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर व चीन अधिकृत सियाचिन समेत पूरा कश्मीर शामिल था। आज स्थिति यह है कि कश्मीर का एक भाग पाकिस्तान के कब्जे में है और एक अन्य भाग चीन के कब्जे में है। कश्मीर के अलगाववादी कश्मीर के केवल पांच जिलों में हैं। कश्मीर के तीन क्षेत्रों-जम्मू, लद्दाख व घाटी में से केवल कश्मीर में सुन्नी जनसंख्या बहुसंख्या में है, जिसका अलगाववादी एजेंडा है। सबसे दुखद घटनाक्रम यह है कि क्षेत्र से कश्मीरी पंडित पलायन कर चुके हैं। उनकी सामूहिक हत्याओं व उन्हें मिल रही धमकियों के बाद यह पलायन हुआ था।

भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां उसके ही लोग शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। विश्व के किसी अन्य देश में ऐसी स्थिति नहीं है। न केवल कश्मीरी पंडित, बल्कि अब तो शिया मुसलमान भी अलगाववादियों की हिंसा से भयभीत हो गए हैं। मैं एक बार वाराणसी के दौरे पर था, तो मुझे श्रीनगर वापस जा रही एक बुर्काधारी छात्रा से मुलाकात का अवसर मिला। जब मैंने उससे कश्मीर की स्थिति को लेकर सवाल किया तो उसने जवाब दिया कि स्थिति खतरनाक है, क्योंकि सुन्नी मुसलमान शिया लोगों पर जुल्म ढहा रहे हैं। कश्मीरी पंडितों का पलायन सामूहिक तौर पर हुआ था। उन्हें धमकी भरे पत्र लिखे गए थे, जिनमें कहा गया था कि अगर उन्होंने घाटी को खाली नहीं किया तो वे अपने बच्चों की जान से हाथ धो बैठेंगे। इन पत्रों में कहा गया था कि घाटी केवल मुसलमानों की है। यहां दिए गए इस संदर्भ को देखते हुए फारूक अब्दुल्ला का यह विचार कितना न्यायसंगत है कि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान को दे दिया जाना चाहिए। आजादी की बात कहां है? यह शर्मनाक है कि कई विश्वविद्यालयों में भी कई छात्र यदा-कदा इस तरह के नारे लगाते रहते हैं, जो कि राष्ट्र हित के खिलाफ जाता है।

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीर में हुई बैठकों के दौरान सार्वजनिक रूप से कबूल किया है कि कश्मीर में स्थिति सुधर रही है और वहां स्थिरता आ रही है। ऐसे वातावरण में वहां पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं। यह एक तरह से घाटी में शांति की परीक्षा होगी। कश्मीर के भारत में विलय की प्रक्रिया तब तक पूरी नहीं मानी जाएगी, जब तक कि पाकिस्तान व चीन के कब्जे वाले कश्मीर भारत को नहीं दे दिए जाते। हो सकता है कि भारत एक साथ दोनों की मांग न रखे, लेकिन भारत का जो वैधानिक दावा है और जिसके संबंध में संसद में भी प्रस्ताव पारित किया जा चुका है, उस दावे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंजूरी मिलनी चाहिए। इस मसले को लेकर संयुक्त राष्ट्र में जाना भी हमारे लिए ठीक नहीं है, क्योंकि यह द्विपक्षीय मसला है और पाकिस्तान शिमला समझौते में इस बात को स्वीकार कर चुका है। पाकिस्तान को यह बात समझ लेनी चाहिए कि कोई तीसरा पक्ष उसे कश्मीर नहीं दिला सकता है। अलगाववादियों के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है। पाकिस्तान को भी अपना वचन निभाना ही पड़ेगा।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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