देशद्रोही फारूख !

By: Nov 13th, 2017 12:05 am

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री, लोकसभा सांसद एवं नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष डा. फारूख अब्दुल्ला ने एक बार फिर विवादास्पद बयान देकर आजाद कश्मीर, पीओके को पाकिस्तान का हिस्सा माना है। पीओके पर किसी भी तरह की चर्चा और बातचीत को भी उन्होंने गलत करार दिया है। फारूख का कहना है कि पीओके पर हिंदोस्तान किसी भी तरह का दावा नहीं कर सकता। उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को भी हिस्सेदार, दावेदार माना है, लिहाजा उससे भी बातचीत करने की दलील दी है। फारूख के पास ऐसी जुबान है, जो लगातार लपलप करती रही है और देश के खिलाफ बोलती रही है, लेकिन वह बेमानी रही है। सत्ता में फारूख की जुबान अलग होती है और विपक्ष में आते ही वह कुछ भी बोल सकते हैं। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कश्मीर में फारूख की सरकार गिरा कर उनके जीजा जीएम शाह को मुख्यमंत्री बना दिया था, तब फारूख कहा करते थे-‘मैं सच्चा मुसलमान हूं। मैं कभी भी कांग्रेस में नहीं जाऊंगा। यह बड़ी शातिर पार्टी है।’ 2004 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार रही, जिसमें फारूख अब्दुल्ला भी केंद्रीय मंत्री रहे। दिल्ली में एक समारोह के दौरान उन्होंने हुर्रियत वालों पर टिप्पणी की थी-‘ये काले कौवे हैं। उन्हें किसी भी डिटर्जेंट से धो लो, वे सफेद नहीं हो सकते। उन्हें कबूतर नहीं बनाया जा सकता।’ लेकिन आज कश्मीर में फारूख अलगाववादियों की ही भाषा बोल रहे हैं। कश्मीर पर वह यहां तक बोल चुके हैं कि कश्मीर किसी के बाप का है क्या? अब उन्होंने संविधान विरोधी बयान दिया है। कश्मीर पर कई बार भारतीय संसद में प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं कि कश्मीर भारतीय गणराज्य का अभिन्न हिस्सा है। तब संसद में फारूख भी मौजूद रहे होंगे! वह यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। आज भी लोकसभा सांसद हैं। मंत्री और सांसद होने के नाते उन्होंने संविधान की शपथ ली थी। वह जब भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने, तब भी संविधान की शपथ लेकर पद ग्रहण किया था, लेकिन आज असंवैधानिक बात करने की उनकी मंशा क्या है? पीओके को पाकिस्तान का हिस्सा करार देकर उन्हें सियासी और निजी तौर पर हासिल क्या होगा? क्या संविधान के खिलाफ कोई हरकत या गतिविधि करना ‘आपराधिक’ नहीं है? लिहाजा जम्मू-कश्मीर पुलिस को देशद्रोह की कानूनी धाराओं में केस दर्ज कर फारूख अब्दुल्ला को गिरफ्तार करना चाहिए। गौरतलब यह है कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह जब भारत में विलय को सहमत हुए थे, तब संपूर्ण कश्मीर (जम्मू, कश्मीर, लद्दाख और आजाद कश्मीर) के विलय के प्रस्ताव पर उन्होंने हस्ताक्षर किए थे। 1947 में भारत-विभाजन के बाद ही पाकिस्तान की फौज ने कबाइलियों के तौर पर जो हमला किया था, उसमें युद्धविराम के बाद पीओके पाकिस्तान के कब्जे में रह गया था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र तक आज भी मानता है कि पीओके बुनियादी तौर पर हिंदोस्तान का हिस्सा है। यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर का कोई संवाद शुरू किया जाना है, तो पहले पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले हिस्से भारत को लौटाने होंगे। उसी के बाद शांति और सद्भाव के कोई प्रयास किए जा सकते हैं। इन शीर्ष और संवैधानिक स्तरों पर पीओके को भारत का हिस्सा माना गया है, तो फारूख की उलटबयानी का मकसद क्या है? चूंकि यह हरकत देश की संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ की गई है, लिहाजा फारूख का अपराध ‘देशद्रोह’ वाली जमात का है। कुछ कश्मीरी विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर में फारूख अब्दुल्ला, सैयद अली शाह गिलानी, यासीन मलिक बगैरह की जुबां कतर दी जाए और उन्हें जिंदगी भर के लिए जेल के अंधेरों में बंद कर दिया जाए, तो कश्मीर की समस्या सुलझ जाएगी और वहां अमन-चैन लौट आएगा। एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार ने वार्ता के जरिए कश्मीर की ‘जन्नत’ बहाल करने की कोशिश शुरू की है, तो दूसरी तरफ फारूख ऐसे बयान दे रहे हैं, जिनसे आग और भी ज्यादा भड़केगी। उधर पीओजेके, बलूचिस्तान, सिंध बगैरह इलाकों में पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ उग्र आंदोलन जारी हैं, वे पाकिस्तान से मुक्ति चाहते हैं, लेकिन हमारे फारूख सरीखे वरिष्ठ नेता ऐसी देश-विरोधी जुबां बोल रहे हैं। तो बोली और कश्मीरियों को गले लगाने की कोशिशें कैसे कामयाब होंगी?


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