सही नहीं खेलों के प्रति बेरुखी

By: Nov 10th, 2017 12:05 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

खेल को बढ़ावा देने मात्र से युवाओं में कई सकारात्मक गुणों का विकास किया जा सकता है। युवाओं में प्रतिभा है, पर उसे निखारने के लिए सरकारी पहल की दरकार है। केवल बजट दे देने से बात नहीं बनेगी, बल्कि  प्रशिक्षकों का भी इंतजाम करना चाहिए…

हिमाचल प्रदेश ने शिक्षा के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों से बहुत प्रगति की है, मगर शिक्षा की परिभाषा को पूरा नहीं किया है। शिक्षा का अर्थ मानव का संपूर्ण शारीरिक व मानसिक विकास करना है, जिससे वह भविष्य में जीने वाले जीवन को आसानी से जी सके। शारीरिक विकास के लिए हिमाचल प्रदेश के शिक्षा संस्थानों के पास न तो परिसर में मैदान हैं और न ही इंडोर प्ले फील्ड हैं। बिना प्ले फील्ड के शारीरिक विकास कैसे संभव हो सकता है। जिला व उपमंडल स्तर पर बन रहे खेल ढांचे में भी काफी देरी हो रही है। बिलासपुर में पिछले दो दशकों में सिंथेटिक ट्रैक व एस्ट्रो टर्फ हाकी के लिए बिछाने की बात हो रही है, मगर आज तक वहां पर केवल एथलेटिक्स के सिंथेटिक ट्रैक बनाने का काम वर्षों से अधूरा ही है। भारतीय खेल प्राधिकरण की केंद्रीय सहायता के बावजूद यह प्ले फील्ड नहीं बन पाई है। एस्ट्रो टर्फ के लिए आज तक कोई भी विभागीय औपचारिकता शुरू नहीं हो पाई है।

शिमला के घटासनी में उच्च स्तरीय खेल परिसर के लिए बजट में 35 करोड़ का प्रावधान पिछले पांच वर्षों में रखा है। यह सरकारी लोग कहते रहे मगर वहां अभी तक खेल विभाग के नाम भूमि पूरी तरह उपलब्ध नहीं हो पाई है। फिर कब वहां कार्य शुरू होगा? हमीरपुर के सरकारी कालेज में बन रहे इंडोर स्टेडियम का काम पिछले आठ वर्षों से कछुआ चाल से चल रहा है। पांच वर्ष पूर्व इस स्टेडियम का कार्य ढांचा खड़ा करने में लगभग पूरा हो चुका था, ऊपर केवल छत पड़नी शेष थी, मगर बीते पांच वर्षों में छत तक नहीं पड़ पाई है। इस तरह कई खेल परिसरों का बुरा हाल है। हमीरपुर में बने सिंथेटिक ट्रैक तथा कई कमरों के बने खेल परिसर का प्रयोग खेल विभाग आज तक नहीं कर रहा है। करोड़ों खर्च कर इस परिसर को लावारिस छोड़ दिया है। ऊना में हाकी के लिए एस्ट्रो टर्फ बिछा है, मगर वह भी पिछले वर्षों में बेकद्री के आलम में खेल विभाग की नजर-ए-इनायत को तरसता रहा है।

ऊना में तरनताल दशक पूर्व बनकर तैयार हो चुका है, मगर आज तक वहां कोई तैराकी प्रशिक्षक नहीं है। यही हाल मंडी का है वहां भी तरनताल है, मगर वह सूखा पड़ा है। इंडोर खेलों के लिए शिमला का इंदिरा गांधी खेल परिसर भी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। हिमाचल के खेल छात्रावासों के पास आज तक स्तरीय प्रशिक्षण सुविधा व अच्छे खेल प्रशिक्षकों की कमी का रोना बंद नहीं हुआ है। लगभग हर जिला स्तर पर करोड़ों खर्च कर खेल सुविधा तैयार की गई है, मगर वह पूरी तरह प्रशिक्षण के लिए सुविधाओं से लैस नहीं है। ऐसे में वहां पर अच्छा प्रशिक्षण कार्यक्रम चलना बेहद कठिन है। राज्य स्कूली शिक्षा विभाग द्वारा चलाए गए खेल छात्रावास बदहाली के आलम में राज्य में खेलों से बेरुखी की कहानी बयां करते साफ नजर आते हैं। बहुत कम खुराक भत्ते तथा लचर खेल सुविधा में कैसे विजेता निकलते हैं, यह तो राज्य का शिक्षा विभाग ही बता सकता है। खेलों में प्रतिभाशाली विद्यार्थी खिलाडि़यों को इन स्कूली खेल छात्रावासों में भर्ती तो किया जाता है, मगर इनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है। प्रदेश की संतानें राज्य से बाहर निकलकर दूसरे राज्यों तथा केंद्रीय विभागों के दम पर ओलंपिक तक पदक जीत चुकी हैं, मगर राज्य में खेल प्रशिक्षण के लिए न तो खेल प्रशिक्षण सुविधा जुट पाई है और न ही खेल वातावरण अच्छा हुआ, राज्य खेल विभाग तथा सरकारें इस विषय पर कुछ सोचें तथा इसका कोईर् सार्थक हल निकाल राज्य में खेलों को गति दें। खेल से देश का गौरव तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीतने से बढ़ता ही है साथ में खेल के माध्यम से प्रदेश के युवा व किशोरों के स्वास्थ्य का ध्यान और उन्हें आज चले विभिन्न नशों से भी दूर रखा जा सकता, इसलिए सरकारों की खेलों के प्रति इतनी बेरुखी ठीक नहीं है। एक खेल को बढ़ावा देने मात्र से युवाओं में कई सकारात्मक गुणों का विकास किया जा सकता है। युवाओं में प्रतिभा है, पर उसे निखारने के लिए सरकारी पहल की दरकार है। केवल बजट दे देने से बात नहीं बनेगी।

सरकार को साधन-संसाधन मुहैया करवाने के साथ-साथ प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षकों का भी इंतजाम करना चाहिए। अगर ये सब इंतजाम हो जाते हैं, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रदेश से प्रतिभाएं राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन न करें। समय रहते सरकार के खेल विभाग को उचित कदम उठाने चाहिए ताकि युवाओं को खेलों की ओर मोड़ा जा सके।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App