हिमाचल के लिए चुनाव के मायने

By: Nov 10th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

एक दिन मैंने तथा मेरी धर्मपत्नी ने देखा कि महिलाओं का एक समूह शादी समारोह की तरह बढि़या कपड़े पहनकर किसी गांव की ओर जा रहा था। जब उनसे पूछा गया, तो पता चला कि गांव में कोई मंत्री आने वाला था और वे उसी समारोह में शामिल होने के लिए जा रही थीं। मेरी पत्नी को हैरानी व द्वंद्व हुआ कि पूरे मेकअप में जा रही ये महिलाएं खुद मंत्री को देखने जा रही थीं अथवा मंत्री ने उन्हें देखना था…

हाल में हम हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के व्यापक अनुभव से गुजरे। इसमें प्रदेश भर से 68 प्रतिनिधियों को चुनने के लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा, धन व प्रयासों का भरपूर प्रयोग हुआ। प्रेम कुमार धूमल को भाजपा की ओर से संभावित मुख्यमंत्री घोषित करने के कारण मतदाताओं को पार्टी का चयन करने में सुविधा हुई। मतदान के बाद अभी भी हैंगओवर जैसी स्थिति है तथा चुनाव के दौरान फैली कड़वाहट जारी है। पोस्टर, पेपर कप व प्लेटें गली-कूचों में यहां-वहां बिखरी पड़ी हैं। किसी भी बड़े इवेंट के खत्म होने के बाद स्वच्छता की कठिन परीक्षा होती है। सौभाग्य से प्रधानमंत्री ने सभी को स्वच्छता का काम दे रखा है और हम यहां-वहां बिखरा कूड़ा-कर्कट पाते हैं, जिसे साफ करना एक बड़ी चुनौती है।

अच्छी बात यह है कि हम अब जान गए हैं कि यह एक ऐसा काम है, जिसे संयुक्त भागीदारी से किया जा सकता है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहां आम चुनाव में सबसे अधिक वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। क्या हम थक चुके हैं? शायद चुनाव में उतरे उम्मीदवार कई दिनों की भाग-दौड़ के बाद अब आराम कर रहे होंगे। चुनाव में धन की भूमिका भी उजागर हुई है और दोनों दलों पर उम्मीदवारों को खरीदने व बेचने के आरोप लग रहे हैं। इस बात में कोई हैरानी नहीं कि चुनाव मैदान में 61 ऐसे प्रत्याशी हैं, जिनका आपराधिक रिकार्ड है। इन पर विभिन्न न्यायालयों में केस चल रहे हैं। सत्ता के पिछले वर्षों में राजनेताओं ने कितना धन एकत्रित किया? चुनाव आयोग में दिए गए हलफनामों को खंगालें तो पता चलता है कि संसद (लोकसभा) के 543 सदस्यों को चुनने के लिए देश भर में 70 करोड़ मतदाता हैं। अनुमान है कि टिकटों की खरीद पर 8000 करोड़ रुपए खर्च होते हैं, जिनमें 2000 करोड़ रुपए का नकद भुगतान होता है। राजनीतिक दलों के समक्ष सबसे मुश्किल मुद्दा नोटबंदी के बाद अब यह है कि कैसे नकदी को नए सिरे से ईजाद किया जाए।

हिमाचल में कांग्रेस ने विधानसभा की एक टिकट के लिए प्रति आवेदन पर 25 हजार रुपए वसूल किए। इसके कारण तथा चंदे समेत कुछ अन्य मापदंडों की मदद से नकदी के संकट से निपटने में राजनीतिक दलों को कुछ राहत मिली। इस समस्या से निपटने के लिए एक नया तरीका भी खोजा गया। पार्टियों के उम्मीदवार कार्ड लेकर पेट्रोल पंपों पर खड़े हो जाते हैं, उनके वर्कर आते हैं, अपने वाहनों में ईंधन भरते हैं, पार्टी का झंडा फहराते हैं तथा रैलियों में शामिल हो जाते हैं। चुनाव पर 15,000 करोड़ रुपए खर्च देना शायद विश्व भर में किसी लोकतांत्रिक देश में सबसे बड़ा खर्च है। स्वतंत्रता के बाद प्रथम चार चुनाव प्रायः समानांतर थे, लेकिन बाद में राज्यों में राष्ट्रपति शासन से संबंधित अनुच्छेद-356 के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि अलग चुनावों की जरूरत पड़ी। हालांकि चुनाव एक कठिन व शुष्क गतिविधि है, फिर भी मतदान व प्रचार की प्रक्रिया के दौरान कई बार मजाक का दौर चलता है और हल्के-फुल्के क्षण आ जाते हैं। इन अर्थों में चुनाव वयस्कों और बच्चों के लिए मनोरंजक फिल्म के दौरान लंबे अंतराल जैसे हो जाते हैं। जब चुनाव परिणाम आते हैं, तो आपको उल्लास अथवा शोक मनाने का मौका मिल जाता है। चुनाव से पूर्व टिकट आबंटन के दौरान भी खुश अथवा दुखी होने का अवसर मिल जाता है।

भाजपा के एक पूर्व मंत्री की मिसाल लें तो वह उस समय भावुक होकर रोने लग गए, जब उनका टिकट कटने की संभावना बन गई। वह सार्वजनिक रूप से रोए। इस रोने-धोने के कारण उन्हें बाद में टिकट मिल गया। हालांकि वह चुनाव जीत पाएंगे या नहीं, यह मतदाताओं पर निर्भर है। कुछ लोग इसे सहानुभूति के कारण मिला लाभ कह रहे हैं, परंतु मेरा विचार है कि स्व-नियंत्रण की कमी के कारण इसे नकारात्मक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। चुनाव के दौरान अधिकतर गांवों में जब विधायक व मंत्री जाते हैं, तो वहां उत्सव जैसा माहौल बन जाता है।

एक दिन मैंने तथा मेरी धर्मपत्नी ने देखा कि महिलाओं का एक समूह शादी समारोह की तरह बढि़या कपड़े पहनकर किसी गांव की ओर जा रहा था। जब उनसे पूछा गया, तो पता चला कि गांव में कोई मंत्री आने वाला था और वे उसी समारोह में शामिल होने के लिए जा रही थीं। मेरी पत्नी को हैरानी व द्वंद्व हुआ कि पूरे मेकअप में जा रही ये महिलाएं खुद मंत्री को देखने जा रही थीं अथवा मंत्री ने उन्हें देखना था? चुनाव के दौरान बच्चे भी मनोरंजन करते हैं और वे भिन्न-भिन्न दलोें की टोपियों पहने रहते हैं। एक नया साधन भी आ गया है। बच्चे भिन्न-भिन्न नेताओं के मुखौटे पहने रहते हैं। वे इन्हें बेहद पसंद करते हैं। मैंने तीन साल के एक बच्चे को देखा, जिसने प्रधानमंत्री का मुखौटा पहना हुआ था। मैंने उससे पूछा कि यह क्या है। उसने चिल्ला कर जवाब दिया, ‘‘मैं मोदी हूं।’’ चुनाव से पूर्व हुआ एक बड़ा मजाक भी है। मैं जिस गांव में रहता हूं, वहां एक जनसभा रखी गई। गांव में रहते करीब 300 लोगों को इसमें बुलाया गया। वहां एक नेता आया। सबसे पहले गांव की प्रधान को बोलने का मौका दिया गया। उसने सबसे पहले भाजपा को वोट करने का आह्वान कर दिया, जबकि सच्चाई यह थी कि इस सभा का आयोजन एक कांगे्रसी द्वारा किया गया था। जब महिला प्रधान ने ऐसी अपील की, तो उसे बैठ जाने के लिए कहा गया।

लोग इस पर खूब हंसे, महिला प्रधान शायद इस बात से अनभिज्ञ थीं कि यह आयोजन कांग्रेसी द्वारा हो रहा है। चुनाव की सबसे बुरी खासियत शराब का बड़े पैमाने पर आबंटन तथा इसका प्रयोग है। चुनाव के दौरान पीने-पिलाने की महफिलें खूब सजती हैं और अकसर चुनाव प्रचार पर निकले लोगों के मुंह से शराब की गंध आती रहती है। इस बात पर चर्चा नहीं होती कि देश की समस्याएं क्या हैं और चुनाव का क्या परिणाम होगा। इसके बजाय चर्चा का केंद्र बिंदु यह होता है कि स्टोर में कितनी शराब बाकी बची पड़ी है। इसी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने हाल में अपने एक कविता संग्रह में हायकू बनाया है। यह किताब इंडिया इंटरनेशनल सेंटर ने जारी की है :

पोलिंग बूथ,

सभी से गंध आ रही है,

देशी शराब…

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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