कालेज स्तर की खेलों पर भारी पड़ता रूसा

By: Dec 1st, 2017 12:07 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

जैसे राज्य में महाविद्यालयों की गिनती बढ़ रही है, वैसे-वैसे ही हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की अंतर महाविद्यालय खेल प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी महाविद्यालयों की टीमों की संख्या घटती जा रही है। घटती भागीदारी के लिए रूसा को अधिक जिम्मेदार माना जा रहा है…

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के अंतर्गत इस समय राज्य में सौ से भी अधिक महाविद्यालय राज्य के हजारों विद्यार्थियों के शिक्षण का जिम्मा निभा रहे हैं। जैसे राज्य में महाविद्यालयों की गिनती बढ़ रही है, वैसे-वैसे ही हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की अंतर महाविद्यालय खेल प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी महाविद्यालयों की टीमों की संख्या घटती जा रही है। सुंदरनगर में आयोजित महिला हाकी की प्रतियोगिता में आधा दर्जन टीमें ही भाग ले पाईं। यही हाल महिला हैंडबाल प्रतियोगिता का भी रहा। इसमें भी छह महाविद्यालयों की टीमें ही शिरकत कर पाई हैं। पुरुष वर्ग में भी हालत बहुत अच्छी नहीं है। घटती भागीदारी के लिए रूसा को अधिक जिम्मेदार माना जा रहा है। रूसा के शुरू होने के बाद अब वर्ष में दो बार हर छह माह के बाद परीक्षाएं होती हैं। जून में प्रवेश पाने के बाद विद्यार्थियों के लिए दिसंबर से पहले परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। नवंबर माह में लगभग पूरा महीना परीक्षाएं चलती हैं, इसलिए परीक्षा की तैयारी भी दो महीने पहले शुरू हो जाती है। अधिकतर अंतर महाविद्यालय खेल प्रतियोगिताएं भी इसी समय आयोजित होती हैं। ऐसे में खिलाड़ी विद्यार्थियों को प्रशिक्षण के लिए समय ही नहीं मिल पा रहा। जब खेल प्रतियोगिताएं और परीक्षाएं एक साथ होंगी, तो विद्यार्थी अधिकतर अपनी पढ़ाई को ही अधिमान देगा। इसलिए खेल तथा अन्य युवा गतिविधियों को अधिक विद्यार्थियों तक पहुंचाने का सपना पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। खेल प्रतियोगिताओं को आगे-पीछे करने के लिए जब बात की जाती है, तो उसमें पहला रोड़ा अखिल भारतीय अंतर महाविद्यालय खेलें हैं, क्योंकि इन अंतर महाविद्यालय खेल प्रतियोगिताओं के समय ही विश्वविद्यालय अपनी टीम चुनता है। अधिकतर अंतर विश्वविद्यालय खेलें अक्तूबर से दिसंबर के बीच आयोजित होती हैं। इन अंतर विश्वविद्यालय खेलों में प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रवेश पाने की सूचना विभिन्न विश्वविद्यालयों को कम से कम 15 दिन पहले देनी होती है। इसलिए प्रदेश विश्वविद्यालय अपनी अंतर महाविद्यालय प्रतियोगिता लगभग 20 दिन पूर्व करवाने को मजबूर होता है।

देश में लगभग सभी विश्वविद्यालयों की स्नातक परीक्षाओं के लिए अवधि एक वर्ष है। हिमाचल प्रदेश में रूसा पद्धति होने के कारण यहां हर छह माह में परीक्षाएं आयोजित हो रही हैं। अंतर महाविद्यालय खेलों में इस घटते प्रतिनिधित्व का दूसरा बड़ा कारण है महाविद्यालय स्तर पर शारीरिक शिक्षा का एक प्राध्यापक होना भी है और किसी-किसी महाविद्यालय में तो शारीरिक शिक्षा का पद खाली चला रहता है। प्रदेश के अधिकतर महाविद्यालयों में शारीरिक शिक्षा एक विषय के रूप में अब पढ़ाई जा रही है। इसलिए वहां नियुक्त विषय के प्राध्यापक को अन्य विषयों के प्राध्यापकों की तरह जब पीरियड में पढ़ाने जाना होता है तो वह कब खेल प्रतियोगिताओं के लिए टीमों का प्रबंधन करेगा। इसलिए यह भी जरूरी हो जाता है कि जहां शारीरिक शिक्षा के विषय के रूप में पढ़ाई जा रही है, उस महाविद्यालय में शारीरिक शिक्षा के कम से कम दो शिक्षक नियुक्त हों, ताकि एक पीरियड में पढ़ाने चला जाए तो दूसरा टीमों के प्रबंधन के लिए विभाग के कमरे में मौजूद रहे। खेलों में भागीदारी कम होती जा रही है, तो प्रदेश में खेल प्रशिक्षकों की भारी कमी भी इसका बड़ा कारण है। विद्यार्थी खिलाडि़यों को खेलों के लिए प्रेरित कर सही प्रशिक्षण देने के लिए आज महाविद्यालय स्तर पर कोई भी व्यवस्था नहीं है। पिछले दशक तक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पास लगभग सभी खेलों के लिए प्रशिक्षक नियुक्त थे या फिर भारतीय खेल प्राधिकरण से प्रतिनियुक्ति पर आए थे। आज विश्वविद्यालय द्वारा नियुक्त सभी प्रशिक्षक सेवानिवृत्त हो चुके हैं और साई ने अब विश्वविद्यालयों में अपने प्रशिक्षक भेजना बंद कर दिए हैं। पहले विश्वविद्यालय वार्षिक परीक्षाओं के बाद समर कोचिंग कैंप लगाता था। इन कैंपों में लगभग हर उभरते खिलाड़ी विद्यार्थी को मौका देकर प्रशिक्षण के गुर सिखाए जाते थे। ये खिलाड़ी अपने-अपने महाविद्यालय वापस आकर वहीं टीम खड़ी करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते थे। खेल विभाग के पास कई खेलों के प्रशिक्षक जिला स्तर पर नियुक्त हैं, मगर उपमंडल व खंड स्तर पर यह सुविधा दो-चार जगहों को छोड़कर और कहीं भी नहीं है। महाविद्यालय स्तर पर जहां प्राचार्य तथा प्राध्यापक शारीरिक शिक्षा को इस विषय पर गहन चिंतन करना होगा, वहीं पर अन्य विषयों के प्राध्यापकों को भी खिलाडि़यों को खेल मैदान जाने पर प्रताडि़त करने के स्थान पर प्रोत्साहित करना होगा। तभी हम महाविद्यालय स्तर पर खेलों तथा अन्य गतिविधियों को जारी रख विद्यार्थियों का संपूर्ण विकास  कर सकते हैं।

जिन महाविद्यालयों के पास अपने निजी प्रशिक्षक हैं या खेल छात्रावास नजदीक है केवल वहीं पर अच्छे खिलाड़ी सामने आ रहे हैं, इसलिए प्राचार्यों को खेल सुविधा के अनुसार अपने यहां प्रशिक्षकों को भी बुलाना होगा। विश्वविद्यालय को चाहिए कि वह अंतर महाविद्यालय खेल प्रतियोगताओं का कैलेंडर परीक्षाओं को देखकर बनाए। अगर फिर भी परीक्षा बीच में आ रही है तो उस खेल प्रतियोगिता को आगे कर दें तथा अंतर विश्वविद्यालय टीम के लिए ट्रायल ले लिया जाए।

ई-मेल : penaltycorner007@rediffmail.com


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