तीन तलाक को तलाक की शुरुआत

By: Dec 30th, 2017 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

अनेक शताब्दियों से मुस्लिम मजहब स्वीकार कर चुकी महिलाओं को इस नए मजहब में तीन तलाक का दंश झेलना पड़ रहा था। यह मानवीय गरिमा को कलंकित करने वाला तो था ही, साथ ही संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का भी हनन करता था। लेकिन इस्लाम की व्याख्या करने वाले मौलवी अडे़ हुए थे। उनका कहना था कि तीन तलाक इस्लाम की मौलिक अवधारणा का हिस्सा है, इसलिए इसे कोई छेड़ नहीं सकता…

अंततः लोकसभा ने तीन तलाक को विधि विरुद्ध ठहराते हुए बिल पारित कर दिया। तीन तलाक को केवल अवैध ही घोषित नहीं किया गया, बल्कि तलाक-तलाक-तलाक चिल्लाकर अपनी पत्नी को बीच मझधार छोड़ देने वाले शौहर को सजा का भी प्रावधान कर दिया। अब मुस्लिम औरतें अपने पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता भी मांग सकेंगी। इतना ही नहीं, बच्चों की कस्टडी की भी हकदार होंगी। दरअसल अनेक शताब्दियों से मुस्लिम मजहब स्वीकार कर चुकी महिलाओं को इस नए मजहब में तीन तलाक का दंश झेलना पड़ रहा था। यह मानवीय गरिमा को कलंकित करने वाला तो था ही, संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का भी हनन करता था। लेकिन इस्लाम की व्याख्या करने वाले मौलवी अडे़ हुए थे। उनका कहना था कि तीन तलाक इस्लाम की मौलिक अवधारणा का हिस्सा है, इसलिए इसे कोई छेड़ नहीं सकता।

उधर इस्लाम मजहब को मानने वाली औरतें भी अपने अधिकारों के लिए मैदान में उतर चुकी थीं। वे इस्लाम की आड़ में मुल्ला-मौलवियों की इस तानाशाही को बर्दाश्त करने के लिए किसी भी हालत में तैयार नहीं थीं। उनका एक और तर्क भी था। इस्लाम तो यह भी कहता है कि जो चोरी करता है, उसके दोनों हाथ काट देने चाहिए। अब जो मुसलमान मर्द चोरी करते हुए पकड़े जाते हैं, उनके हाथ क्यों नहीं काटे जाते? कभी किसी मुल्ला ने नहीं कहा कि मुसलमान चोर के हाथ काटो, तभी इस्लाम की रक्षा हो सकेगी? मौलवियों ने कभी चिल्लाकर नहीं कहा कि यदि मुसलमान चोर के हाथ न काटे  गए तो इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा? इसका अर्थ तो यह हुआ कि जिस इस्लाम से मर्द फंसता है, उस इस्लाम की चिंता मौलवियों को नहीं है, लेकिन जिस इस्लाम में औरत की गर्दन फंसती है, उसे बनाए रखने में सभी मौलवी एकजुट हैं। दरअसल तीन तलाक का इस्लाम से कुछ लेना-देना नहीं है। यह मौलवियों का मुस्लिम औरतों के मौलिक अधिकारों के हनन का षड्यंत्र मात्र है।

इससे पहले एक कमेटी ने निर्णय लिया था कि यदि 45 साल की उम्र से ज्यादा आयु की कम से कम चार औरतें एक साथ मक्का जाना चाहें, तो उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। तब भी मौलवियों का कहना था कि इससे हिंदोस्तान में इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा। आजकल हिंदोस्तान हर मामले में जल्दी ही खतरे में पड़ जाता है। जब औरतों ने कहा कि तीन बार तलाक चिल्ला देने से विवाह टूट नहीं सकता, तब मौलवियों ने उनकी गर्दन पकड़ी और कहा तुम्हारी इन बातों से इस्लाम खतरे में पड़ गया है। जब सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के वकील पति से कहा कि तुमने अपनी विवाहित औरत को छोड़ दिया है, इसलिए उसको गुजारा भत्ता दो, तो मौलवी एक साथ चिल्लाए कि इससे इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा। तत्कालीन सरकार भी न्याय और धर्म का रास्ता छोड़ कर मौलवियों के साथ हो गई। मौलवी इस्लाम की रक्षा के लिए उसके इर्द-गिर्द कुंडली मार कर खड़े हैं। लेकिन इस्लाम को आखिर औरत से ही इतना खतरा क्यों रहता है?

मुसलमानों की दो गैर सरकारी संस्थाएं भी अब तीन तलाक के मुद्दे को लेकर आमने-सामने खड़ी नजर आईं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच इसका उदाहरण है। मंच का कहना है कि तीन तलाक की प्रथा गैर कानूनी है और इसको कानून बना कर तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए। केवल कानून बना देने से भी काम नहीं चलेगा। जो इस पद्धति से अपनी पत्नी और बच्चों को बेसहारा छोड़ देता है, उसे इसका दंड भी दिया जाना चाहिए। मंच ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड की हैसियत को भी प्रश्नांकित करता है। उसका कहना है कि इस तथाकथित बोर्ड को, जो चंद पुराने जमाने के लोगों की गपशप करने का अड्डा मात्र है, सारे मुसलमानों की ओर से बोलने का अधिकार किसने दिया है? सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत मुसलमानों की इस प्रकार की हजारों संस्थाएं हैं, तो बोर्ड अपने आप को किस हैसियत से प्रतिनिधि कहता है?

बोर्ड के पास मंच के इन प्रश्नों का उत्तर तो नहीं है, लेकिन वह अपनी इस बात पर बजिद है कि सरकार को उससे इस मसले पर बात करनी चाहिए थी। लेकिन सरकार ने इस बार सबसे अच्छा काम यह किया कि मुसलमानों से सीधा संवाद कायम करके उनकी लंबे अरसे से चली इस मांग को स्वीकार लिया। उसने यह बातचीत मौलवियों के माध्यम से नहीं की। ज्यादातर काम बिचौलिए ही बिगाड़ते हैं। इन बिचौलियों को दरकिनार करने का ही परिणाम था कि तीन तलाक का बिल लोकसभा में सरलता से पारित हो गया। सैद्धांतिक रूप से सभी राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया। मुस्लिम महिलाओं की अरसे से चली आ रही यह मांग पूरी हो गई। ध्यान रखना चाहिए कि मुस्लिम महिलाओं को यह अधिकार प्राप्त करने के लिए बहुत लंबी और कष्टकारी लड़ाई लड़नी पड़ी है। उन्होंने यह लड़ाई सड़कों पर भी लड़ी है और न्यायालयों में भी लड़ी है। इस लड़ाई में उन्हें किसी का साथ प्राप्त नहीं हुआ। वे यह लड़ाई अकेले अपने दम पर ही लड़ती रही हैं। इसके विपरीत मोहल्लों के अंदर उन्हें मुल्ला-मौलवियों का विरोध सहना पड़ रहा था और न्यायालयों में सरकार का विरोध सहना पड़ रहा था। सरकार भी मुल्ला-मौलवियों के साथ खड़ी हो गई थी। मुस्लिम महिलाओं को इस बात की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने इस सबके बावजूद अपना संघर्ष नहीं छोड़ा और विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ती रहीं।

मोदी सरकार को इस बात का श्रेय अवश्य दिया जाना चाहिए कि वह मुल्ला-मौलवियों की बजाय आम महिलाओं के पक्ष में खड़ी नजर आई। उच्चतम न्यायालय को भी यह कहना पड़ा कि सरकार को तीन तलाक की अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून बनाना चाहिए। इस नए कानून से, जिसे अभी राज्यसभा में पारित होना है, मुस्लिम महिलाएं एक स्थायी आतंक से मुक्त हो जाएंगी। यह उनके लिए एक नए शुभ दिन की शुरुआत मानी जानी चाहिए। आशा करनी चाहिए इससे मुस्लिम समाज की युवा पीढ़ी अपने समाज के अंदर इस्लाम के नाम पर लाद दी गई कुरीतियों को दूर करने  का भरसक प्रयास करेगी। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने ऐसा आंदोलन चलाने का निर्णय लिया भी है।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App