भारत का इतिहास

By: Dec 27th, 2017 12:05 am

महात्मा गांधी की अध्यक्षता में सर्वदलीय सम्मेलन

गतांक से आगे… कांग्रेस ने इस अधिनियम को अपर्याप्त, असंतोषजनक और निराशाजनक बताया और आग्रह किया कि भारत  में शीघ्र्र ही आत्मनिर्णय के सिद्धांत के आधार पर पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाए। 1919 के अधिनियिम के विरोध में, स्वयं भारतीयों द्वारा भारत का संविधान अपनाने के लिए एक संविधान सभा की मांग निहित थी। इससे पहले दिसंबर 1918 में, देहली में, कांग्रेस के 33वें अधिवेशन में एक प्रस्ताव के द्वारा यह मांग की गई थी कि आत्म निर्णय का सिद्धांत भारत पर  लागू किया जाए, किंतु इस सबके बावजूद स्वयं भारतीयों द्वारा भारत का संविधान बनाए जाने की बात स्पष्ट शब्दों में पहली बार महात्मा गांधी ने 5 जनवरी, 1922 को कही। यद्यपि उन्होंने संविधान-सभा शब्दबंध का प्रयोग नहीं किया, फिर भी उनकी बात में एक ऐसी प्रतिनिधिक संस्था का बीज निहित था। इसी वर्ष श्रीमती एनी बेसंट के सुझाव पर शिमला में केंद्रीय विधान मंडल के दोनों सदनों के सदस्यों की एक सभा हुई, जिसमें संविधान निर्माण के लिए एक सम्मेलन बुलाने का निश्चय किया गया। 1923 में फिर एक सभा की गई, जिसमें केंद्रीय और प्रांतीय विधानमंडलों के सदस्य उपस्थित थे। इस सभा ने संविधान के आवश्यक तत्त्वों की एक रूपरेखा तैयार की, जिसके अनुसार भारत को अन्य स्वशासित उपनिवेशों के साथ बराबरी का दर्जा दिया गया था। एक वर्ष बाद, फरवरी 1924 में इस सभा ने एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया। सम्मेलन के अध्यक्ष थे सर तेज बहादुर सपू्र। इस सम्मेलन की बैठक हुई अप्रैल 1924 में। बैठक में एक भारतीय कॉमनवैल्थ का प्रारूप तैयार किया गया। दिसंबर 1924 में सम्मेलन की मुबई बैठक में विधेयक पर आगे विचार हुआ। कुछ संशोधनों के बाद विधेयक जनवरी 1925 में देहली में हुए सर्वदलीय सम्मेलन के सामने रखा गया। सर्वदलीय सम्मेलन महात्मा गांधी को अध्यक्षता में हुआ। आगे और भी विचार- विनिमय संशोधनों और परिमार्जन के बाद विधेयक को ब्रिटिश संसद के सामने प्रस्तुत कराने का प्रयास किया गया। विधेयक को श्रमिक दल के एक सदस्य के पास एक पत्रक के साथ भेजा गया। पत्रक पर 43 प्रमुख भारतीय नेताओं के हस्ताक्षर थे। श्रमिक दल ने कुछ संशोधनों के साथ विधेयक को स्वीकार कर लिया। दिसंबर 1924 में विधेयक हाउस ऑफ कामन्स में पुरःस्थापित किया गया तथा उसका प्रथम वाचन हो गया। बाद में आम चुनावों में श्रमिक दल की हार के साथ इस विधेयक का भाग्य भी सो गया, किंतु नितांत सांविधानिक और शांतिपूर्ण ढंग से भारत को स्वशासन का अधिकार दिलाने तथा ब्रिटिश संसद के माध्यम से उसका नया संविधान लागू करने का यह एक महत्त्पवूर्ण प्रयास था। इसी बीच 1924 में केंद्रीय विधान-सभा में स्वराज दल के नेता, पंडित मोतीलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जो आगे चलकर राष्ट्रीय  मांग के नाम से काफी विख्यात हुआ।                 -क्रमशः


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