वास्तुविद्या को वरदान मानते हैं एनके नेगी

By: Dec 13th, 2017 12:07 am

एनके नेगी वास्तुविद्या को भगवान द्वारा दिया वरदान मानते हैं। उनका कहना है कि यह कला हर किसी को नहीं मिलती। यह एक सृजनात्मक कला है। आर्किटेक्ट जो नहीं होता, उसको अपनी कल्पना में देखता है और उसका सृजन करता है। उनका कहना है कि किसी भी भवन का डिजाइन बनाने के लिए साइट की जानकारी  और इससे संबंधित सारी जानकारी को ध्यान में रखा जाता है…

पीडब्ल्यूडी के एनके नेगी प्रमुख वास्तुकार हैं। इनका जन्म किन्नौर जिले की सांगला तहसील के किल्बा गांव में 17 दिसंबर, 1961 को हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा (पहली से तीसरी) एडवर्ड स्कूल शिमला, तीसरी से छठी तक केद्रीय विद्यालय जाखू शिमला, 6वीं से 11वीं नेशनल इंडियन मिलिट्री कालेज देहरादून में हुई। इन्होंने वर्ष 1984 में चंडीगढ़ कालेज ऑफ आर्किटेक्चर से बी आर्किटेक्ट और सीसीए की शिक्षा हासिल की। एम आर्किटेक्ट, अर्बन डिजाइन (स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर) के बाद कुछ समय तक चंडीगढ़ में प्राइवेट प्रैक्टिस की। 1986 में लोक निमार्ण विभाग में बतौर असिस्टेंट आर्किटेक्चर पहली पोस्टिंग हुई। इस दौरान रिजनल इंजीनियरिंग कालेज हमीरपुर को डिजाइन किया।

जमीन से जुड़े हैं एनके नेगी

एनके नेगी भले ही एक अच्छे खासे परिवार में पले हों, लेकिन वह जमीन से जुड़े रहते हैं। यही वजह है कि इन्होंने 1984 में बी आर्किटेक्ट करने के बाद अपने गांव में डेयरी का काम शुरू किया। इन्होंने इसे अपना पेशा बना दिया।

वास्तुविद्या (आर्किटेक्चर ) भगवान का दिया वरदान

एनके नेगी वास्तुविद्या को भगवान द्वारा दिया वरदान मानते हैं। उनका कहना है कि यह कला हर किसी को नहीं मिलती। यह एक सृजनात्मक कला है। आर्किटेक्ट जो नहीं होता, उसको अपनी कल्पना में देखता है और उसका सृजन करता है। उनका कहना है कि किसी भी भवन का डिजाइन बनाने के लिए साइट की जानकारी  और इससे संबंधित सारी जानकारी को ध्यान में रखा जाता है। इसमें स्लोप ओरिएंटेशन, भूमि, आसपास का वातावरण जैसे जंगल आदि का ध्यान रखा जाता है। इस डिजाइन को आसपास के स्पेस से मैच करके बनाया जाता है। उनका प्रयास रहता है कि किसी भी भवन का डिजाइन करते हुए वास्तुशास्त्र का भी पूरा ध्यान रखा जाए।

बड़ी नहीं, छोटी चीजों से भी मिलती है खुशी

एनके नेगी हिमाचल में सैकड़ों भवनों के डिजाइन कार्य से जुड़े रहे हैं। इनमें शिमला में बन रही न्यायिक अकादमी, धर्मशाला का युद्ध संग्राहलय, शिमला का तारादेवी मंदिर का पुनर्निर्माण, हाई कोर्ट का भवन,  राजभवन का पुनरोद्धार (रेनोवेशन) कार्य प्रमुख हैं। शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर के रेस्टोरेशन वर्क के भी एनके नेगी संयोजक रहे हैं। नेगी का कहना है कि उनको केवल बड़े प्रोजेक्ट का डिजाइन करने से खुशी नहीं मिलती, बल्कि छोटे-छोटे डिजाइन बनाने से भी उनको खुशी मिलती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने रिज  में आशियाना के समीप पार्क के गेट पर कई साल पहले एक टिकट काउंटर का डिजाइन तैयार किया था। इसको बनाने में यहां इसके पीछे आ रहे आशियाने के दृश्य को बरकरार रखना था। उनका कहना था कि हालांकि यह छोटा सा डिजाइन था, लेकिन इसको डिजाइन करने से उनको जो खुशी मिली थी, वो शायद ही किसी अन्य प्रोजेक्ट में मिली हो।

हेरिटेज कमेटी के सदस्य भी

एनके नेगी स्टेट हेरिटेज कमेटी के भी सदस्य हैं। राज्य में हेरिटेज के संरक्षण पर उनका कहना था कि इसको सहेजना आसान नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकांश हेरिटेज भवन काष्ठकुणी शैली में बनाए गए हैं, जिनमें पत्थर, मिट्टी और लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन अब न तो पत्थर मिल पाते हैं और न ही लकडि़यां मिलती हैं। अब पुराने भवन भी आरसीसी में बदले जा रहे हैं, लेकिन फिर भी प्रयास रहता है कि हिमाचल की विरासत को संजोकर रखा जाए।

-खुशहाल सिंह, शिमला

जब रू-ब-रू हुए…

टीसीपी नियमों पर पुनर्विचार जरूरी…

हिमाचली वास्तुकला को आज के संदर्भों को कैसे परिभाषित करेंगे?

पहाड़ी राज्य हिमाचल को अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, लेकिन यह आज कंकरीट के जंगल में बदलता जा रहा है। खामियां भवनों को डिजाइन करने को लेकर भी हैं। पहले जहां धूप, पानी और जगह को ध्यान में रखकर भवनों का निर्माण किया जाता था, लेकिन आज भवन बनाते वक्त यह सब देखा नहीं जा रहा। पहाड़ों पर कंकरीट का जंगल बनाया जा रहा है और आज के संदर्भ में यही वास्तुकला की परिभाषा बन गई है।

शिमला या प्रदेश की किस धरोहर इमारत का पुनर्निंर्माण कठिन है?

हिमाचल के सभी प्राचीन मंदिर अपने आप में धरोहर हैं, इनका पुनर्निर्माण करना बेहद कठिन है। इनका रिसोर्स मैटीरियल मिलना ही मुश्किल है। ऐसी प्राचीन धरोहरों को संरक्षित रखा जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढि़यां यह देख सकें कि हिमाचल की प्राचानी वास्तुकला कितनी समद्ध थी।

आपके लिए क्रिएशन क्या है?

मेरे लिए क्रिशएन का मतलब है कि केवल इतना ही निर्माण करें, जितनी जरूरत है। हम बिना जरूरतों के बड़े-बड़े भवन खड़े कर प्रकृति को नष्ट करने पर तुले हुए हैं। यह सही है कि हमारी महत्वकाक्षाएं होनी चाहिएं ताकि विकास हो, लेकिन इसकी एक सीमा हो, यह जरूरी है।

एक आर्किटेक्ट के रूप में आप अपनी किस रचना (इमारत के डिजाइन) का गौरवमयी प्रतिनिधित्व करना चाहेंगे?

केवल बड़े प्रोजेक्ट का डिजाइन करने से खुशी नहीं मिलती बल्कि छोटे-छोटे डिजाइन बनाने से भी मुझे खुशी मिलती है। शिमला के रिज में आशियाना के समीप पार्क के गेट पर कई साल पहले एक टिकट काउंटर का डिजाइन मैंने तैयार किया था। इसको बनाने में यहां इसके पीछे आ रहे आशियाने के दृश्य को बरकार रखना था। हालांकि यह छोटा सा डिजाइन था, लेकिन इसको डिजाइन करने से मुझे जो खुशी मिली थी, वो शायद ही किसी अन्य से मुझे मिली हो।

आधुनिक हिमाचल के छह सर्वश्रेष्ठ भवन?

मनाली के लॉग हट, मंडी में  पीडब्लयूडी रेस्ट हाउस, धर्मशाला का वार म्यूजिम, किन्नौर के रिकांगपिओ में बचत भवन, न्यायिक अकादमी शिमला और रामपुर का बस स्टैंड और ऑडिटोरियम बेहतर वास्तुकला को दर्शाते हैं।

निजी क्षेत्र में निर्माण को लेकर आपकी प्रतिक्रिया, चिंता या संतोष?

हिमाचल में भवनों की ऊंचाई को निर्धारित करने के लिए एफआरए सिस्टम लागू किया गया है, लेकिन मेरा मानना है कि यहां सभी जगह एक जैसा एफआरए लागू नहीं हो सकता। एनजीटी का हाल ही में अढ़ाई मंजिल तक मकान की ऊंचाई निर्धारित करने का फैसला सही है। टीसीपी के जो नियम हैं, उन पर पुर्नविचार करने की जरूरत है। हिमाचल की तुलना मैदानी इलाकों से नहीं की जा सकती है। किस जगह कैसा निर्माण हो, इसके लिए जियो टेक्निकल रिपोर्ट जरूरी है। इसके आधार पर ही निर्माण किया जाना चाहिए।

क्या हम पर्वतीय हालात के अनुरूप कोई डिजाइन-मॉडल बना पाए?

प्रदेश में अभी तक इस तरह का डिजाइन-मॉडल नहीं बन पाया है। हां, हमने शिमला में एसडीए कांप्लेक्स का डिजाइन पवर्तीय हालात के अनुरूप तैयार किया था। यहां पर रोड विड्थ सहित अन्य फैक्टर को ध्यान में रखकर अढ़ाई मंजिला भवनों का प्रावधान किया गया था, लेकिन बाद में यहां भवनों की ऊंचाई साढ़े चार मंजिला तक करने की इजाजत दी गई। जबकि यह पर्वतीय हालात के अनुकूल नहीं है।

आपके अध्ययन का विषय शहरी विकास से भी जुड़ता है। हिमाचल के मौजूदा दौर में शहरी अधोसंरचना को किस स्थिति में देखते हैं और कहां-कहां सुधार की गुंजाइश है?

राज्य में शहरी क्षेत्रों का विकास तेजी से हुआ है। इससे शहरों का ले-आउट भी बिगड़ गया है। राज्य में अधिकांश शहरी क्षेत्रों में रिबन डिवेलपमेंट हुआ है। मसलन सड़कों के साथ ही शहरी केंद्र फैल रहे हैं। पहले जहां शहरी क्षेत्र के बाहर कुछ किलोमीटर का हिस्सा ग्रीन एरिया रहता था, लेकिन अब यह ग्रीन एरिया गायब हो रहा है। शिमला और सोलन की बात करें दोनों शहरों के बीच अब सड़कों के किनारे ही भवन बन रहे हैं। शहरों में जनसंख्या के दबाव के चलते इसकी सुविधाओं पर भी दबाव बढ़ गया है, इससे ये सुविधाएं कम पड़ रही हैं।

शिमला-धर्मशाला को स्मार्ट सिटी का टैग लगने जा रहा है। ऐसे में आपके अनुसार इन दोनों शहरों को भविष्य के अनुरूप कौन सी प्राथमिकताएं तय कर लेनी चाहिएं?

कौन सा शहर कितना स्मार्ट है, यह उसके बाह्य रूप से तय नहीं होता। इसके लिए यह जरूरी है कि शहर के अंदर तक की सेवाएं दुरुस्त हों। यह जरूरी है कि शहर की अंडरग्राउंड सर्विस सही ढंग से काम करे और वे वैल मेंटेंड हों। यह भले ही छोटी बात लगती है, पर इसके मायने बड़े हैं। विदेशों में सीवरेज सिस्टम अंडरग्राउंड ऐसा बनाया दिया है कि इस सिस्टम के को अंदर जाकर दुरुस्त किया जा सकता है। ऐसे में इन शहरों में भी इनका ध्यान रखा जाना चाहिए। इन शहरों की मौजूदा सुविधाओं को अपग्रेड करना जरूरी है।

हिमाचली विकास में अधोसंरचना निर्माण  की आदर्श आचार संहिता क्या हो सकती है?

निर्माण कार्य ऐसा हो जो कि प्रकृति को नष्ट न करे। पहले हम भवन बनाते समय प्रकृति का पूरा ध्यान रखते थे। पुराने कई मंजिला भवन की आउटलुक ऐसी रहती थी, जो कि इसके आसपास के वातावरण से मेल खाती थी। भवनों का मैटीरियल भी प्रकृति से मेल खाता था, लेकिन दुर्भाग्य से अब ऐसा नहीं है। ऐसे में यह जरूरी है कि भवन या कोई अन्य अधोसंरचना का निर्माण करते समय प्रकृतिक सुंदरता को बरकार रखा जाए।

प्रदेश की सरकारी इमारतों में प्रायः एकरूपता रहती है और जहां स्कूल व अस्पताल एक जैसे दिखाई देते हैं, सार्वजनिक भवनों में नए मानदंड व डिजाइन की जरूरत को कितनी गंभीरता से लेते हैं और इस दिशा में क्या प्रयास हो रहे हैं?

पहले ऐसा जरूर था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब सार्वजनिक भवनों का डिजाइन करते हुए उसकी उपयोगिता को ध्यान में रखा जा रहा है। मसलन, स्कूल और अस्पताल  की उपयोगिता अलग -अलग होती है, ऐसे में इनके डिजाइन भी अलग-अलग तैयार किए जाते हैं। राज्य में बनने वाले नए भवनों में इनका पूरा ख्याल रखा जा रहा है।

भूकंप या अन्य प्राकृतिक त्रासदियों के सामने आम हिमाचली का घर सुरक्षित कैसे बच सकता है?

हिमाचल भूंकप के लिहाज से संवेदनशील है। ऐसे में यह जरूरी है कि अलग-अलग सिसमिक जोन के हिसाब से ही भवनों का निर्माण किया जाना चाहिए। वहीं कैचमेंट एरिया और नदी नालों में भवनों के निर्माण की जो प्रवृत्ति हिमाचल में देखने को मिल रही है, यह विनाशकारी साबित हो सकती है। इसे रोका जाना चाहिए।

विकास और निर्माण की अंधी दौड़ के बीच संतुलन को कैसे तय करें?

विकास और निर्माण दोनों जरूरी हैं, लेकिन निर्माण करते वक्त यह जरूरी है कि इसके लिए जरूरी सुविधाएं मौजूद हों। पहले गांव व बस्तियां वहीं बसाई जाती थीं, जहां पर पानी, धूप जैसी सुविधाएं होती थीं। वहीं इसके लिए जगह का भी ख्याल रखा जाता था, लेकिन आज के दौर में ऐसा नहीं हो रहा।

कोई आगामी परियोजना, जो आपके करियर की वास्तविक चुनौती व परीक्षा जैसी है?

अभी कोई ऐसी किसी परियोजना का जिक्र करना मुश्किल होगा। हां, मेरा प्रयास रहेगा कि आने वाली पीढ़ी को प्राचीन समृद्ध वास्तुकला से रू-ब-रू करवाऊं। आने वाली पीढ़ी तक इस ज्ञान को पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है।


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