हाथों के हुनर ने दी पहचान

By: Dec 24th, 2017 12:15 am

परिवार की गरज के लिए साथी बनाई खड्डी अब शोहरत के साथ ख्याति के तंतु भी बुन रही है। मजबूरी और खानदानी परंपरा का संगम बनी खड्डी ने आज चौदह और लोगों को भी मान-सम्मान के साथ जीने की राह दिखाई है। इतना ही नहीं, खून-पसीने की यह कमाई अब रिकांगपिओ बाजार में एक आलीशान इम्पोरियम के रूप में न केवल समाज की सेवा कर रही है, बल्कि लोगों को स्वाभिमान के साथ सिर ऊंचा कर सही समय पर सही दिशा में उठाए कदम का सबूत भी दे रही है। इस बार की हमारी प्रेरणा की साथी किन्नौर के मीरू में जन्मी धाता मनी हैं। धाता मनी दूरदराज के गांव की वह महिला हस्ती हैं,जिसने मुफलिसी में भी हार नहीं मानी । दारूण दौर में भी अपनी हिम्मत, सूझबूझ और संयम का परिचय देते हुए अपनी परंपरा और दादा- पड़दादा  और बाद में खास कर अपने पति से सीखे हुनर को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सफलता का शिखर चूम लिया। बर्फबारी के दौरान ठहरे जन -जीवन और अजीब सी खामोशी के बीच धाता मनी को खड्डी की आवाज अपनी ओर खींचती थी। बाल्यावस्था में उपजा यह शौक कब जुनून बन गया, पता ही नहीं चला। धाता धागों की इस दुनिया में इतनी मशगूल हो गईं कि अंगुलियों के पोर पर ही तंतुओं की पहचान हो गई। किन्नौरी पट्टू, दोहडू, गाछी, पोटी, ऊनी चोली, चोली मखमल और किन्नौरी टोपी जैसे परिधानों को हाथों के हुनर से तराश कर धाता मनी कुशल कारीगर बन गईं। अपने शुरुआती जीवन में धाता ने इस कला में महारत हासिल कर ली। बाद में शुदारंग के धर्म लाल से शादी के बाद धाता मनी अपने ससुराल आ गईं। गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर धाता मनी कुछ नया करने की हसरत पाले थीं, पर मान-मर्यादा के बंधन में बंधी किसी भी महिला के लिए पुरुष प्रधान समाज में दहलीज से बाहर कदम रखना मुश्किलों भरा होता है। धाता मनी अपने पति के साथ गृहस्थ की जिम्मेदारी साझा करना चाहती थी। आर्थिक तंगहाली परिवार की सबसे बड़ी दिक्कत थी। अब तक के सफर में राह का रोड़ा भी यही बन रही थी।  इसमें पड़दादी से  और बाद में पति से सीखी धागों की बारीक कारीगरी ने खुशहाली का रास्ता बनाना शुरू कर दिया। धाता खड्डी पर काम कर किन्नौरी पट्टू बनाने लगी। बस यहीं से कामयाबी का सफर शुरू हो गया। धाता ने किन्नौरी पट्टू के साथ-साथ किन्नौरी टोपी और गाछी,चोली की बुनाई भी शुरू कर दी। धाता के इन उत्पादों की लोग जमकर सराहना करने लगे। बाद में पति धर्म लाल ने रिकांगपिओ के इंडस्ट्रियल एरिया में प्लाट लेकर खड्डी पर बने हुए किन्नौरी उत्पादों को लोगों तक पहुंचाने का बीड़ा उठा लिया। शुरुआत में ग्राहक भी मिले पर कभी पैसे फंस जाएं, तो कभी समय पर आर्डर ही पूरा न हो। दिक्कतें आईं पर पति के साथ से धाता मनी ने हर चुनौती को अवसर की तरह लिया और अपने हुनर, मेहनत, लगन से मुसीबतों पर जीत हासिल कर ली और मनी हैंडलूम हर मेहनती के सामने एक आदर्श बनकर खड़ा हो गया। धाता मनी बताती हैं कि खड्डी पर हाथों से तैयार एक किन्नौरी पट्टू की कीमत 25 हजार रुपए तक होती है और यह हाथोंहाथ बिक जाता है। एक तो यह महीन कारीगरी का नमूना होता है, साथ ही साथ बेहतरीन ऊन से आलीशान तरीके से सजाया जाता है। इसके साथ ही महिलाओं की पूरी किन्नौरी ड्रेस की कीमत चालीस हजार के करीब बनती है। इस सबमें सबसे महंगा पट्टू ही होता है, जो पूरी ड्रेस को बेहतरीन लुक के साथ पेश करता है। धाता मनी बताती हैं कि यहां पर स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहरी मुल्कों इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, अमरीका, इटली, कनाडा और आस्ट्रेलिया के लोग इन पट्टुओं की यहां आकर सबसे ज्यादा खरीददारी करते हैं। साथ ही साथ काम की तारीफ भी करते हैं, जो कि किसी भी कारीगर के लिए सुखद अनुभूति होती है। हां, पर इसमें समय भी बहुत ज्यादा लगता है। एक पट्टू तैयार करने में डेढ़ महीना लगता है। इस पट्टू की खासियत यह है कि इसका ताना बाहर से आता है और बाना यानी कि महीन ऊन किन्नौर की ही होती है। कारोबार बढ़ते ही धर्म लाल और धाता मनी ने चौदह और लोगों के लिए रोजगार की राह प्रशस्त की है। किन्नौरी के साथ-साथ धाता मनी पूरे प्रदेश के लिए एक आदर्श बनकर सामने आई हैं , जिन्होंने अपनी मेहनत से चट्टानों में भी फूल खिलाकर साबित कर दिया कि पहाड़ की महिला के आगे कोई भी चुनौती बड़ी नहीं है। चुनौती को अवसर की तरह लो….और जहां जीत लो। सफलता का सूत्र भी यही है और सार भी।

मुलाकात

सरकारी प्रोत्साहन से यह कला निखरेगी…

खड्डी पर जीवन  बुनने का एहसास कैसा रहा।

सुखद एहसास होता है, जब कोई मेरे हाथों से तेयार की गई पोशाकों की प्रशंसा करता है। इस हुनर को आगे बढ़ाने मेरे पति धर्म लाल का बहुत बड़ा सहयोग रहा है। आज अपने इस क्षेत्र में मान-सम्मान दोनों मिलने से मैं व  मेरा परिवार संतुष्ट है।

आपके लिए सबसे सरल उत्पाद कौन सा है और जिसे बनाने में समय व श्रम अधिक लगता है?

प्लेन शाल व प्लेन कोट पट्टी, प्लेन पट्टू। सब से मुश्किल किन्नौरी डिजाइन में तैयार होने वाले उत्पाद जैसे किन्नौरी पट्टृ, शाल, दोहडू आदि।

सबसे अधिक  कब कमाया या अब तक अनूठा  उत्पाद क्या रहा?

उत्सव के दौरान खरीददारों की संख्या बढ़ती है। जैसे रामपुर का अंतरराष्ट्रीय लवी मेला तथा रिकांगपिओ में होने वाले राज्य स्तरीय किन्नौर महोत्सव के दौरान।

किसी अति  विशिष्ट व्यक्ति से मुलाकात हुई  या खरीददारी के लिए कोई  संपर्क बढ़ा?

विशेष उत्सवों के दौरान महामहिम राज्यपाल व मुख्य मंत्रियों से मुलाकात होती है। उस दौरान किन्नौरी उत्पाद को लेकर चर्चा होती है।

धागों का कमाल स्पष्ट है, तो इनकी खरीद कहां से करती हैं?

उत्पाद तैयार करने के लिए कच्चा माल स्थानीय लोगों से लेने के बाद उस माल की कताई से लेकर बुनाई तक स्वयं तैयार किया जाता है।

किन्नौर की  जिस विशेषता में आपको सुकून  मिलता है, उसके बारे  में  क्या कहेंगी?

हल्के व प्लेन वस्त्र जल्द तैयार होते हैं। यदि किसी मेहनत का मेहनताना हाथोंहाथ मिलता है तो सुकून भी जल्द मिलता है।

किसी फिल्मी नायिका या बड़ी हस्ती को किन्नौरी पोशाक में देखना पसंद करेंगी। ऐश्वर्य राय बच्चन को।

इस कला का  विस्तार व संरक्षण कैसे संभव है?

लोगों को इस दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को बड़े कदम उठाने होंगे ताकि अधिक लोग इस क्षेत्र में काम कर अधिक लाभ उठा सकें।

जो खासियत सिर्फ किन्नौरी महिला के  साथ जुड़ती है?

किन्नौरी शॉल, पट्टू व दोहडू में बनाए जाने वाले किन्नौरी डिजाइन को पेटेंट किया गया है। कोई दूसरा व्यक्ति इस डिजाइन को नहीं बना सकता है। ऐसे में किन्नौरी डिजाइन पर काम करते रहने के बाद यहां के लोगों में किन्नौरी डिजाइन में काम करना आसान लगता है। किन्नौरी डिजाइन में काम करने में समय बहुत अधिक लगता है।

कोई सपना जो खड्डी पर बुनती हैं?

यह कारोबार हमारे परिवार का मुख्य आय का साधन है। ऐसे में इस कारोबार को ऊंचाइयों तक  पहुंचाना मेरे पति व मेरा एक बड़ा सपना है।

खड्डी के  अलावा आपके जीवन का सत्य और मनोरंजन?

एक ही काम को करते रहने के बाद जब थकान होने की सूरत में साल के कुछ समय धार्मिक स्थलों की यात्रा करने के साथ-साथ फि ल्में व टीवी आदि देखने के अलावा सोशल मीडिया जैसे व्हट्सऐप, फेसबुक, यू-ट्यूब, इंस्टाग्राम आदि का सहारा लेकर भी अपने आप को तरोताजा करती हूं।

कभी यूं ही जब गुनगुनाती हैं तो… ?

कि न्नौर के अपने पुराने गाने गुनगुनाना अच्छा लगता है।

  • मोहिंद्र नेगी, रिकांगपिओ


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