जल-नमयान
डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर
चीर रहे थे जल अभी, भेद लिया आकाश,
मुखिया उड़े विकास को, हुआ विपक्ष हताश।
हुआ विपक्ष हताश, बोलती बंद हो गई,
हड्डी वाली सख्त जीभ, अब कहां खो गई?
जनसेवक मुस्करा रहे, बोल रहा है काम,
अब विपक्ष के सामने, धूमिल नहीं अंजाम।
सेवक साबरमती से, भर रहे उड़ान,
इस चुनाव में यान ने, डाली अद्भुत जान।
नमो-नमो संगीत से, गूंज रहा आकाश,
शत-प्रतिशत अब बंध गई, उन्हें जीत की आस।
नहीं हवा इसकी लगी, कसकर मारी चोट,
टांग अड़ा लें लाख वे, बरसेंगे अब वोट।
जादू से सी-प्लेन से, गुपचुप खेला खेल,
लो विकास पगला गया, गया बेचने तेल।
केवल यहां विकास है, नहीं मची है लूट,
पाटीदार समझ चुके, आरक्षण की छूट।
बढेरा का भाई सगा या मतलब का यार,
अपनों को धोखा दिया, कैसा पाटीदार।
नागमणि अब सिसकते, दिन में हो गई रात,
नीच दिलाती जीत, वो जीतेंगे गुजरात
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