खेल सामान की खरीद पर गिद्ध निगाहें

By: Jan 5th, 2018 12:05 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

राज्य में करोड़ों का खेल सामान प्रति वर्ष शिक्षा विभाग के संस्थान, निदेशालय व राज्य के खेल विभाग द्वारा खरीदा जाता है, मगर इसमें से अधिकतर सामान नकली होता है। यह निचले दर्जे का खेल सामान न तो खिलाड़ी के काम आता है और न ही वह अधिक देर तक चलता है…

जैसे-जैसे विश्व में खेलों का स्तर दिन-प्रतिदिन उत्कृष्ट होता जा रहा है, वैसे-वैसे खेल उपकरणों तथा प्ले फील्ड्ज की वैज्ञानिक आधार पर गुणवत्ता बढ़ाई जा रही है। खेल सामान की गुणवत्ता बढ़ने से सामान महंगा भी हो रहा है, मगर हिमाचल प्रदेश में कीमत तो अच्छी गुणवत्ता वाले सामान की है और जो सामान बेचा जाता है, वह निम्न दर्जे का होता है। आज अधिकतर खेल मिट्टी व सीमेंट के फर्श से आगे निकल कर सिंथेटिक ट्रैक या एस्ट्रो टर्फ तक पहुंच चुके हैं। वहीं इंडोर स्टेडियमों व हालों में वुडन फर्श के ऊपर ट्रेरा फ्लैक्स आदि कृत्रिम सतह बिछाई जा रही है, जिससे खेल में अधिक तेजी व सुधार हो सके। हिमाचल में बनी इन आधुनिक अंतरराष्ट्रीय प्ले फील्ड्ज की जांच के लिए क्या राज्य में उस स्तर के अधिकारी हैं?

हिमाचल प्रदेश का उच्चतर शिक्षा निदेशालय सालाना हर महाविद्यालय के लिए लाखों रुपए के खेल उपकरण खरीदता है। आज तक इस अनुदान से जो भी खेल सामान जहां भी आया है, वह बेहद निम्न दर्जे का रहा है। दो-चार बार के उपयोग के बाद वह खेल सामान व उपकरण कबाड़ हो जाते हैं। उच्चतर शिक्षा निदेशालय द्वारा मिलने वाले इस अनुदान की कागजी कार्रवाई भी खेल सामान बेचने वाले दलाल ही पूरी करते देखे गए हैं। क्या इस खेल सामान की गुणवत्ता शिक्षा संस्थान के प्रमुख तथा शारीरिक शिक्षा के शिक्षक ने कभी परखी है? अच्छे खिलाडि़यों व खेल सामान के जानकारों ने इस फर्जीबाड़े की दबी जुबान में ही चर्चा की है। क्या इस खेल सामान के नकलीपन की जांच कभी हो पाएगी? असली सामान जो लाखों रुपए का होता है, उसकी जगह ब्रांड की मुहर लगाकर कुछ हजार रुपए के लिए नकली सामान थमा दिया जाता है। मुक्केबाजी में प्रयुक्त होने वाला रिंग हो या हाई जंप के गद्दे, विभिन्न महाविद्यालयों में जो उच्चतर शिक्षा निदेशालय की तरफ से खरीदे हैं, लगभग सभी निम्न स्तर के हैं। क्या इस खेल सामान की बंदरबांट पर नई सरकार अंकुश लगाएगी? महाविद्यालय स्तर पर हर विद्यार्थी की फिटनेस व उसके संपूर्ण विकास के लिए शारीरिक शिक्षा विभाग हर वर्ष लाखों रुपए का खेल सामान खरीदता है। अधिकतर महाविद्यालयों में खेलों का सामान तो बिलकुल ही नकली होता है। यह अलग बात है कि राज्य के दो-चार महाविद्यालयों में खिलाडि़यों की पसंद से उनके स्तर को देखकर खेल सामान का ऑर्डर दिया जाता है।

महाविद्यालय स्तर पर नियुक्त शारीरिक शिक्षा के प्राध्यापक को भी सभी खेलों के सामान की गुणवत्ता का पता न होने के कारण कई बार घटिया सामान दे दिया जाता है। राज्य के विद्यालयों द्वारा भी खेल सामान खरीदा जाता है, मगर यह करोड़ों रुपए का खेल सामान भी अधिकतर नकली ही देखा गया है। राज्य का खेल विभाग भी हर वर्ष विभिन्न जिलों के लिए लगभग हर खेल में प्रयुक्त होने वाला सामान खरीदता है, मगर इस सामान की गुणवत्ता भी बेहद निचले स्तर की होती है। हिमाचल का खेल विभाग हर वर्ष खेल सामान विक्रेताओं के लिए मूल्य अनुबंध निर्धारित करता है, मगर वहां जो सामान अनुबंध के समय दिखाया जाता है, वह सामान संस्थान को बेचती बार निम्न स्तर में बदल दिया जाता है। आज राज्य में लाखों विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा उनकी फिटनेस तथा विद्यार्थियों में से निकलने वाले चुनिंदा उत्कृष्ट खिलाडि़यों के लिए खेल उपकरणों का प्रबंध तो विद्यार्थियों से लिए गए खेल शुल्क से ही किया जाता है। यहां खरीदे गए खेल उपकरणों के निरीक्षण के लिए किसी अनुभवी खेल अधिकारी का होना भी जरूरी हो जाता है, जो यह तय कर सके कि खेल सामान असली है या नकली। राज्य का खेल विभाग भी प्रति वर्ष सरकारी बजट से खेल उपकरण खरीदता है, मगर उसके यहां नियुक्त प्रशिक्षकों की राय क्या खेल सामान खरीदती बार ली जाती है?

राज्य में करोड़ों का खेल सामान प्रति वर्ष शिक्षा विभाग के संस्थान, निदेशालय व राज्य के खेल विभाग द्वारा खरीदा जाता है, मगर इसमें से अधिकतर सामान नकली होता है। सही गुणवत्ता वाला सामान जहां खिलाडि़यों के स्तर में उत्कृष्ट स्तर तक सुधार करता है, वहीं पर अधिक देर तक भी चलता है। इसके विपरीत यह निचले दर्जे का खेल सामान न तो खिलाड़ी के काम आता है और न ही वह अधिक देर तक चलता है। राज्य के संस्थानों के अधिकतर अच्छे खिलाड़ी स्वयं अच्छी गुणवत्ता वाला खेल सामान अपने धन से खरीदते देखे जा सकते हैं। राज्य के शिक्षा संस्थानों के प्रमुखों, शारीरिक शिक्षा के अध्यापकों तथा राज्य के खेल अधिकारियों को इस खेल सामान की हेरा-फेरी को दूर करने के लिए आगे आना होगा। साथ ही मूल्य अनुबंध के समय केवल गुणवत्ता वाले खेल सामान को ही सूची में स्थान देना होगा, ताकि राज्य के खिलाडि़यों पर खर्च होने वाले ये करोड़ों रुपए यूं ही बर्बाद न हो जाएं।


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