डगशाई में कैद थे आइरिश विद्रोही नेता

By: Jan 10th, 2018 12:05 am

165 वर्ष पुरानी छावनी की शिल्पकला और ऐतिहासिक विरासत को पुनर्जीवित करने के दृष्टिगत, सेना ने जेल की ऐतिहासिक संगतता को दर्शाने के लिए एक संग्रहालय की स्थापना की है, जहां आइरिश विद्रोह के नेताओं को कैद में रखा गया था…

डगशाई जेल

165 वर्ष पुरानी छावनी की शिल्पकला और ऐतिहासिक विरासत को पुनर्जीवित करने के दृष्टिगत, सेना ने जेल की ऐतिहासकि संगतता को दर्शाने के लिए एक संग्रहालय की स्थापना की है, जहां आइरिश विद्रोह के नेताओं को कैद में रखा गया था। यह संग्रहालय 31 अक्तूबर, 2011 ई. को 9 इन्फेंटरी डिवीजन के जनरल आफिसर कमांडिंग मेजर जनरल एस.के. गैडोक द्वारा ब्रिगेडियर पी.एन. अनंतनारायणन, कमांडर 95 इन्फेंटरी ब्रिगेड, असैनिक प्रतिष्ठित जन, स्कूलों के बच्चों और स्थानीय निवासियों की उपस्थिति में लोगों को समर्पित किया। 1849 ई. में 72, 873 रुपए, जो उन दिनों एक बहुत बड़ी राशि समझी जाती थी, से निर्मित इस जेल में 54 कैदी कोठरियां हैं। इनमें वे एकांत कोठरियां भी शामिल हैं, जो प्रकाश की किरण से भी विहीन थीं और जहां कैदी मुशिकल से खड़ा भी नहीं हो सकता था, ताकि उसे तंग करने के लिए उसको हर आराम से वंचित किया जाए।

डाडासीबा

यह जिला कांगड़ा में स्थित है। यह पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की निवास स्थली थी। सीबा आब पौंग डैम में जलमग्न हो गया है। प्राचीन काल में डाडा को गंधपुर का घटा नाम से जाना जाता था। अब गंधपुर डाडासीबा से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। डाडा गांव की स्थापना डाडू राणा द्वारा की गई बताई जाती है और बडवोर गांव बदन सिंह राणा द्वारा( दोनों भाई बलोचिस्तान से आए थे)। उन्होंने टांकरी और लहड़े नामक लिपियों  का परिचय भी कराया। ये लिपियां बलोचिस्तान के ‘टाक और लैंडीकटोल’ प्रदेशों से संबंध रखती हैं। ये प्रवासी बलोचिस्तान से सिब्बी गांव आए और इन्हें सिवैये और बाद में सिपहिए कहा गया।

चूड़धार

चूड़धार शिखर सिरमौर जिला में स्थित है और खेतों के संपूर्ण परिदृश्य, जंगलों और कंदराओं पर प्रभुत्व जमाए हुए है। शिखर दक्षिण की ओर गंगा के मैदानों और सतलुज नदी के मनोहारी दृश्य को दर्शाता है। उत्तर की ओर हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थान बद्रीनाथ है। चकरौता और शिमला की पहाडि़यां भी दिखाई देती हैं। \

चांगो

यह किन्नौर  जिला में स्पीति नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह बासपा घाटी में सबसे अंतिम और ऊंचा गांव है। यह बासपा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है। वहां स्थानीय देवी मठी के तीन मंदिर है, उनमें से मुख्य 500 वर्ष पूर्व निर्माण हुआ बताया जाता है।


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