मंदिर में पीर की मूर्तियां नहीं, कब्र होती है

By: Jan 10th, 2018 12:05 am

जख या पीर की मूर्तियां न होकर मंदिर के अंदर उनकी कब्र बनी होती है। यह पशुओं की बीमारियों से विशेष रूप से रक्षा करते हैं। भैंस या गाय सूने पर जो सबसे पहले घी निकलता है, उसे मंदिरों में चढ़ाया जाता है। प्रमुख पीर बिलासपुर में पीरभ्याणू, ऊना में पीरगाह व पीरसलूही आदि हैं…

हिमाचल में धर्म और पूजा पद्धति

लोक गाथा प्रचलित है कि एक साधु मलाणा के जामलू देवता के कोष से पैसे ले गया और दिल्ली चला गया। अकबर बादशाह के कर्मचारियों ने दो पैसे चुंगी के रूप में साधु से जबरदस्ती ले लिए। जब ये पैसे अकबर के खजाने पहुंचे तो उसे कुष्ठ रोग हो गया। ज्योतिषियों ने कुष्ठ रोग का कारण वे दो पैसे बताए, जो खजाने में इकट्ठे हुए मिल गए। अकबर को सलाह दी गई कि वह सोने-चांदी सहित उन दो पैसों को जामलू के खजाने में मलाणा भिजवाए। अकबर ने आदमी भेजकर ऐसा ही किया और ठीक हो गया। इस घटना की समृति में हर वर्ष फाल्गुन मास में वहां मेला लगता है। डूम देवता की पूजा (शिमला क्षेत्र) ः डूम (नगर कोटियां) भी हिमाचल के मध्य भाग का एक प्रसिद्ध देवता है, जिसका मुख्य मंदिर फागु (ठियोग तहसील) के करयाणा गांव में है। किसी समय यह देवता कुठाड़, महलोग, बुशहर, कोटखाई, जुब्बल, बाधल, कोटी व अन्य रियासतों में यात्रा करता था और 11वीं शताब्दी में इस देवता ने पंवार राजपूतों के समय दिल्ली की यात्रा भी की थी। इस डूम देवता के बारे लोक गाथा प्रचलित है कि खलनिध नामक कुनैत के हाटकोटी की कृपा से असीम शक्ति से भरपूर दो पुत्र उत्पन्न हुए। उनकी मृत्यु के बाद उनके ‘पाप’ या ‘खोट’ ने लोगों को तंग कर दिया। अतः लोगों ने उनकी डूम देवता के नाम से पूजा आरंभ कर दी। उसका तंग करने का तरीका था लोगों की भैंसों और गउओं के घी या दूध को सुखा देना। अतः गाय या भैंस के सूने (बच्चा देने) पर दूध और घी पहले इस देवता को चढ़ाना पड़ता है।

जख या पीर

निम्न शिवालिक भागों में भी इस प्रकार के देवता हैं और उनके मंदिर बने हैं, जिन्हें जख या पीर कहा जाता है। जख या पीर की मूर्तियां न होकर मंदिर के अंदर उनकी कब्र बनी होती है। यह पशुओं की बीमारियों से विशेष रूप से रक्षा करते हैं। भैंस या गाय सूने पर जो सबसे पहले घी निकलता है, उसे मंदिरों में चढ़ाया जाता है। प्रमुख पीर बिलासपुर में पीरभ्याणू, ऊना में पीरगाह व पीरसलूही आदि हैं।

मड़ेच्छ देवता की पूजा (कुमारसैन क्षेत्र में

इस देवता का मुख्य मंदिर जिसे डिठु या डिठा के नाम से पुकारा जाता है, कुमारसैन के समीप ढोलेश्वर में स्थित है। लोक गाथा के अनुसार यह देवता आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व मानसरोवर में आया माना जाता है। कहते हैं कि पुराने जमाने में कुमारसैन के इलाके में भयुम्बरा नाम का राक्षस रहता था।

एक बार भयुम्बरा कहीं जा रहा था। रास्ते में मड़ेच्छ देवता उसे मिल गया और देवता ने भयुम्बरा का रास्ता नहीं छोड़ा। फिर दोनों में युद्ध हुआ। नारेंडा के समीप एक खड्ड में मड़ेच्छ ने भयुंबरा को गुफा में घुसने और मानव बलि पर जीवित रहने पर मजबूर कर दिया। कोटेश्वर और मड़ेच्छ या डिठू की आपस में मित्रता हो गई, लेकिन बाद में मड़ेच्छ भी आदमी का मांस खाने लग गया। इस पर कोटेश्वर ने उसे कैद कर लिया और मानव मांस न खाने की शपथ लेने पर ही मुक्त किया।                         — क्रमशः


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