मोदी, तोगडि़या और तख्त

By: Jan 18th, 2018 12:10 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

सन् 2008 में मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो राज्य में अवैध मंदिरों को गिराया गया था, जिससे नाराज होकर तोगडि़या ने मोदी के विरुद्ध बोलना शुरू किया। वह दरार समय के साथ-साथ बढ़ती चली गई और आज स्थिति यह है कि दोनों आमने-सामने हैं। तोगडि़या यह कह चुके हैं कि उन्हें मारने की कोशिश की गई थी। सवाल यह है कि तोगडि़या को जेड सिक्योरिटी मिली हुई है, फिर कैसे वह एक आटो-रिक्शा में किसी के साथ चले गए…

हमेशा से कहा जाता रहा है कि ‘जर, जोरू और जमीन’ के कारण पक्के दोस्तों में ही नहीं, भाइयों में भी दुश्मनी हो जाती है। धीरूभाई अंबानी के देहावसान के बाद अंबानी भाइयों में छिड़ा युद्ध इस सत्य की मिसाल है। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। हालांकि इतिहास इस बात का भी गवाह है कि ‘जर, जोरू और जमीन’ के साथ इसमें ‘तख्त’ भी जोड़कर इसे ‘जर, जोरू, जमीन और तख्त’ किया जाना चाहिए। ‘जर’ यानी धन, ‘जोरू’ यानी स्त्री, ‘जमीन’ यानी चल-अचल संपत्ति, और ‘तख्त’ यानी सत्ता। इतिहास उन उदाहरणों से भी भरा हुआ है जहां तख्त के लिए पुत्र ने पिता को कारागार में डाल दिया, भाई ने भाई को मार डाला। राजा की वफादार सेना अलग होती थी और युवराज की वफादार सेना अलग या अलग-अलग राजकुमारों की सेना अलग-अलग रही है और उनमें युद्ध हुए हैं।

प्रवीण तोगडि़या से जुड़ा ताजा मामला ‘तख्त’ का है, जिसने तोगडि़या को इस हाल तक पहुंचा दिया कि जेड श्रेणी की सुरक्षा के बावजूद वह गायब हो गए और बाद में बेहोशी की हालत में पाए गए। कैंसर डाक्टर से फायर ब्रांड हिंदू नेता के रूप में उभरे डा. प्रवीण तोगडि़या को अब भाजपा में कोई पूछता नहीं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें पसंद नहीं करते और मोदी का प्रभामंडल ऐसा है कि कोई उनके सामने सिर उठाकर बोल नहीं सकता। मोदी की दूसरी आदत है कि वह अपने सामने सिर उठाकर बोलने वाले को बर्दाश्त नहीं करते और सिर्फ नापसंदगी तक सीमित नहीं रहते। किसी जमाने में उनके सबसे बड़े शुभचिंतक रहे लालकृष्ण आडवाणी का हाल हम सबके सामने है।

एक जमाने में प्रवीण तोगडि़या और नरेंद्र मोदी अच्छे मित्र रहे हैं और उन्होंने गुजरात में भाजपा को सत्ता में लाने के काम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। समय का फेर है कि महत्त्वाकांक्षाओं के चलते दोनों एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हो गए और इसी कारण डा. तोगडि़या हमारे प्रधानमंत्री के मुखर आलोचक बन गए। डाक्टरी की पढ़ाई के लिए सन् 1978 में प्रवीण तोगडि़या अहमदाबाद आए थे और गुजरात के होकर रह गए। वह एक नामचीन कैंसर डाक्टर रहे हैं और हिंदुत्व के अपने प्रेम के कारण वह संघ से जुड़े हुए थे और 1985 में वह बाकायदा विश्व हिंदू परिषद में चले गए और अपनी लगन और मेहनत के कारण उन्होंने न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि विश्व हिंदू परिषद में उनका प्रभाव भी बढ़ता चला गया।

हिंदू प्रेम के कारण ही नरेंद्र मोदी भी संघ से जुड़े और 1987 में वह संघ से भाजपा में भिजवा दिए गए। मोदी भी शुरू से ही बहुत अनुशासित, मेहनती और महत्त्वाकांक्षी रहे हैं। विचारधारा की समानता के कारण मोदी और तोगडि़या की आपस में खूब जमती थी और दोनों मिलकर काम करते थे। मार्च 1990 में चिमन भाई पटेल के मुख्यमंत्री बनने और फिर मार्च, 1995 में केशुभाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व में भाजपा को सत्ता में लाने में इन दोनों मित्रों की अहम भूमिका रही। उसी का परिणाम था कि केशुभाई पटेल लगभग हर छोटे-बड़े फैसले में दोनों की सलाह लेते थे और यह बात सरकारी अधिकारियों से भी छिपी नहीं थी। उसी दौरान प्रवीण तोगडि़या का कद ऐसा बढ़ा कि उन्हें जेड सेक्योरिटी दे दी गई। अक्तूबर 2001 में गुजरात के बिगड़ते हालात को संभालने के लिए केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। फरवरी, 2002 के गुजरात दंगों के बावजूद उसी साल दिसंबर में गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव हुए और नरेंद्र मोदी शान के साथ सत्ता में वापस आए। इस चुनाव में प्रवीण तोगडि़या ने भाजपा के पक्ष में सौ से भी अधिक जनसभाएं कीं।

इसके बाद ही दोनों में दरार की शुरुआत हुई और कारण वही था ‘तख्त’! प्रवीण तोगडि़या विश्व हिंदू परिषद में पहले से ही स्थापित थे, जबकि मोदी दिसंबर 2002 में सत्ता में वापसी के बाद से ज्यादा उभरे। अब हम जानते हैं कि मोदी अपने किसी प्रतिद्वंद्वी या विरोधी को बर्दाश्त नहीं करते। वह विपक्षियों को हराने में नहीं, बल्कि कुचलने में विश्वास रखते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भी उनके मंत्रियों को उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। उनके एक वरिष्ठ मंत्री ही तोगडि़या भी महत्त्वाकांक्षी थे और मोदी भी, सो दोनों में दरार पड़ना स्वाभाविक था। मोदी ने तोगडि़या के पर कतरने शुरू किए और अंततः तोगडि़या को यह कहना पड़ा कि नरेंद्र मोदी की भाजपा सरकार में उनकी कोई पूछ नहीं है। इसके बाद नरेंद्र मोदी जब तक गुजरात में मुख्यमंत्री रहे, उन्होंने तोगडि़या को अपने नजदीक नहीं फटकने दिया। इस तरह दो मित्र, दो दुश्मन बन गए। यह संयोग की बात है कि मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में अमरीकी कंसल्टेंसी एप्को वर्ल्डवाइड की सेवाएं लीं और वाइब्रेंट गुजरात नामक आयोजन के माध्यम से विदेशी निवेश बढ़ाने का प्रयत्न किया। इस आयोजन में प्रवासी गुजरातियों और उनके संपर्क वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने शिरकत की। मोदी ने योजनाबद्ध ढंग से कई अन्य विकास कार्यक्रम भी चलाए। धीरे-धीरे देश भर में गुजरात के विकास के मॉडल की चर्चा होने लगी। इस बीच एप्को वर्ल्डवाइड उनकी नई छवि गढ़ने में लगी रही।

सन् 2009 का लोकसभा चुनाव एक तरफ सोनिया गांधी, डा. मनमोहन सिंह और राहुल गांधी के नेतृत्व में और दूसरी तरफ लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में लड़ा गया। उसमें कांग्रेस की जीत हुई, लेकिन यूपीए-2 के शासनकाल के घोटालों से देश त्रस्त था। मोदी एक कर्मठ, ऊर्जावान और दूरदृष्टि वाले नेता के रूप में तेजी से उभर रहे थे। अब तक भाजपा कार्यक र्ताओं में यह भाव घर कर गया था कि कांग्रेस को अगर हराना है, तो उसके लिए लालकृष्ण आडवाणी के बजाय नरेंद्र मोदी ज्यादा उपयुक्त व्यक्ति हैं और अंततः सारी अड़चनों को हटाकर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। यह इतिहास है कि मोदी ने पहली बार भाजपा को केंद्र में बहुमत दिलाया और अपने दम पर सरकार बनाने के काबिल बनाया। केंद्र में हालांकि एक गठबंधन सरकार है, लेकिन तूती सिर्फ मोदी की बोलती है।

सन् 2008 में मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो राज्य में अवैध मंदिरों को गिराया गया था, जिससे नाराज होकर तोगडि़या ने मोदी के विरुद्ध बोलना शुरू किया। वह दरार समय के साथ-साथ बढ़ती चली गई और आज स्थिति यह है कि दोनों आमने-सामने हैं। तोगडि़या यह कह चुके हैं कि उन्हें मारने की कोशिश की गई थी।

सवाल यह है कि तोगडि़या को जेड सिक्योरिटी मिली हुई है, फिर कैसे वह एक आटो-रिक्शा में किसी के साथ चले गए? यदि वह गए तो उसी वक्त हड़कंप क्यों नहीं मचा? जब उनके ‘गुम’ होने की आशंका हुई तो सरकारी मशीनरी सुस्त कैसे रह गई? क्या सरकारी मशीनरी का सुस्त रहना किसी और गहरी बात की ओर का संकेत है? क्या उनका हश्र भी हीरेन पंड्या सा हो सकता है? मैं कुछ भी सोचने में असमर्थ हूं और बहुत अच्छा हो कि मेरी सारी आशंकाएं गलत साबित हों।

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