हिमाचली सियासत में नाटकीय बदलाव
प्रो. एनके सिंह
लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं
हिमाचली राजनीति में बड़ा बदलाव आया है, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। ऐसा बदलाव प्रदेश के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। भाजपा चुनाव जीत गई, लेकिन उसके लिए स्थिति बिना दूल्हे वाली बारात जैसी बन गई। इस स्थिति में जयराम को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया, जबकि उन्हें इस तरह की कोई आशा ही नहीं थी। दूसरी ओर कांग्रेस में भी बदलाव की आहट महसूस की जा रही है। यहां वीरभद्र सिंह की जगह मुकेश अग्निहोत्री को विपक्ष की कमान सौंपी है…
मैं वर्षों से चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करता रहा हूं और कमोबेश ये पूर्वानुमान सही साबित हुए हैं। मेरी भविष्यवाणियां एग्जिट पोल से पूर्व होती रही हैं, लेकिन व्यक्तिगत सफलता दर के बारे में सही-सही पूर्वानुमान लगाना सचमुच ही चुनौतीपूर्ण रहा है। इस बार हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में मैंने कांगे्रस को 23 व भाजपा को 39 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। वास्तविक परिणाम लगभग इसी के अनुरूप हैं। कांग्रेस को 21, जबकि भाजपा को 44 सीटें मिली हैं। यह सत्य है कि कोई भी बड़े-बड़े नेताओं की हार और अब देखे जा रहे नए नेतृत्व के उभरने का अनुमान नहीं लगा पाया। हाल में हिमाचल की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है और इसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। यह इतना बड़ा बदलाव है कि ऐसा प्रदेश के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ।
किसी ने यह अंदाजा नहीं लगाया था कि भाजपा जीत जाएगी और प्रेम कुमार धूमल हार जाएंगे। अति आत्मविश्वास से चूर भाजपा ने उन्हें उनके परंपरागत गढ़ से सुजानपुर शिफ्ट कर दिया। किसी ने यह अनुमान भी नहीं लगाया था कि जिस पार्टी का नेतृत्व वीरभद्र सिंह कर रहे हैं, वह चुनाव हार जाएगी और प्रदेश में कोई नया मुख्यमंत्री बनेगा। प्रेम कुमार धूमल को भाजपा ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। वह अपने शिष्य राजेंद्र राणा के ही हाथों सुजानपुर में चुनाव हार गए, हालांकि धूमल ने पार्टी को विधानसभा में एक सम्मानजनक स्थान तक पहुंच दिया। भाजपा चुनाव जीत गई, लेकिन उसके लिए स्थिति बिना दूल्हे वाली बारात जैसी बन गई। बारात पहुंच गई, लेकिन दूल्हा साथ नहीं था। किसी ने भी इस स्थिति की कल्पना नहीं की थी। भाजपा इतनी आश्वस्त थी कि उसने प्रेम कुमार धूमल को चुनाव के अंतिम चरण में हमीरपुर के बजाय सुजानपुर से चुनाव लड़वाने का फैसला किया। वह धूमल की जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी। हालांकि उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने अपने कठिन परिश्रम से पार्टी को शानदार जीत दिलवा दी।
चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा ने तेज गति से फैसले किए और व्यापक विचार-विमर्श के बाद जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। इस फैसले को लेकर भी हैरानी होती है। जयराम को उस वक्त मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया, जबकि उन्हें इस तरह की कोई आशा ही नहीं थी। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने में कामयाब होंगे। उनके चयन के बाद कई लोगों ने सवाल किया कि जयराम कौन हैं? हालांकि यह बात सत्य है कि जयराम की पृष्ठभूमि मजबूत रही है। वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की राजनीति से ऊपर उठते हुए पहले मंत्री बने और अब मुख्यमंत्री बने हैं। इसके अलावा वह प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह अपने विधानसभा क्षेत्र सराज से लगातार पांच बार चुनाव जीत चुके हैं। उनकी छवि भी बेदाग है और भ्रष्टाचार का भी कोई आरोप उन पर नहीं है। वह एक गरीब परिवार से उभर कर आए हैं और पार्टी की सेवा उन्होंने पूरे समर्पण व निष्ठा से की है। यह भी अद्भुत है कि इस स्वर्णिम अवसर को पार्टी ने अपने दीर्घावधि दृष्टिकोण में बदल दिया है। वह इस समय 54 वर्ष के हैं और लंबे समय तक पार्टी की सेवा कर सकते हैं तथा प्रदेश को नेतृत्व दे सकते हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस में भी बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। किसी को भी इस बात का आभास नहीं था कि वीरभद्र सिंह के समर्थन में कई विधायक (13) होने के बावजूद किसी और को विपक्ष के नेता की कमान सौंपी जा सकती है। यहां यह जानना जरूरी है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू के पक्ष में केवल तीन विधायक हैं। अब पार्टी में यह महसूस किया जा रहा है कि वीरभद्र सिंह की जगह मुकेश अग्निहोत्री को विपक्ष की कमान सौंपी जा सकती है। वह अन्य नेताओं की तुलना में युवा हैं। उपलब्धियों के मामले में वह सक्षम व गतिशील भी हैं। उनके युवा होने के कारण ही रामलाल ठाकुर व आशा कुमारी की संभावनाएं खत्म हो गईं। अगर कौल सिंह व जीएस बाली चुनाव न हारे होते, तो मुकेश अग्निहोत्री इस पद के दावेदार न होते। इसी तरह अगर भाजपा की बात करें, तो अगर महेश्वर सिंह, गुलाब सिंह व सतपाल सिंह सत्ती चुनाव न हारे होते, तो आज जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री के रूप में न उभरे होते। बहरहाल, अब कांग्रेस की ओर से मुकेश अग्निहोत्री भविष्य के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। उनके पक्ष में एक यह बात भी जाती है कि राजपूत बहुल प्रदेश में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में वह खुद एक राजपूत परिवार से संबंध रखते हैं। कांग्रेस के अब तक के इतिहास में पार्टी की ओर से गैर-राजपूत मुख्यमंत्री कभी नहीं रहा। इस पहलू को भाजपा ने मुख्यमंत्री का चयन करते समय याद रखा। तभी तो गैर-राजपूत जगत प्रकाश नड्डा की जगह राजपूत उम्मीदवार जयराम ठाकुर को आगे करके उन्हें कमान सौंपी गई। हम इस कारक को यह कहकर भुला सकते हैं कि जातिवाद अच्छा नहीं होता, लेकिन वास्तविकता यह है कि जिस प्रदेश में राजपूत समुदाय से अधिकतर विधायक चुन कर आ रहे हों, वहां इस जातीय समीकरण की उपेक्षा करना आसान नहीं होगा। इस ऐतिहासिक सीमा को मुकेश अग्निहोत्री को ध्यान में रखना होगा। चुनाव में जो कुछ हुआ, उसने यह भी जता दिया है कि दोनों दलों को अब युवा नेतृत्व को समय रहते विकसित कर लेना चाहिए।
भाजपा में अगर प्रतिस्थापित व वरिष्ठ नेता चुनाव न हारे होते, तो नेतृत्व के रूप में उसके पास कई विकल्प होते। नेतृत्व की खोज में जयराम के रूप में जो चेहरा सामने आया है, उसे पार्टी के लिए एक तोहफे के रूप में देखना होगा। प्रबंधन की शब्दावली में कहें तो इस स्थिति को ‘अनकवरिंग’ कहते हैं। जिस तरह अकसर पृथ्वी की सतह से पत्थर हटा कर उसके नीचे उगते फूल को देखा जाता है, उसी तरह नए नेतृत्व की खोज के लिए कई बार वैचारिक आंदोलन होते हैं। इसके उलट हिमाचल में दोनों दलों में भाग्य के कारण नए नेतृत्व उभर कर सामने आए हैं। भाग्य ने जयराम ठाकुर व मुकेश अग्निहोत्री को विजेता बना दिया है। अब नजरें इस बात पर लगी रहेंगी कि दोनों दलों के ये प्रमुख किस तरह हिमाचल के विकास की कहानी लिखते हैं।
ई-मेल : singhnk7@gmail.com
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