क्या है रास
ओशो
रास को समझने के लिए पहली जरूरत यह समझना है कि सारा जीवन ही रास है। जैसा मैंने कहा, सारा जीवन विरोधी शक्तियों का सम्मिलन है। चारों तरफ आंखें उठाएं तो रास के अतिरिक्त और क्या हो रहा है। आकाश में दौड़ते बादल हों, सागर की तरफ दौड़ती सरिताएं हों, बीज फूलों की यात्रा कर रहे हों या भंवरे गीत गाते हों या पक्षी चहचहाते हों या मनुष्य प्रेम करता हो या ऋण और धन विद्युत आपस में आकर्षित होते हों या स्त्री और पुरुष की निरंतर लीला और प्रेम की कथा चलती हो, इस पूरे फैले हुए विराट को हम देखें तो रास के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो रहा। रास बहुत कॉस्मिक अर्थ रखता है। इसके बड़े विराट जागतिक अर्थ हैं। पहला तो यही कि इस जगत के विनियोग में, निर्माण में, सृजन में जो मूल आधार है, वह विरोधी शक्तियों के मिलन का आधार है। एक मकान हम बनाते हैं, एक द्वार हम बनाते हैं, तो द्वार में उल्टी ईंटें लगा कर आर्च बन जाता है। एक दूसरे के खिलाफ लगीं ईंटें पूरे भवन को संभाल लेती हैं। हम चाहें तो एक सी ईंटें लगा सकते हैं। तब द्वार नहीं बनेगा और भवन नहीं उठेगा। शक्ति दो हिस्सों में विभाजित हो जाती है, तो खेल शुरू हो जाता है। शक्ति का दो हिस्सों में विभाजित हो जाना ही जीवन की समस्त परतें, समस्त पहलुओं पर खेल की शुरुआत है। शक्ति एक हो जाती है, खेल बंद हो जाता है। जीवन दो विरोधियों के बीच खेल है। ये विरोधी लड़ भी सकते हैं, तब युद्ध हो जाता है। मिल भी सकते हैं, तब प्रेम हो जाता है, लेकिन लड़ना हो कि मिलना हो, दो की अनिवार्यता है। सृजन दो के बिना मुश्किल है। कृष्ण के रास का क्या अर्थ होगा इस संदर्भ में, इतना ही काफी नहीं है कि हम कृष्ण को गोपियों के साथ नाचते हुए देखते हैं। कृष्ण का गोपियों के साथ नाचना उस विराट रास का छोटा सा नाटक है, उस विराट का एक आणविक प्रतिबिंब है। वह जो समस्त में चल रहा है नृत्य, उसकी छोटी सी झलक है। इसके कारण ही संभव हो पाया कि उस रास का कोई कामुक अर्थ नहीं रह गया। उस रास का कोई सेक्सुअल मीनिंग नहीं है। ऐसा नहीं है कि सेक्सुअल मीनिंग के लिए, कामुक अर्थ के लिए कोई निषेध है, लेकिन बहुत पीछे छूट गई वह बात। कृष्ण, कृष्ण की तरह वहां नहीं नाचते हैं, कृष्ण वहां पुरुष तत्त्व की तरह ही नाचते हैं। गोपिकाएं स्त्रियों की तरह वहां नहीं नाचती हैं, गहरे में वे प्रकृति ही हो जाती हैं। प्रकृति और पुरुष का नृत्य है वह। रास को समझने के लिए पहले अपने हृदय में झांक कर देखना होगा, कृष्ण को समझना तो बहुत दूर की बात है। कृष्ण और गोपियों के रास को सही मायनों में वही समझ सकता है, जिसने अपने को मिटा दिया और उस ईश्वर से नाता जोड़ लिया। जीवन तो रास ही है। भगवान कृष्ण का गोपियों संग रास रचाने की कथा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। कृष्ण का हर स्वरूप, उनका हर रूप, गोपियों को इतना प्रिय था कि वे कृष्ण से दूर रह ही नहीं सकती थीं। कृष्ण रास में गोपियों की कृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा की भावना रूपी झलक देखने को मिलती है। रास के लिए दो का होना जरूरी है।
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