नेपाल के चुनावों में साम्यवादी सक्रियता

By: Feb 24th, 2018 12:07 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

नेपाल का आम आदमी भारत के साथ स्वयं को ज्यादा सहज अनुभव करता है, जबकि साम्यवादी नेतृत्व उसे चीन की गोद में ले जाना चाहता है। नेपाल के मामले में भारत सरकार को वहां की सरकार और आमजन से स्वतंत्र रूप से संवाद सूत्र स्थापित करने चाहिएं। इसके साथ ही वहां की वामपंथी सरकारों से भी संवाद बनाए रखना चाहिए, क्योंकि नेपाल तीन ओर से भारत की सीमा से लगता है और वहां सरकार कोई भी हो, वह अपने हित में ही भारत से संबंध बिगाड़ना नहीं चाहेगी…

नेपाल के वर्तमान संविधान के अनुसार देश के दो सदन हैं, प्रतिनिधि सभा और राष्ट्रीय सभा। इन दोनों सदनों के लिए चुनाव हो चुके हैं। यह चुनाव खड्ग प्रसाद शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी केंद्र) ने आपसी समझौते से लड़ा। यह गठबंधन 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा की 174 सीटों पर पहले ही कब्जा कर चुका है। राष्ट्रीय सभा के 59 सदस्य हैं, जिनमें से 56 सदस्य संयुक्त निर्वाचन मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं।

इस निर्वाचन मंडल, देश की सात प्रादेशिक सभाओं के चुने हुए सदस्य, जिनकी संख्या 550 है, 753 स्थानीय निकाओं के चुने हुए मेयर और उप मेयर जिनकी संख्या 1506 है, को मिलाकर बनता है। प्रादेशिक सभाओं के चुने गए सदस्यों की एक वोट की कीमत 48 होगी और स्थानीय निकायों के चुने गए मेयर और उप मेयर की एक वोट की कीमत 18 होगी। (प्रत्येक प्रादेशिक सभा से आठ सदस्य चुने जाते हैं  लेकिन उनमें से तीन महिलाएं, एक दलित और एक दिव्यांग होना लाजिमी है) और शेष तीन, सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं, लेकिन उनमें से भी एक महिला का होना जरूरी है) राष्ट्रीय सभा के लिए सात फरवरी को हुए चुनाव में सीपीएन (यूएमएल)  को 27 सीटें मिलीं, पुष्प कमल दहल प्रचंड की  सीपीएन (एमसी) को 12 सीटें मिलीं। नेपाली कांग्रेस के हिस्से 13 सीटें आईं। दो मधेसी दलों-राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल और फेडरल सोशलिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल ने दो-दो सीटें जीतीं। इस प्रकार दोनों कम्युनिस्ट दलों ने राष्ट्रीय सभा की 56 सीटों में से 39 पर कब्जा कर लिया। प्रतिनिधि सभा के साथ-साथ नेपाल की सात प्रदेश सभाओं के लिए भी चुनाव हुए। सभी सात प्रदेश सभाओं में कुल मिलाकर 550 सीटें हैं। प्रदेश सभाओं के लिए भी साठ प्रतिशत सीटें प्रत्यक्ष मताधिकार द्वारा और चालीस प्रतिशत आनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा भरी जाती हैं। इस प्रकार 550 सीटों में से 330 प्रत्यक्ष मताधिकार द्वारा और 220 आनुपातिक प्रणाली द्वारा भरी जाती हैं। नेपाल में कुल सात प्रांत या प्रदेश हैं। अभी इनका नामकरण नहीं हुआ है। इन्हें संख्या के आधार पर ही पुकारा जाता है। इन प्रदेश सभाओं की सीटों की संख्या निम्न है-

प्रदेश 1- 56+37 = 93, प्रदेश 2- 64+43=107,

प्रदेश 3- 66+44=110, प्रदेश 4- 36+21=57,

प्रदेश 5- 52+39=91, प्रदेश 6- 24+15=39,

प्रदेश 7- 32+21=53,

यह संख्या प्रत्यक्ष और आनुपातिक सीटों को जोड़ कर है। इन 550 सीटों में से खड्ग प्रसाद शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने 242, नेपाली कांग्रेस ने 113 और प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी केंद्र) या सीपीएन (एमसी) ने 109 सीटें जीतीं।

कुल मिलाकर नेपाल के राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय चुनावों में सीपीएन (यूएमएल) और सीपीएन (एमसी) के वामपंथी मोर्चा ने स्पष्ट विजय प्राप्त कर ली है। चुनाव परिणामों के बाद  सीपीएन (यूएमएल) और सीपीएन (एमसी) के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई और उसमें उन्हें सफलता भी मिली। एकीकृत पार्टी का नाम कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल होगा। इसी समझौते के तहत खड्ग प्रसाद शर्मा ओली नेपाल के नए प्रधानमंत्री बने। नई पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान पुष्प कमल दहल संभालेंगे। आधा समय बीत जाने पर दोनों पदों की अदला-बदली हो जाएगी। प्रचंड प्रधानमंत्री होंगे और ओली पार्टी अध्यक्ष। दोनों वामपंथी दलों के एकीकरण का यह प्रयोग कितने समय चलेगा, इसका उत्तर तो भविष्य ही देगा, फिलहाल इस वाम मोर्चा के साझे प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली बन ही गए हैं। मधेस क्षेत्र की पार्टियों की भूमिका की यदि बात की जाए, तो मधेस क्षेत्र में नेपाल की जनसंख्या का लगभग पचास प्रतिशत भाग रहता है, लेकिन मधेसियों से अन्याय होता है और शासन में भी उनको जनसंख्या के अनुपात से हिस्सेदारी नहीं दी जाती। बहुत से मधेसियों को तो नागरिकता से भी वंचित रखा गया है। उनकी भाषा को संविधान मान्यता नहीं देता।

मधेस क्षेत्र को आम तौर पर भारत समर्थक माना जाता है। मधेसियों का आरोप है कि 2015 का संविधान उनके हितों और विकास पर कुठाराघात करता है। इसलिए शुरू में उन्होंने 2017-2018 के चुनावों का बहिष्कार करने का ही निर्णय किया था। लेकिन अप्रैल, 2017 को पांच मधेसी पार्टियों, महंत ठाकुर की तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी, राजेंद्र महतो की सद्भावना पार्टी, शरत सिंह भंडारी की राष्ट्रीय मधेस समाजवादी पार्टी, महेंद्र यादव की तराई मधेस सद्भावना पार्टी और रामकिशोर यादव की मधेसी जनाधिकार फोर्म गणतांत्रिक ने मिल कर राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल का गठन कर लिया। इस पार्टी ने चुनावों में हिस्सा लिया। पार्टी को 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में से 17 सीटें मिलीं। राष्ट्रीय सभा में पार्टी केवल दो सीटें हासिल कर सकी। एक अन्य मधेसी पार्टी जो इस नए जमावड़े का हिस्सा नहीं है, ने भी दो सीटें जीतीं। मधेसी पार्टियां 2015 के संविधान को मधेस विरोधी मानती है और उसमें नागरिकता संबंधी उपबंधों में संशोधन चाहती है। वामपंथी मोर्चे द्वारा सरकार बनाने के बाद, उसका इस संबंधी क्या रुख रहेगा, यह तो भविष्य ही बताएगा। भविष्य के ही खाते में एक और प्रश्न छिपा है कि यह मोर्चा टिकेगा भी कितने दिन?

नेपाल में व्याप्त इस अस्थिरता के चलते आम जन का मोहभंग हो रहा है। प्रचंड का ग्राफ जो कभी बहुत ऊंचा था, वह काफी नीचे आ गया है। नेपाल की राजनीति में उसकी पार्टी की हैसियत तीसरे दर्जे पर पहुंच गई है। दरअसल नेपाल का आम आदमी भारत के साथ स्वयं को ज्यादा सहज अनुभव करता है, जबकि साम्यवादी नेतृत्व उसे चीन की गोद में ले जाना चाहता है। नेपाल के मामले में भारत सरकार को वहां की सरकार और आमजन से स्वतंत्र रूप से संवाद सूत्र स्थापित करने चाहिएं। इसके साथ ही वहां की वामपंथी सरकारों से भी संवाद बनाए रखना चाहिए, क्योंकि नेपाल तीन ओर से भारत की सीमा से लगता है और वहां सरकार कोई भी हो, वह अपने हित में ही भारत से संबंध बिगाड़ना नहीं चाहेगी। यही कारण है कि 2017-18 के चुनावों के बाद भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज नेपाल में इन सभी वामपंथी नेताओं यथा, केपीएस ओली और कमल पुष्प दहल से मिलीं और उन्हें भारत की मदद का भरोसा दिलाया।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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