बच्चों के प्रति उत्तरदायी हों अभिभावक

By: Feb 24th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डॉ. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं बच्चों पर उनके विचार:

गतांक से आगे…

एक लड़की में, युवा महिला और एक वृद्ध औरत के रूप में, वैयक्तिकता एक जैसी रहती है, हालांकि महिला के चरण अलग-अलग होते हैं। एक बच्चे को अपूर्ण मत समझो। एक व्यक्ति के रूप में इसे पूर्ण समझो। अगर यह अब भी कई चीजों को समझता नहीं है, तो इससे फर्क नहीं पड़ता है। वह प्रभाव को लेता रहेगा और बाद में उनको समझना शुरू करेगा। बच्चे की जानने की क्षमता को खत्म मत करें तथा इसे सहज ज्ञान के रूप में उभरने दें। बच्चे को अपनी समस्या स्वयं सुलझाने दें तथा इसे गलतियां भी करने दें। जब एक बच्चा आपसे पूछता है, केवल तभी औचित्य बनता है कि आप उसका मार्गदर्शन करें। अन्यथा बच्चा प्रतिक्रिया करेगा क्योंकि आप उसका निजत्व आहत कर रहे होते हैं। प्रतिक्रिया के रूप में वह उसके उलट करेगा जो किया जाना चाहिए। बच्चे को अनुभव के जरिए सीखने दें। सतर्कता के साथ देख-रेख जरूरी है। बच्चे को यह आश्वस्त करें कि आपकी गोद हमेशा उसके लिए खुली है तथा इसे असत्य के सामने कभी झुकना नहीं चाहिए। अच्छे अभिभावक बनकर बच्चों को आदर्श वातावरण उपलब्ध कराएं। यह बच्चे पर पहला प्रभाव डालता है। बच्चे को जन्म मात्र दे देना कुछ भी नहीं है। अभिभावकों का कर्त्तव्य बच्चों को एक संपूर्ण आदमी के रूप में विकसित करना है। जन्म देना मात्र कोई बड़ा आदर्श नहीं है, बल्कि बच्चे को वास्तव में एक मनुष्य बनाना माता-पिता की जिम्मेवारी होती है। यह एक बड़ी जिम्मेवारी होती है तथा अभिभावकों को स्वयं मिसाल स्थापित कर बच्चों का मार्गदर्शन करना चाहिए। फोन की घंटी बजती है और आप कहते हैं, ‘बताओ, मैं घर में नहीं हूं।’ आपके ऐसा करने से बच्चा भी ऐसा ही सीखेगा, वह झूठ बोलेगा। आपने उसे खुद झूठ बोलना सिखाया और आप फिर पूछते हैं, ‘इसे झूठ बोलना किसने सिखाया।’ महात्मा गांधी ने एक मिसाल पेश की और लोगों ने उनका अनुसरण किया। गुरु गोबिंद सिंह अपनी मिसाल पेश करके युग पुरुष बने तथा इसी कारण जब उन्होंने एक सिर मांगा तो पांच लोग तैयार खड़े हो गए। हमारे पास सब कुछ है। गुरु गं्रथ साहिब, वेद, उपनिषद, कुरान, बाइबल, सब है, किंतु इसके बावजूद वास्तविक मनुष्य कम हैं। यहां कई तरह के वाद हैं, लेकिन वास्तविक मनुष्य को ढूंढना मुश्किल है। भारत में महिला गर्भवती होने पर पवित्र पुस्तकें पढ़ना और प्रार्थना करना शुरू कर देती है। अब आधुनिक विश्व में माता अपने पति के साथ सो जाती है तथा बच्चे को एक अलग कमरे में सुला दिया जाता है। माता अपने बच्चे को प्यार का दूध देने के बजाय अपने जुनून का दूध पिलाती है। उसका अपना दिमाग अवचेतन रूप से बच्चे को प्रभावित करता है। अभिभावकों के दिमाग, उनकी भावनाएं, संतोष व निराशाएं आदि बच्चे को प्रभावित करते हैं। अभिभावकों को अपने बच्चों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। सरदार सोभा सिंह का विचार है कि बच्चों में जानने की जिज्ञासा ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए। उसकी इस जिज्ञासा को शांत किया जाना चाहिए। तभी वह ज्यादा से ज्यादा जान पाएगा। अपने आस-पास को जानकर ही वह पूर्णता की ओर बढ़ सकता है। अभिभावकों का कर्त्तव्य है कि वे अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी उपलब्ध कराएं। बच्चे के हर प्रश्न को अभिभावकों को सुलझाना चाहिए। तभी उसकी जिज्ञासा शांत होगी। एक संपूर्ण मनुष्य बनने के लिए यह परम आवश्यक है। वास्तव में आज का विश्व इतना विस्तृत व पेचीदा हो गया है कि उसे जानना बहुत जरूरी है। उसे जाने बिना कोई इनसान अपनी तरक्की की कामना भी नहीं कर सकता है। जो व्यक्ति विश्व को जितना जानता है, वह जीवन में उतना ही सफल हो सकता है। जानने की प्रक्रिया बचपन में शुरू हो जानी चाहिए, यही इस प्रक्रिया को शुरू करने की सबसे अनुकूल उम्र है।


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