संसदीय प्रणाली प्रश्न पूछना विधानमंडल का मौलिक अधिकार

By: Feb 28th, 2018 12:05 am

गतांक से आगे…

1892 का इंडियन कौंसिल्ज अधिनियम:

गवर्नर-जनरल की विधान परिषद अथवा भारतीय विधान परिषद में इस प्रकार  पांच और अतिरिक्त सदस्य शामिल किए गए, जिनमें से चार को प्रांतीय परिषदों के गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा और  एक को कलकत्ता वाणिज्य मंडल द्वारा मनोनीत किया गया। यद्यपि चुनाव शब्द का जानबूझकर प्रयोग  नहीं किया गया, परंतु इस तथ्य से प्रांतीय  परिषद के गैर सरकारी सदस्यों ने सिफारिश की और केंद्रीय  परिषद में अपने मनोनीत सदस्य को भेजा, जिससे चुनाव के सिद्धांत को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकारने का संकेत मिलता है।विधान परिषद के सदस्यों को भी प्रश्न पूछने अर्थात महत्त्वपूर्ण विषयों पर जानकारी प्राप्त करने की दृष्टि से सरकारी सदस्यों से पूछताछ करने का अधिकार दिया गया। इस अधिकार का, जो किसी भी विधानमंडल का एक मौलिक अधिकार होता है, प्रयोग उस समय कभी -कभार ही किया गया, परंतु यह अधिकार प्राप्त हो जाना संसदीय संस्था के विकास में एक निश्चयात्मक कदम था। यह एक दिलचस्प बात है कि प्रारंभिक अवस्थाओं में इस अधिकार का प्रयोग सरकारी सदस्यों द्वारा भी किया गया। यह विचित्र लगता होगा कि किस तरह एक सरकारी दूसरे सरकारी सदस्य  से प्रश्न कर रहा है और जानकारी प्राप्त कर रहा है। 1892 के अधिनियम के परिणामस्वरूप विधान परिषदों में प्रतिनिधिक तत्त्व आया और परिषदों के कार्यकरण पर लगे प्रतिबंधों में कुछ ढील दी गई। इस दृष्टि से 1892 के अधिनियम ने 1861 के अधिनियम में निश्चय ही सुधार किया। जनमत को और अधिक अभिव्यक्त किया जाने लगा और चर्चाओं में विचार-विमर्श तथा आलोचनात्मक पहलुओं में परिवर्तन आया।

1909 का इंडियन कौंसिल्ज अधिनियमः

देश के कार्यों में और अधिक एवं प्रभावी प्रतिनिधित्व के लिए कांग्रेस द्वारा जो सतत अभियान चलाया गया, उसके फलस्वरूप 1908 के मोरले-मिंटो सुधार प्रस्ताव आए। मोरले-मिंटो संवैधानिक सुधारों की योजना को इंडियन कौंसिल अधिनियम-1909 द्वारा कार्यरूप दिया गया। इस अधिनियम  और इसके अधीन बनाए गए विनियमों से भारतीय विधानमंडलों के गठन एवं महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App