साधना में तनिक-सी गलती घातक होती है

By: Feb 24th, 2018 12:05 am

तंत्र साधना में कभी-कभी भयंकर संकट सामने आ जाता है, तनिक-सी गलती बड़ी घातक सिद्ध होती है। ऐसे में यदि गुरु उपस्थित हो तो वह उसकी सहायता करता है, किंतु गुरु सदा साथ नहीं रहते, इसलिए श्री गणेश जी का ध्यान करके आने वाले संकट से स्वयं को उबारा जा सकता है। त्रिपुरसुंदरी साक्षात जगदंबा हैं, अतः गणेशजी के ध्यान से साधक के समक्ष आने वाले संकट का निवारण पहले ही से हो जाता है…

-गतांक से आगे…

त्रिपुरसुंदरी की तंत्र साधना के तहत आज हम पवित्रीकरण एवं भूतशुद्धि की विवेचना करेंगे। स्वस्तिवाचन (शांतिपाठ) के बाद निम्नलिखित तीन मंत्रों का स्तवन करते हुए जल से आचमन करें, अपने माथे पर तीन बार जल छिड़कें। फिर दोनों हाथों को जल से धो लें। मंत्र ये हैं :

ओउम केशवाय नमः स्वाहा।

ओउम नारायणाय नमः स्वाहा।

ओउम माधवाय नमः स्वाहा।

साधना-स्थल यों तो पहले ही अच्छी तरह से स्वच्छ और शुद्ध कर दिया जाता है, लेकिन देवी की साधना से पूर्व निम्न मंत्र का स्तवन करके स्वयं को और फिर साधना-स्थल को शुद्ध एवं पवित्र करें :

ओउम अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपि वा।

यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स वाह्याभ्यंतरः शुचिः।।

उपर्युक्त मंत्र का स्तवन करते हुए अपने सिर पर तीन बार जल छिड़कें, फिर आचमन करके हाथ धोने के बाद इस मंत्र से भूतशुद्धि करें :

ओउम अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भुविसंस्थिता।

ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यंतु शिवाज्ञया।।

संकट निवारण

तंत्र साधना में कभी-कभी भयंकर संकट सामने आ जाता है, तनिक-सी गलती बड़ी घातक सिद्ध होती है। ऐसे में यदि गुरु उपस्थित हो तो वह उसकी सहायता करता है, किंतु गुरु सदा साथ नहीं रहते, इसलिए श्री गणेश जी का ध्यान करके आने वाले संकट से स्वयं को उबारा जा सकता है। त्रिपुरसुंदरी साक्षात जगदंबा हैं, अतः गणेशजी के ध्यान से साधक के समक्ष आने वाले संकट का निवारण पहले ही से हो जाता है।

ओउम सुमुखश्चेकदंतश्च कपिलो गजकर्णक।

लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।

संकल्प

किसी भी एक कामना का चुनाव करके उसे मूर्त रूप देने का नाम संकल्प है। इसलिए संकल्पपूर्वक किए गए कर्म का फल अवश्य मिलता है, अर्थात साधना में सफलता मिलती है। कहा गया है :

संकल्पमूलः कामौ वै यत्राः संकल्प संभवाः।

व्रता नियम कर्माश्च सर्वे संकल्पजाः स्मृताः।।

तात्पर्य यह है कि मनुष्य की समस्त कामनाओं का प्रकटीकरण संकल्प के माध्यम से होता है। कहा जाता है, यदि संकल्प न किया जाए तो किए जाने वाले कर्म या साधना का फल वरुण हरण करता है, अर्थात वह कर्म या साधना व्यर्थ चली जाती है। संकल्प इस प्रकार लिया जाता है :

हरि ओउम तत्सत। नमः परमात्मने श्री पुराणपुरुषोत्तमाय श्रीमद्भगवते महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य ब्रह्मणो द्वितीय प्रहारर्धे श्रीश्वेतावाराहकल्पे वैवस्वत मन्वनंतरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे जंबूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षे आर्य्यावर्तांतर्गत क्षेत्रे सृष्टिसंवत्सराणां मध्ये ‘अमुक’ नाम्नि संवत्सरे, ‘अमुक’’ अयने, ‘अमुक’ ऋतौ, ‘अमुक’ मासे, ‘अमुक’ पक्षे, ‘अमुक’ तिथौ, ‘अमुक’ नक्षत्रे, ‘अमुक’ योगे, ‘अमुक’’ वासरे, ‘अमुक’ राशिस्थे, सूर्ये, चंद्रे, भौमे, बुधे, बृहस्पतौ, शुक्रे, शनौ, राहो, कैतौ एवं गुण विशिष्टायां तिथौ, ‘अमुक’ गोत्रोत्पन्न, ‘अमुक’ नाम्निहं धर्मार्थ काममोक्षहेतवे श्रीगणपत्यादि सह श्रीत्रिपुरसुंदरी पूजनमहं करिष्यते।


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