सेरीकल्चर करियर की रेशमी डोर

By: Feb 7th, 2018 12:08 am

खुद मर- मिट कर रेशम को जन्म देने वाले कीट भी बेहद खास होते हैं। न सिर्फ  ये मर- मिट कर बेहतर रेशम देते हैं, बल्कि युवाओं के लिए एक बेहतर करियर विकल्प भी देते हैं। रेशम के कीट पालन, उसकी देखरेख और उससे रेशम निर्माण की प्रक्रिया को सेरीकल्चर कहा जाता है। आज के युवाओं के लिए यह एक शानदार करियर विकल्प है…

सिल्क अर्थात रेशम की सुंदरता हर कोई देखता ही रह जाता है। खुद मर मिट कर रेशम को जन्म देने वाले कीट भी बेहद खास होते हैं। न सिर्फ  ये मर मिट कर बेहतर रेशम देते हैं, बल्कि युवाओं के लिए एक बेहतर करियर विकल्प भी देते हैं। रेशम के कीट पालन, उसकी देखरेख और उससे रेशम निर्माण की प्रक्रिया को सेरीकल्चर कहा जाता है। आज के युवाओं के लिए यह एक शानदार करियर विकल्प है। रेशम मनुष्य के परिचित सबसे पुराने तंतुओं में से एक है और दुनिया में सबसे अधिक प्यारा तंतु है। अपनी भव्यता की वजह से रेशम वस्त्र सदियों से निरपवाद रूप से वस्त्रों की रानी के रूप में विख्यात है। विलासिता, लालित्य, किस्म, प्राकृतिक चमक, रंगों की ओर सहज आकर्षण और चटकीला रंग, हल्के वजन, कमजोर गर्मी प्रवाहक तत्त्व, लचीलापन तथा उत्कृष्ट वस्त्र विन्यास इसकी कुछ विशेषताएं हैं। भारत में रेशम को प्राचीन काल से एक पवित्र तंतु माना जाता है और कोई भी धार्मिक समारोह रेशम के उपयोग के बिना पूरा नहीं होता।

भारत में सिल्क उत्पादन

सिल्क उत्पादन के मामले में भारत का स्थान विश्व में दूसरा है, जो कुल वैश्विक उत्पादन में करीब 18 फीसदी का योगदान करता है, लेकिन दुनिया में सिल्क का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।  भारत में मल्बरी सिल्क उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य हैं कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर । कुल सिल्क उत्पादन में इन राज्यों की हिस्सेदारी कुल मिलाकर 92 फीसदी है। साल 2010-11 में देश में 163060 टन कच्चे सिल्क का उत्पादन हुआ था ।

सेरीकल्चरिस्ट का कार्य

सेरीकल्चर के पेशेवरों का प्रमुख काम होता है रेशम के कीटों की सही तरीके से वृद्धि सुनिश्चित करना। इनके अन्य कार्यों में रेशम उत्पादन के लिए योजना बनाना, लागत राशि का प्रबंधन करना और रेशम आधारित उद्योगों के लिए प्रौद्योगिकी का प्रभावी तरीके से उपयोग सुनिश्चित करना।

रेशम ः एक परिचय

रेशम या सिल्क प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है। रेशम के कुछ प्रकार के रेशों से वस्त्र बनाए जा सकते हैं। ये प्रोटीन रेशों में  मुख्यता फिब्रोइन होता है। ये कुछ रेशे कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाए जाते हैं। सबसे उत्तम रेशम शहतूत के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है। रेशम एक प्रकार का महीन चमकीला और दृढ़ तंतु या रेशा  है, जिससे कपड़े बुने जाते हैं। ये तंतु कोश में रहनेवाले एक प्रकार के कीड़े तैयार करते हैं। रेशम के कीड़े पिल्लू कहलाते हैं और बहुत तरह के होते हैं। जैसे विलायती, मदरासी या कनारी, चीनी, अराकानी, आसामी इत्यादि। चीनी, बूलू और बड़े पिल्लू का रेशम सबसे अच्छा होता है। ये कीड़े तितली की जाति के हैं। इनके कई कार्याकलाप होते हैं। अंडा फूटने पर ये बड़े पिल्लू के आकार में होते हैं और रेंगते हैं। इस अवस्था में ये पंत्तियां बहुत खाते हैं। शहतूत की पत्ती इनका सबसे अच्छा भोजन है। ये पिल्लू बढ़कर एक प्रकार का कोश बनाकर उसके भीतर हो जाते हैं। उस समय इन्हें कोया कहते हैं। कोश के भीतर ही यह कीड़ा वह तंतु निकालता है, जिसे रेशम कहते हैं। कोश के भीतर रहने की अवधि जब पूरी हो जाती है, तब कीड़ा रेशम को काटता हुआ निकलकर उड़ जाता है। इससे कीड़े पालने वाले निकलने के पहले ही कोयों को गर्म पानी में डालकर कीड़ों को मार डालते हैं और तब ऊपर का रेशम निकालते हैं। आज फैशन की दुनिया में रेशम उद्योग का बड़ा महत्त्व है। इस रेशम  ने रोजगार के कई विकल्प युवाओं के लिए पैदा कर दिए हैं।

प्रमुख कोर्स

* सर्टिफिकेट कोर्स इन सेरीकल्चर

* बीएससी (सेरीकल्चर)

* बीएससी सिल्क टेक्नोलॉजी (सेरीकल्चर)

* एमएससी सेरीकल्चर

* पीजी डिप्लोमा इन सेरीकल्चर (नॉन-मल्बेरी)

* पीजी डिप्लोमा इन सेरीकल्चर (मल्बेरी)

* डिप्लोमा इन सेरीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट

योग्यता

सर्टिफिकेट कोर्स ः 10वीं उत्तीर्ण करने के बाद सेरीकल्चर में एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स और दो वर्षीय इंटर वोकेशनल कोर्स उपलब्ध हैं।

बैचलर कोर्स ः विज्ञान विषयों(बायोलॉजी जरूरी) के साथ 12वीं पास करके सेरीकल्चर के बैचलर कोर्स में प्रवेश लिया जा सकता है। इस कोर्स की अवधि 4 साल होती है।

मास्टर्स कोर्स ः सेरीकल्चर या एग्रीकल्चर से संबंधित विषयों में बैचलर डिग्री पूरी करने के बाद ही सेरीकल्चर के मास्टर्स कोर्स में दाखिला लिया जा सकता है। इसके लिए प्रवेश परीक्षा देनी होती है।

संभावनाएं

सेरीकल्चर में बैचलर या मास्टर्स कोर्स करने के बाद केंद्र या राज्यों के उद्योग विभाग में सेरीकल्चर डायरेक्टर का पद हासिल किया जा सकता है। सेरीकल्चर या सिल्क टेक्नोलॉजी में बीएससी या पीजी डिप्लोमा पास युवा सेरीकल्चर इंस्पेक्टर, रिसर्च आफिसर, असिस्टेंट डायरेक्टर (सेरीकल्चर) और प्रोजेक्ट मैनेजर (सेरीकल्चर) आदि पदों के लिए भी आवेदन कर सकते हैं। मास्टर्स कोर्स करने के बाद सरकारी शोध संस्थानों में रिसर्चर के रूप में काम करने का मौका मिलता है। निजी क्षेत्र में काम करने की इच्छा होने पर टेक्सटाइल कंपनियों (रेशम उत्पादों से संबंधित) या सेरीकल्चर फारम से भी जुड़ा जा सकता है। शिक्षण कार्य में रुचि होने पर सेरीकल्चर में एमएससी के बाद किसी सेरीकल्चर इंस्टीच्य़ूट में लेक्चरर के रूप में पढ़ाने का काम कर सकते हैं। इसके लिए यूजीसी नेट पास होना जरूरी है। सामाजिक कार्यों से लगाव होने पर गैर सरकारी संगठनों में भी बतौर विशेषज्ञ शामिल हुआ जा सकता है। किसानों की आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए देश के कई गैर सरकारी संगठन उनके बीच रेशम उत्पादन की तकनीक और प्रक्रिया को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं।

पारिश्रमिक

बैचलर कोर्स पूरा करने के बाद निजी क्षेत्र की कंपनियों में 18 से 20 हजार रुपए प्रतिमाह तक का वेतन मिल जाता है। सरकारी क्षेत्र की कंपनियों में मासिक वेतन 30 हजार रुपए से ज्यादा होता है। योग्यता और अनुभव के आधार पर तनख्वाह और पद में इजाफा होता रहता है।

प्रमुख संस्थान

* सेंट्रल सेरीकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीच्य़ूट, मैसूर

* सेंट्रल सेरीकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीच्य़ूट, बेरहामपुर

* सैम हिग्नीबॉटम इंस्टीच्य़ूट ऑफ  एग्रीकल्चर,टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज

* ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ  एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर

* शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ  एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी, जम्मू

* इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

* केंद्रीय रेशम उत्पादन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, पमपोर, जम्मू एवं कश्मीर

* बाबा साहब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ


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