एक साधारण यात्रा का सियासी सुकून

By: Mar 29th, 2018 12:05 am

हंसराज भारती

लेखक, सरकाघाट से हैं

यहां भी कभी मुफलिसी मुकद्दर थी। इसी मुफलिसी से निकलकर आए हैं हिमाचल के नए कर्णधार जयराम ठाकुर। वे किसान हैं, बागबान हैं, देवी-देवताओं के श्रद्धालु हैं। गांव निवासी हैं। पहाड़ के बाशिंदे हैं। सरकारी स्कूलों में पैदल चल कर पढ़े हैं। अभावों से संघर्ष किया है, कठिनाइयों से जूझे हैं। अपना रास्ता खुद बनाया है…

-गतांक से आगे…

वीरभद्र, धूमल के विपरीत कमोबेश एक युवा, गतिशील नेतृत्व के हाथ देवभूमि की बागडोर। अब भी मंडी से जंजैहली की दूरी 82 किलोमीटर है, पर अब एचआरटसी की बस चार घंटे में पूरा कर लेती है। पूरी सड़क पक्की है। अब दो बसों की बजाय पूरे क्षेत्र में तीस-चालीस बसें पूरा दिन दौड़ती हैं। सड़कों का जाल बिछ गया है। जगह-जगह स्कूल खुल गए हैं। लंबा थाच में कालेज है। आईटीआई है। एसडीएम दफ्तर जंजैहली में फंक्शन कर रहा है। बड़ा अस्पताल काम कर रहा है। बागबानी के रकबे और उत्पादन में बेहताशा बढ़ोतरी हुई है। पर्यटन अपने पंख पसार रहा है। इस घाटी की सुंदरता अद्भुत है। गुमनाम जगहों ने अपनी पहचान बना ली है। शिकारी देवी जैसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थल दिनोंदिन ख्याति प्राप्त कर रहे हैं। खुशहाली की नई बयार बह रही है। जीवन स्तर में बदलाव आया है। पुराना कुछ कहीं पीछे छूट गया है।

युवाओं में नई ललक अपने कैरियर को लेकर दृष्टिगोचर होती है, जो कुछ साल पहले नाममात्र ही थी। यद्यपि पूरे क्षेत्र में तस्वीर इतनी उजली नहीं है, अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। फिर भी 1986 वाली स्थिति नहीं है। गरीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा अब एक इतिहास बन गई है। चालीस वर्ष पहले इसी चच्चोट (अब सिराज) क्षेत्र के विधायक से प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के चुनने का प्रश्न उभरा था। इस सफर को पूरा करने में चालीस साल लगे। मंडी से जंजैहली के सफर में 60 किलोमीटर की दूरी पर बगस्याड़ है, जो अपने सेब बागीचों के लिए प्रसिद्ध है। उस समय यानी 1986 में भी इसका नाम यही था। यहीं से आठ किलोमीटर की दूरी पर लेह गला नामक पड़ाव है। घने देवदारों के मध्य घिरा हुआ। यहां से थुनाग पांच किलोमीटर दूर है, जो अब तहसील मुख्यालय है। यहीं से ऊपर की ओर कुछ दूरी पर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है एक गांव तांदी। पैदल भी जा सकते हैं और सड़क से भी जुड़ गया है। वैसा ही गांव जैसे ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में होते हैं। करीब साढ़े सात हजार फीट की ऊंचाई है। सर्दियों में खूब बर्फ पड़ती है। गर्मियां हद दर्जे की खुशगवार। यहां भी कभी मुफलिसी मुकद्दर थी। दूर-दूर तक तब सिर्फ पहाड़ थे। इसी मुफलिसी से निकलकर आए हैं हिमाचल के नए कर्णधार जयराम ठाकुर। वे किसान हैं, बागबान हैं, देवी-देवताओं के श्रद्धालु हैं। गांव निवासी हैं। पहाड़ के बाशिंदे हैं। सरकारी स्कूलों में पैदल चल कर पढ़े हैं। अभावों से संघर्ष किया है, कठिनाइयों से जूझे हैं। अपना रास्ता खुद बनाया है। अव्वल दर्ज के विनम्र शालीन, सुसंस्कृत और सज्जन हैं, अपने परिवेश के पूरे नुमाइंदे हैं। मृदुभाषी, सरल, सादगी से भरपूर, जुझारू हैं। बचपन, युवावस्था की मुफलिसी ने इन्हें संवारा ही है, वे उससे पराजित नहीं हुए हैं, उल्टे उसे हराने में कामयाब रहे हैं। अपने चारित्रिक गुणों के कारण ही गुदड़ी के लाल सिद्ध हुए हैं। 1993 में पहला चुनाव लड़ा। मात्र 800 मतों के अंतर से पिछड़े सिराज के शेर कहे जाने वाले मोती राम ठाकुर से। इस अंतर से पार्टी नेतृत्व की पहचान में आए। फरवरी, 1998 के चुनाव में चच्योट (अब सिराज) की जनता ने इस क्षेत्र में कांगे्रस के वर्चस्व का भोग डाल दिया, जयराम ठाकुर को पहली विजयश्री का उपहार देकर। तब से विजयश्री का यह क्रम निरंतर जारी है।

अपने तमाम प्रयासों के बावजूद कांगे्रस, भाजपा का यह किला भेदने में नाकाम रही। इसी किले के सशक्त प्रहरी अब हिमाचल के भाग्यविधाता हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि जयराम ठाकुर हिमाचल में विकास और नेतृत्व की नई मिसाल कायम करेंगे। वे हिमाचल की उस जनता की नुमाइंदगी करते हैं, जिसे बुद्धिजीवियों की भाषा में हाशिए का समाज भी कहते हैं। वे उस समाज से निकल कर आए हैं, जहां जीवनयापन के लिए कठिन श्रम करना पड़ता है। पर सरलता, सहजता और सादगी जिनकी पहचान है। जल, जंगल और जमीन से जिनकी गहरी साझ है। वे प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त बनाएंगे और आम जनता को मुफ्त का माल समझने तथा अपने हितों, स्वार्थों को तरजीह देने वाली अफसरशाही पर अवश्य नकेल कसेंगे। प्रशासन और आम जनता के बीच बहुत बड़ा गैप है। इस गैप को मिटाना होगा। केंद्र से कुछ बड़े प्रोजेक्ट भी लाने होंगे। जो प्रोजेक्ट लटके पड़े हैं, उन्हें चालू करना होगा। सबसे बड़ा प्रश्न रोजगार का है। इस समय करीब 10 लाख युवा बेरोजगार हैं। इन्हें रोजगार दिलाना होगा। सभी को सरकारी नौकरी दिलाना मुश्किल है, इसलिए स्वरोजगार के प्रति युवाओं को आकर्षित करना होगा। तभी प्रदेश में सही मायने में खुशहाली आ पाएगी। विकास का लाभ आम जनता तक पहुंचना चाहिए। प्रदेश में लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए कोई बेहतर नीति बनानी होगी। छोटे उद्योगों में ही बड़ी संख्या में रोजगार पैदा किया जा सकता है। लोकतंत्र की असली ताकत जनता है। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है और मिसाल भी कि मुफलिसी में जीने वाले भी लोक के सहयोग और अपने परिश्रम से लाखों का मुकदर बन जाते हैं। नया इतिहास रचते हैं और जनता के दिलों पर राज करते हैं। आप हिमाचल की जनता की आशाओं, आकांक्षाओं और भावनाओं पर खरा उतरेंगे तथा कामयाबी की नई इबारत लिखेंगे।

अनंत शुभकामनाएं।

(समाप्त)


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