दो दशक में दो लाख टीबी मरीजों का इलाज
2022 तक बीमारी के खात्मे पर किया जा रहा काम
पालमपुर— प्रदेश में गत दो दशक में टीबी से ग्रसित दो लाख से अधिक लोगों का इलाज किया गया है। वहीं बड़े स्तर पर चलाए गए एक कार्यक्रम से 2022 तक प्रदेश को टीबी मुक्त करने पर काम किया जा रहा है। टीबी की रोकथाम के लिए प्रदेश में 1995 से वृहद स्तर कार्य किया जा रहा है और आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 1995 से 42 टीबी रोगियों के इलाज से शुरू हुआ यह आंकड़ा अब सालाना 14 हजार तक जा पहुंचा है। चिकित्सकों के अनुसार टीबी का कीटाणु किसी के शरीर में कभी भी प्रवेश कर सकता है, लेकिन टीबी की बीमारी की ज्यादा संभावना धूम्रपान करने वाले, टीबी के मरीजों के निरंतर संपर्क में रहने वाले, खून की कमी व कूपोषण के शिकार लोगों में रहती है। वह व्यक्ति जिनकी गंभीर बीमारियों के कारण प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो गई है, जैसे कैंसर, एड्स व शुगर इत्यादि में भी रोग की संभावना अधिक पाई जाती है। ताजा शोध के अनुसार यदि शुगर कंट्रोल में न हो, तो भी टीबी का खतरा बढ़ सकता है। चिकित्सकों के अनुसार मधुमेह के मरीज अपनी शुगर को नियंत्रित रख कर इस बीमारी के कीटाणु से बचाव कर सकते हैं। टीबी की जल्द पहचान के लिए प्रदेश में सीबी नेट मशीनें अस्पतालों में स्थापित की जा रही हैं। इस कड़ी में रविवार को स्वास्थ्य मंत्री पालमपुर अस्पताल में सीबी नेट मशीन का लोकार्पण करेंगे। जनवरी माह में एक बड़ा कैंपेन शुरू किया गया, जिसमें टीमें ऐसे क्षेत्रों तक पहुंच कर जांच कर रही हैं, जहां पर बीमारी के अधिक पैर पसारने की संभावना है।
89 फीसदी है उपचार दर
वर्ष 2017-18 में 31 दिसंबर, 2017 तक 14330 क्षय रोगियों का पता लगाया गया, जिनमें इस बीमारी के लक्षण अनुकूल पाए गए तथा 82824 व्यक्तियों के थूक की जांच की गई। हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है, जहां सभी जिलों को संशोधित राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत लाया गया है। इस वर्ष कुल क्षयरोग अधिसूचना की दर 210 प्रति लाख प्रति वर्ष थी तथा 90 प्रतिशत लक्ष्यों के मुकाबले हिमाचल प्रदेश की उपचार दर 89 प्रतिशत है।
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