बैंकों में डाका और चोरों का शोर

By: Mar 17th, 2018 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

चोरी उच्च अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर नहीं हो सकती। जाहिर है इसमें आडिटर्ज का उससे भी बड़ा हाथ है। दरअसल अपराधी, नौकरशाही और राजनीतिज्ञों की एक त्रिमूर्ति बन गई है, जो पूरे सिस्टम को घुन की तरह खा रही है। उसके कारण आम जनता का इस सिस्टम पर से विश्वास भी उठना शुरू हो गया है। सिस्टम को इस प्रकार संशोधित करना होगा, ताकि कहीं भी कोई उस सिस्टम में सेंध लगाना चाहे तो चेतावनी का अलार्म अपने आप बजने लगे…

बैंकों के पैसे को बहुत से शातिर लोग लंबे अरसे से लूट रहे थे । वे अपने आपको सम्मानित व्यवसायी भी कहलवा रहे थे, या समाज में सम्मानित व्यक्ति माने भी जाते थे । यह लूट हजारों करोड़ की है। यह ठीक है कि दुनिया भर में पूरा बैंकिंग सिस्टम इसी सिद्धांत पर चलता है कि आम आदमी इसमें पैसे जमा करवाता है और उस पैसे से उद्यमी अपना व्यवसाय, व्यापार या उत्पादन केंद्र चलाते हैं। उनको व्यवसाय से जो लाभ होता है, वह उसका कुछ हिस्सा बैंक को भी देता है और बैंक उसको आगे अपने खाता धारकों में तकसीम करता है। यहां तक तो सब ठीक है। इसमें किसी को भला क्या आपत्ति हो सकती है, लेकिन गड़बड़ तब शुरू होती है, जब कोई व्यक्ति बैंक से कर्जा ले लेता है और उसको वापस देने के बारे में सोचता तक नहीं। कर्जा देने वाला बैंक भी यह जानता है कि यह व्यवसायी पैसा वापस नहीं करेगा। लेकिन फिर भी आपसी मिलीभगत से वह उसे कर्जा देता रहता है और कर्जा डूबता रहता है। लेकिन इस लुप्त हो रही नदी में सब मिल-जुल कर नहाते रहते हैं और अपना घर भरते रहते हैं ।

लेकिन एक प्रश्न पैदा होता है कि यदि बैंकों को मिल-जुल कर इस प्रकार लूटा जा रहा है, तो बैंक डूब क्यों नहीं जाते और अपने खाता धारकों का पैसा कैसे चुकाते हैं? इसका सीधा सा उत्तर तो यही है कि कर्जा लेने वाले सभी व्यवसायी स्वभाव से चोर नहीं होते। चोरी करने वाले लोग कुछ ही होते हैं। बैंक वाले भी उतने ही चोरों को पालते हैं, जितने चोरों को पालने से उनका अपना घर ढह जाने से बचा रहे । फिर इन चोरों की एक खास खासियत है। वे यह पैसा अकेले नहीं खाते। इसमें सहकारिता भाव का ध्यान रखा जाता है। पूरी चोरी या डाके में जिसकी जितनी भागीदारी होती है, उसको उतना हिस्सा ईमानदारी से दे दिया जाता है। राजनीतिज्ञ को भी इसी में से मोटी दक्षिणा दी जाती है। यानी यह काम एक पूरे तंत्र पर निर्भर करता है। लेकिन ध्यान रखना चाहिए बैंकों से यह लूट चार, पांच साल पहले ही शुरू नहीं हुई। यह दशकों से चली हुई है। जिनका कर्त्तव्य इनको पकड़ना था वे भी इसी में शामिल थे। यदि कभी-कभार ऐसे चोर संकट में फंस भी जाते थे, तो राजनीतिज्ञ उनको बचाने और छिपाने में अपना रण कौशल दिखाते थे। लेकिन अब मोदी जी की सरकार है। उसकी रुचि न तो इनको बचाने में है और न ही छिपाने में। बल्कि इसके विपरीत जैसे ही सरकार को पता चला कि बैंकिंग सिस्टम के पिछवाड़े में उस्तादों ने दशकों से एक लंबी सुरंग खोद रखी है, तब से सरकार उस सुरंग को बनाने वालों और और उसमें सहायता करने वालों की धरपकड़ में जुट गई है। पहले चोरों को यह विश्वास रहता था कि यदि ईमानदारी की बीमारी से ग्रस्त किसी अधिकारी ने कभी इनको पकड़ भी लिया तो अपने राजनीतिज्ञ आकाओं की मदद से छूट ही नहीं जाएंगे, बल्कि सुरंग के रास्ते आवागमन भी बदस्तूर जारी रहेगा। लेकिन अब उनके सिर के साईं पराजित होकर अपनी रक्षा के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। चिदंबरम इनको बचाएंगे या अपने बेटे कार्ति चिदंबरम को। वे दिन हवा हुए जब खलील खां फाख्ता उड़ाया करते थे। इस लिए सभी चोर पकड़े जाने पर या फिर पकड़े जाने से पहले ही विदेशों में भाग रहे हैं। चाहे विजय माल्या हो, ललित मोदी हो या फिर अब नीरव मोदी या उसका मामा चौकसी। हो सकता है आने वाले समय में कुछ और चोर भी भागते दिखाई दें। लेकिन राहुल गांधी को यह समझ नहीं आ रहा। वे हाथ हिला-हिला कर पूछते हैं कि नीरव मोदी विदेश कैसे भाग गए? राहुल गांधी से बेहतर तो नीरव मोदी और विजय माल्या ही अच्छी तरह जानते हैं कि अब चोरी करकेपकड़े जाने पर यहां रहना कठिन होता जा रहा है। कांग्रेस के शासन काल में यह कठिन नहीं था बल्कि इसको मैनेज किया जा सकता था। अब यह संभव नहीं है। इतना ही नहीं अब ऐसे चोरों की प्राण धमनियों को बंद करने के प्रयास भी हो रहे हैं। उनकी संपत्ति जब्त की जा रही है। पहले चोरों को पता था कि सालों-साल केस चलता रहेगा और लूट के माल को तो कोई छू भी नहीं सकता। अब सबसे पहले सरकार ऐसे भगोड़ों की संपत्ति को जब्त करने को ही वरीयता दे रही है।

इस पूरे कांड से एक और बात जाहिर होती है कि बैंकों के उच्च अधिकारी और मैनेजमेंट की इस प्रकार के भ्रष्टाचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । इसलिए इन उच्चाधिकारियों की केवल भागीदारी ही निश्चित नहीं की जानी चाहिए, बल्कि उनसे कुछ सीमा तक इसकी भरपाई भी की जानी चाहिए। जिस धड़ल्ले से लूट की गई है, उससे एक बात और भी स्पष्ट होती है कि लूटने वालों को किसी प्रकार का भय नहीं था। भय ही नहीं विजय माल्या तो इसी प्रकार रेंगते-रेंगते राज्यसभा तक जा पहुंचा था। यदि नीरव मोदी और चौकसी पकड़े न जाते तो, हो सकता है कि वे भी इस प्रकार के माननीयों की श्रेणी में पहुंच जाते। दरअसल अपराधी, नौकरशाही और राजनीतिज्ञों की एक त्रिमूर्ति बन गई है, जो पूरे सिस्टम को घुन की तरह खा रही है। उसके कारण आम जनता का इस सिस्टम पर से विश्वास भी उठना शुरू हो गया है। एक के बाद एक बैंक घोटाले उजागर होते जा रहे हैं, उससे यह भी जाहिर होता है कि यह बीमारी काफी अरसा पहले शुरू हो गई थी।

बैंकों से की जा रही इस लूट का भांडा चाहे स्वयं ही फूटा है, लेकिन अब सरकार को पूरे सिस्टम की एक बार अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए ताकि उसके सभी लूपहोल्ज को प्लग किया जा सके। इसमें कोई शक नहीं कि यह चोरी बिना उच्च अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर नहीं हो सकती। जाहिर है इसमें आडिटर्ज का उससे भी बड़ा हाथ है। सिस्टम को इस प्रकार संशोधित करना होगा, ताकि कहीं भी कोई उस सिस्टम में सेंध लगाना चाहे तो चेतावनी का अलार्म अपने आप बजने लगे। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बात का आश्वासन भी दिया है। यह कोई ऐसा काम नहीं है जो असंभव है, लेकिन आज तक ऐसा इसलिए नहीं हो सका क्योंकि जिनसे बैंकों की रक्षा की जानी थी, उन्होंने ही बैंकिंग सिस्टम पर कब्जा कर लिया था। खजाने की रक्षा का भार चोरों पर डाल दिया गया था। सरकार उनको परे करने की कोशिश कर रही है, तभी इतना हो-हल्ला मचा हुआ है। चोर भाग रहे हैं और उनके छिपे सहायक चिल्ला रहे हैं। चोर मचाए शोर वाला मामला बनता जा रहा है। अंतर इतना ही है कि इस बार चोर नहीं, चोरों के सहायक शोर मचा रहे हैं।

ई-मेल ः kuldeepagnihotri@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App