भारतीय राजनीति का नया विचार

By: Mar 16th, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

विचार की इस नई दिशा बनाने का श्रेय मोदी को जाता है। यह एक ऐसा विचार है जहां हम संविधान के अधीन रहेंगे, और जहां किसी को तुष्ट करने के लिए राजनीति नहीं होगी। मोदी के अनुयायियों, जो सोचते थे कि हिंदुत्व ही उनका मार्गदर्शी सिद्धांत है, के लिए भी यह नया विचार महत्त्व का है जिसमें संविधान, कानून व राष्ट्र हित को भुलाना नहीं है…

एक अंग्रेज कवि थे जिन्होंने एक बार कहा था, ‘पुरानी व्यवस्था नई व्यवस्था को स्थान देने के लिए बदल जाती है।’ यह एक ऐसा वक्तव्य है जो पहले इतना सच कभी नहीं था, जितना आज है। वर्ष 2014 से भारत में चल रहा चुनावी परिदृश्य देख कर लगता है कि परंपरागत राजनीति अब खत्म हो गई है। भारतीय राजनीति में हमेशा से कांग्रेस तथा कुछ अन्य राजनीतिक संगठनों, जैसे समाजवादियों व क्षेत्रीय दलों  का वर्चस्व देखा गया। कुछ समय के लिए राजगोपाल आचार्य की सोशलिस्ट पार्टी भी भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर आई, परंतु यह पार्टी जवाहर लाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण व राम मनोहर लोहिया के मजबूत समाजवादी मिश्रण के सामने ज्यादा देर टिक नहीं पाई। जहां बड़ी संख्या में नेताओं का अभ्युदय हुआ, वहां महात्मा गांधी वट वृक्ष की तरह बने रहे। उधर सुभाष चंद्र बोस ने अपना अलग ही रास्ता अपनाया। भगत सिंह और उनकी टीम राजनीति से दूर ही रही, जो साझा उद्देश्य के लिए अपने क्रांतिकारी संगठन के माध्यम से लड़ती रही। देश के विभाजन से लेकर भारत की राजनीति कांग्रेस केंद्रित रही। इस धुरी को अब नरेंद्र मोदी की राजनीति ने दूर फेंक दिया है। कुछ समय के लिए भारत की राजनीति को दक्षिणपंथी व वामपंथी विचारधारा के आधार पर वर्गीकृत करना आसान था। यह इस आधार पर होता था कि आप समाजवाद अथवा पूंजीवाद के कितने करीब हैं। लेकिन इन दिनों वे पेटियां जिसमें हम इन विचारधाराओं को कैद करते थे, खुल गई हैं तथा कई पुरानी चीजें लुप्त हो गई हैं।

नार्वे जैसे देशों में क्या हो रहा है। इन जैसे देशों में उतनी ही सामाजिक सुरक्षा और राज्यों की सक्रियता है, जितनी साम्यवादी शासन वाले राज्यों में है, लेकिन उन्हें कुछ मामलों में व्यापक स्वतंत्रता भी हासिल है।  सिंगापुर एक नगरीय राज्य के अलावा और क्या है, जो कुशलता से प्रशासन चल रहा है और भ्रष्टाचार भी वहां नहीं है। विश्व अब दो धु्रवीय नहीं है। विचारधारा भी अब ठीक या गलत नहीं है। इसके कई प्रतिरूप व रंग हैं। जो लोग भारत में वर्तमान शासन को भाजपा का शासन कहते हैं, उनसे मैं सहमत नहीं हूं। मैं इसे मोदी का शासन मानता व कहता हूं। वास्तव में आजकल दक्षिणपंथी भी गरीबी से निपटने के लिए समाजवादी तरीकों का ज्यादा उपयोग कर रहे हैं। जन-धन योजना, महिला सशक्तिकरण, दबे-कुचले लोगों का कल्याण और वरिष्ठ नागरिकों के लिए लाभदायक योजनाएं अपने स्वरूप में समाजवादी लगती हैं। उनकी एक और हालिया योजना, जिसके माध्यम से सभी को चिकित्सा बीमा उपलब्ध कराया जाएगा, इस बात को पुख्ता करती है कि स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र को व्यक्तिगत हाथों में न छोड़कर उसमें राज्य का हस्तक्षेप बढ़ाया गया है। मैं यह सब कुछ त्रिपुरा के हाल के चुनाव परिणामों को देखकर लिख रहा हूं। 25 वर्षों तक इस राज्य में कम्युनिस्टों का शासन चलता रहा और कोई भी सियासी संगठन उन्हें चुनौती नहीं दे पाया। कम्युनिस्टों का एक अन्य किला पश्चिम बंगाल था, जिसे ममता बैनर्जी की तृणमूल कांगे्रस ने ढहा दिया है।

इनका एक अन्य किला केरल में अभी भी बचा हुआ है। यह अंतिम किला भी अगर ढह जाता है, तो भारत कम्युनिस्ट मुक्त हो जाएगा। त्रिपुरा के पिछले चुनाव में भाजपा 49 सीटों पर लड़ी थी और सभी जगह उसकी जमानत जब्त हो गई थी। इस बार पार्टी के लिए वहां चमत्कार जैसी स्थिति हो गई और उसे 43 सीटों पर विजय मिली। इन 43 सीटों में से आठ सीटें उसके सहयोगियों ने जीती हैं। यहां पर कुल सीटें 60 हैं। इस तरह भाजपा को दो-तिहाई बहुमत मिल गया। यहां पर कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। कम्युनिस्टों को अपने ही गढ़ में केवल 16 सीटें मिल पाईं। यह मोदी लहर की एक ऐसी उपलब्धि है, जिसकी किसी से तुलना नहीं हो सकती। त्रिपुरा के परिणाम ने नेताओं के इस परंपरागत मत को झुठला दिया है कि यह कम्युनिस्टों का दुर्भेद्य किला है। भाजपा की इस जीत की व्याख्या कुछ लोग इस तरह भी कर रहे हैं कि यह मोदी की नई पंथनिरपेक्ष छवि है, ऐसी पंथनिरपेक्षता जिसमें सभी को संवैधानिक रूप से समानता प्राप्त है, परंतु तुष्टिकरण नहीं है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यही प्रदर्शित कर रहे हैं। त्रिपुरा के अलावा नागालैंड व मेघालय के चुनाव परिणाम भी यही साबित करते लगते हैं। इन तीनों राज्यों में ईसाई लोगों की बहुलता है, फिर भी यहां पर भाजपा की जीत हुई है जिसे दक्षिणपंथी पार्टी माना जाता है। यह भी एक तथ्य है कि त्रिपुरा में मुसलमानों ने भी मोदी के पक्ष में मतदान किया। यह ऐतिहासिक तथ्य है क्योंकि भाजपा पर अकसर आरोप लगता रहा है कि वह हिंदुत्व की समर्थक है। विचार की इस नई दिशा बनाने का श्रेय मोदी को जाता है।

यह एक ऐसा विचार है जहां हम संविधान के अधीन रहेंगे, और जहां किसी को तुष्ट करने के लिए राजनीति नहीं होगी। मोदी के अनुयायियों, जो सोचते थे कि हिंदुत्व ही उनका मार्गदर्शी सिद्धांत है, के लिए भी यह नया विचार महत्त्व का है जिसमें संविधान, कानून व राष्ट्र हित को भुलाना नहीं है। त्रिपुरा ने नए विचार की आधारशिला रखते हुए मोदीवाद को न्यायसंगत ठहराया है। मुझे पूर्वोत्तर में कुछ समय के लिए वहां के लोगों के साथ काम करने का अवसर मिला। मैंने वहां की सरकारों के साथ भी काम किया। वहां के लोगों का शिकवा था कि अन्य राज्यों की तरह इन राज्यों पर केंद्र ध्यान नहीं देता है तथा वे सदा उपेक्षित रहे हैं। लेकिन अब यह स्थिति नहीं रही है। केंद्र वहां गहन रुचि दिखा रहा है तथा नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत रूप से वहां के विकास पर नजदीकी नजर रखे हुए हैं।

बस स्टैंड

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