आक्रांताओं के इरादे जानते थे अंबेडकर

By: Apr 28th, 2018 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

कहा जाता है कि अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘थाट्स आन पाकिस्तान’ में मुसलमानों के मनोविज्ञान और अन्य मजहबों को लोगों पर उनके दृष्टिकोण को लेकर कुछ ऐसी सख्त टिप्पणियां की थीं कि प्रकाशन से पूर्व अपने कुछ मित्रों के कहने पर उन्हें हटा दिया। कीर के अनुसार-यदि वे न हटाते तो शायद अंबेडकर को भी वही असुखद अनुभव होता जो कभी एचजी वैल्ज को लंदन में मुसलमानों के हाथों हुआ था। अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक एचजी वैल्ज ने 1922 में एक पुस्तक लिखी थी जिसमें एक अध्याय मुसलमानों व इस्लाम पर भी था…

दिसंबर 1940 में अंबेडकर ने थाट्स ऑन पाकिस्तान के नाम से एक किताब लिखी। उनके इस ग्रंथ ने यह प्रभाव दिया कि वे भारत विभाजन के पक्ष में थे, लेकिन अंबेडकर का मानना था कि इस ग्रंथ में उन्होंने भारत विभाजन को लेकर हिंदू और मुसलमान दोनों पक्षों के तर्कों की निष्पक्ष प्रस्तुति और मीमांसा की है। वह किताब देश में चर्चा का विषय बन गई। अंबेडकर के जीवनी लेखक धनंजय कीर इस किताब को उस समय का बंबशैल यानी बिंब गिराना कहते हैं। अंबेडकर ने अपनी इस पुस्तक की भूमिका में कार्लाइल को उद्धृत किया। कार्लाइल ने कहा था-इंग्लैंड की मेधा जो कभी तूफानों की छाती चीरकर आगे उड़ान भरते जाने वाले बाज के समान थी, जिसे अपने शौर्य पर गर्व था और जो विश्व को चुनौती देती थी, वह अब सूरज की ओर उड़ान नहीं भर रही है। इंग्लैंड की इस मेधा की सोच उस शतुर्मुर्ग की तरह लालची हो गई है, जो पास पड़े चमड़े तक को निगलने को आतुर रहता है। उसे चाहे जो भ्रांतियां हों, एक दिन तो उसे जागना ही पड़ेगा। भले ही वह कितनी देर तक अपना सिर धरती में गड़ाए रहे। उसे एक दिन जागना ही है। मनुष्य और देवता ने हमें जगाया है। हमारे पूर्वज भी हमें सतत जागरण का संदेश दे रहे हैं, लेकिन प्रश्न उठ सकता है कि कार्लाइल के इस उद्धृरण से भारत का क्या ताल्लुक है और अंबेडकर ने इसे भारत विभाजन की पुस्तक के आमुख में क्यों उद्धृत किया है। इसका उत्तर भी उन्होंने दिया ‘मेरा विश्वास है कि वर्तमान परिस्थितियों में यह चेतावनी हम भारतीयों के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी कभी अंग्रेजों के लिए थी। यदि भारतीयों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, तो वे अपने लिए संकट को ही आमंत्रित करेंगे’।

ऊपर के उद्धरण में इंग्लैंड की जगह भारत कर दिया जाए, तो यह अंबेडकर का ही उद्धरण माना जाएगा। भारत विभाजन पर विचार करने के लिए यह संशोधित उद्धरण अंबेडकर का स्वस्वीकृत धरातल है।   द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होते-होते भारत से अंग्रेजों के चले जाने और और भारत का विभाजन किए जाने की चर्चा और बहस बहुत तेज हो चुकी थी। तब 1945 में  अंबेडकर ने थॉटस ऑन पाकिस्तान का संशोधित और परिवर्तित संस्करण भारत विभाजन के नाम से प्रकाशित किया। वैसे भी 1940 से लेकर 1945 तक सतलुज में बहुत पानी बह चुका था और भारत विभाजन को लेकर सभी पक्ष सामने आ गए थे। अंबेडकर ने पाकिस्तान पर तैयार की गई अपनी इस रपट का बहुत सा हिस्सा मुस्लिम मानसिकता का विश्लेषण करने में खपाया है। इसके उन्होंने दो भाग किए हैं। पहले भाग में मोहम्मद बिन कासिम से लेकर मुगल काल तक मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हिंदुस्तान को डरा धमका कर मुस्लिम देश बनाने का प्रयास करना और यहां के सांस्कृतिक प्रतीकों का विध्वंस करना। अंबेडकर ने पुस्तक के दूसरे खंड के चौथे अध्याय में मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मंदिरों के विध्वंस और हिंदुओं पर अत्याचार व जबरन इस्लाम में मतांतरण की लंबी फेहरिस्तें दी हैं। तैमूर के संस्मरणों को अंबेडकर ने उसी के शब्दों में उद्धृत किया-हिंदुस्तान पर हमले का मेरा मकसद काफिरों के खिलाफ अभियान चलाना और मोहम्मद के आदेशानुसार उन्हें सच्चे दीन में मतांतरित करना है।

उस धरती को मिथ्या आस्था और बहुदेववाद से मुक्त करना है। हम गाजी और मुजाहिद होंगे। अल्लाह की नजर में सहयोगी और सैनिक सिद्ध होंगे। यह तर्क दिया जा सकता है कि मुसलमान हमलावरों के हमले मजहब के कारणों से नहीं थे, क्योंकि मुसलमान हमलावरों ने तो दिल्ली में पूर्वकाल में ही कब्जा जमाए बैठे अपने हममजहब मुसलमान शासकों पर ही हमले किए। अंबेडकर लिखते हैं ‘भारत पर मुसलमानों के हमले भारत के विरुद्ध हमले तो थे ही, साथ ही वे मुसलमानों के आपसी युद्ध भी थे…..’ वे एक दूसरे के जानी दुश्मन थे और उनके युद्धों का मकसद एक दूसरे का सफाया करना भी था। मगर जिस बात को दिमाग में याद रखना महत्त्वपूर्ण है वह यह कि अपने इन सभी विवादों और संघर्षों के बावजूद वे सभी एक सामूहिक उद्देश्य से प्रेरित थे और वह था हिंदू धर्म का विध्वंस करना। बाबा साहब डा. अंबेडकर ने मुस्लिम मनोविज्ञान का अध्ययन भी किया। उनके अनुसार मुसलमानों के लिए हिंदू काफिर हैं और एक काफिर सम्मान के योग्य नहीं है। वह निम्न कुल में जन्मा होता है और उसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती। जिस देश में काफिरों का राज्य हो वह दारुल हर्ब है। ऐसी स्थिति में यह साबित करने के लिए और सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमान हिंदू सरकार के शासन को स्वीकार नहीं करेंगे। खिलाफत आंदोलन के दौरान जब मुसलमानों की मदद के लिए हिंदू काफी कुछ कर रहे थे तब भी मुसलमान यह नहीं भूले थे कि उनकी तुलना में हिंदू निम्न और घटिया कौम है। इस्लाम को मानने वाले विदेशी आक्रमणकारियों और विजेताओं ने भारतीयों पर जो अत्याचार किए,  उसका लगभग ऐसा ही वर्णन 1901 में दौलत राय ने अपनी पुस्तक साहिबे कमाल गुरु गोबिंद सिंह में किया है। कहा जाता है कि अंबेडकर ने अपनी पुस्तक थाट्स आन पाकिस्तान में मुसलमानों के मनोविज्ञान और अन्य मजहबों को लोगों पर उनके दृष्टिकोण को लेकर कुछ ऐसी सख्त टिप्पणियां की थीं कि प्रकाशन से पूर्व अपने कुछ मित्रों के कहने पर उन्हें हटा दिया। कीर के अनुसार-यदि वे न हटाते तो शायद अंबेडकर को भी वही असुखद अनुभव होता जो कभी एचजी वैल्ज को लंदन में मुसलमानों के हाथों हुआ था। अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक एचजी वैल्ज ने 1922 में एक पुस्तक लिखी थी जिसमें एक अध्याय मुसलमानों व इस्लाम पर भी था। मुसलमानों की दृष्टि में मुसलमानों व इस्लाम का उनका यह विश्लेषण आपत्तिजनक था। डा. अंबेडकर मानते थे कि मुसलमान मानसिक रूप से अपने आप को हिंदुस्तान का शासक मानते हैं। उनका मानना है कि हिंदुस्तान में उनका शासन अंग्रेजों ने छीना है। अब जब वे भारत से वापस जाने की सोच रहे हैं तो स्वाभाविक है कि मुसलमानों को ही हिंदुस्तान का राज वापस मिलना चाहिए।

लेकिन मुसलमान जानते हैं कि वर्तमान हालात में यह संभव नहीं है। संभावना यही है कि ब्रिटिश सरकार की रुखसतगी के बाद भारत में शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली स्थापित हो जाएगी। उस हालत में मुसलमान पुनः हिंदुस्तान के शासक नहीं बन पाएंगे। तब इसका क्या समाधान हो सकता है-इसका एक ही समाधान है, या तो मुसलमानों के लिए देश के एक हिस्से को काट कर उनके लिए नया देश बना दिया जाए या फिर नए संविधान में मुसलमानों को हिंदुओं के बराबर प्रतिनिधित्व दिया जाए। मुसलमानों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का केवल 23 प्रतिशत है, इसको मुसलमानों की भागीदारी का आधार न बनाया जाए। अंबेडकर भारत में मुस्लिम समस्या को केवल भौतिक लिहाज से नहीं देखते। उनके अनुसार यह समस्या इस्लाम की मूल अवधारणा में छिपी हुई है। मुसलमान या इस्लाम सभी मनुष्यों के भाईचारे को स्वीकार नहीं करता। वह मानववाद को नहीं स्वीकारता। वह केवल मुस्लिम भाईचारे तक सीमित है।

ई-मेलःkuldeepagnihotri@gmail.com

अपने सपनों के जीवनसंगी को ढूँढिये भारत  मैट्रिमोनी पर – निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App