आतंकवाद पर भारत-चीन

By: Apr 30th, 2018 12:05 am

उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के शासकों की मुलाकात ऐतिहासिक थी। दुनिया को परमाणु अस्त्रों के निशाने पर रखने वाले तानाशाह किम जोंग उन ने सरहद की दहलीज लांघी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन ने उन्हें आलिंगनबद्ध कर लिया। दोनों नेता अब निरस्त्रीकरण, चरणबद्ध तरीके से परमाणु हथियारों को नष्ट करने की बात कर रहे हैं। अमन-चैन, भाईचारे और स्थिरता का एक नया अध्याय लिखा जा सकता है, ऐसी सुसंभावनाएं बन रही हैं। एशिया में ही भारत और चीन के बीच फासले इतने व्यापक नहीं थे, लेकिन ‘हिंदी-चीनी, भाई-भाई’ का नारा धोखा खा चुका था। मौजूदा दौर में चीन का खास झुकाव पाकिस्तान की ओर है। चीन पाकिस्तान को सैन्य मदद देता है, उसके आतंकवाद का कवच बनता है, आर्थिक कारिडोर के जरिए क्षेत्रीय  अतिक्रमण करता है। यदि इनके बावजूद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ, आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई का वादा करते हैं, तो कमोबेश दक्षिण एशिया के लिए यह एक निर्णायक आश्वासन है। चीन ने ब्रिक्स देशों के घोषणा-पत्र पर भी हस्ताक्षर करते हुए आतंकवाद का विरोध किया था। अलकायदा और तालिबान चीन में शिनजियांग प्रांत में ईस्ट तुर्किस्तान मूवमेंट का समर्थन कर रहे हैं। चीन इससे परेशान है। चीन का भारत के साथ आना पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के साथ-साथ वहां की हुकूमत के लिए भी चेतावनी है। यदि भारत-चीन की नई साझेदारी साकार हुई, तो यह क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग के लिए बड़ा कदम होगा। यदि फिर भी आतंकवाद के प्रति पाकिस्तान अपना रुख नहीं बदलता है, तो चीन का साफ कहना है कि वह नए विकल्पों पर विचार करेगा। पूर्व राजनयिक जी. पार्थसारथी का मानना है कि तनाव और आतंकी घटनाओं के बावजूद भारत अफगानिस्तान को करीब 3 अरब डालर की मदद दे रहा है। भारत अफगानिस्तान में ही 200 सरकारी और निजी स्कूल बनवा रहा है। भारत वहां 1000 छात्रवृत्तियों का प्रायोजक भी है। चीन ने अभी तक अफगानिस्तान में एक भी आर्थिक परियोजना पर काम नहीं किया था। उसने कॉपर माइन का प्रोजेक्ट जरूर लिया था, लेकिन 15 सालों में रत्ती भर भी काम नहीं किया था। अब चीन ने भारत के साथ मिलकर अफगानिस्तान में आर्थिक परियोजनाओं पर काम करना तय किया है, तो एक ही कारण हो सकता है कि उसे अफगानिस्तान में सबसे अच्छी छवि वाला साथी मिल गया है। दरअसल चीन पर तालिबान की मदद का आरोप लगता रहा है। अब चीन भारत के साथ काम करेगा, तो आतंकी संगठनों पर नकेल कसना चीन की मजबूरी भी होगी। इससे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाकिस्तान पर भी दबाव बढ़ेगा। लिहाजा कुछ पूर्व राजनयिकों ने भारत-चीन की साझा आर्थिक परियोजना का प्रस्ताव मोदी-जिनपिंग की अनौपचारिक मुलाकातों की ‘बड़ी सफलता’ माना है। अभी तक भारत, अमरीका के सहयोग से, अफगानिस्तान में सक्रिय रहा है। नए संदर्भों में भारत और चीन के इकट्ठा काम करने से बेशक पाकिस्तान जलेगा-भुनेगा। अफगानिस्तान में पाकिस्तान का भी हस्तक्षेप रहा है। बहरहाल आतंकवाद पर भारत-चीन की सहमति बेहद महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है। पाकपरस्त आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर बात क्यों नहीं हो सकी, यह वाकई एक सवाल है। मसूद को ‘वैश्विक आतंकी’ घोषित करने में चीन अपनी वीटो पावर का दुरुपयोग करता रहा है, लिहाजा संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत का यह प्रस्ताव आज तक लटका रहा है। इस मुद्दे पर दोनों देशों के नेताओं ने क्या तय किया है, फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन डोकलाम विवाद से दोनों देश बचते रहेंगे, बातचीत जारी रहेगी और अपनी-अपनी सेनाओं को निर्देश दिए जाएंगे कि आपसी विश्वास कायम रखने को क्या करना है। दरअसल विवाद हमें विरासत में मिलते हैं। भारत-चीन के बीच विवाद भी ऐसे ही हैं, लेकिन मोदी-जिनपिंग ने सिद्धांत के तौर पर तय किया है कि सीमाओं पर शांति, स्थिरता कायम रखी जाएगी। बेशक यह शिखर-संवाद अनौपचारिक था। कोई साझा वक्तव्य जारी नहीं किया गया, किसी लिखित समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए, आपसी भरोसे का मिलन था यह! सिर्फ यही नहीं, व्यापार, कृषि, पर्यटन, ऊर्जा, तकनीक आदि पहलुओं पर भी विमर्श किया गया। बेशक दुनिया की 40 फीसदी से ज्यादा आबादी दोनों देशों में रहती है, दोनों देशों का जीडीपी करीब 15 फीसदी है। यदि दोनों देश मिलकर काम करें, तो 21वीं सदी एशिया की ही होगी। दोनों नेताओं ने ऐसी इच्छा जताई जरूर है।

अपने सपनों के जीवनसंगी को ढूँढिये भारत  मैट्रिमोनी पर – निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App